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जब कोरोना वायरस फैला उसी समय से विज्ञान का तिरस्कार शुरू हो गया . दवा के रूप में गोमूत्र पार्टी का आयोजन किया गया. गोबर लेप के बाद स्नान करने से इलाज ढूढ़ा गया. विज्ञान बेचारा दूर से देखता रहा है कि कैसे वायरस का गला दबाए. अंत मे सफल हुआ और सबको शरण मे जाना पड़ा. समाज के कुछ अंधविश्वासी लोग इस महामारी में भी तर्क संगत नहीं दिख रहे हैं. उनके जीवन में समझदारी की जगह ढोंग, पाखंड और धर्मान्धता है. लोग महंगे मकान और किचन तोड़ने में लगे रहते हैं कि वास्तु के अनुसार नहीं बना.
लगातार विज्ञान की सत्यता को नकारा जा रहा था. गिलोय और कोरोनिल से इलाज बताया. कोई नींबू के रस से इलाज बताना शुरू कर दिया.आपदा में अवसर तलाश करके कोरोनील खोज लिया जिसको देश के स्वास्थ्य मंत्री ने अपनी उपस्थिति से वैद्यता दी. झूठ कह डाला कि विश्व स्वास्थ्य संगठन से प्रमाणिकता मिल चुकी है. हर कदम पर धर्मान्धता को बढ़ावा दिया गया.
यह बड़ा कारण बना की 1 साल का समय मिला, लेकिन तैयारी नही की गई है. हजारों साल से पाखंडी समाज में तो बहुत बदलाव नहीं हो सकता, लेकिन सरकार तैयारी ना करे यह जरूर बहुत त्रासदी वाला था. भारत में सबसे ज्यादा ऑक्सीजन और वैक्सीन का उत्पादन हो और ऐसे में दोनों का अभाव होना भयंकर विफलता है. जो समाज तर्कसंगत और वैज्ञानिक सोच का है वहां की सरकारों पर अंकुश लगा.
सरकार के ऊपर अंकुश विपक्ष और मीडिया का होता है.मीडिया दो कदम बढ़कर कमियों को छुपाने का काम करती रही. विज्ञानवादी देश जैसे अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप लगभग रोज मीडिया से मुखातिब होते थे और सरकार की योजनाओं और अग्रिम कदम को जनता के समक्ष रखते थे. ट्रंप का मीडिया खाल उधेड़ देती थी
झूठ या नाकामी पर नंगा कर देती थी.अगर यहां कि मीडिया ने अपना कर्तव्य निभाया होता तो देश की बर्बादी इस कदर न हुई होती. विपक्ष से सवाल पूछती रही. विपक्ष इसलिए कमजोर पड़ा क्योंकि उसको जनतांत्रिक माहौल में राजनीति करने की आदत थी . लगभग सभी नेताओं के खिलाफ इनकम टैक्स , सीबीआई और ईडी लगा दी गयी है. अदालत का बचाव भी नहीं रहा.
देश के हालात ऐसे हो गए कि न अस्पताल में बेड मिला न ही ऑक्सीजन . किसी भी आदमी को फोन करके पूछा जाए शायद ही कोई मिलेगा जो ये न कहे कि उसके परिवर के सदस्य, रिश्तेदार या दोस्तों कि मौत न हुयी हो. केंद्र, उत्तरप्रदेश और बिहार में बीजेपी हिंदुवादियों की सरकार होते हुए हिंदुओं को अंतिम संस्कार भी हिन्दू- रीति रिवाज से नसीब हो सका .
लाशें गंगा में बहने लगी जब उस पर पहरेदारी हुई, तो रेत और मिट्टी में दफनाया जाने लगा. ऐसी सरकार जो अपने हिन्दुओं को लकड़ी और कफन भी न दे सकी . खूब भूखमरी, बेरोजगारी बढ़ी, उद्योग-व्यापार पूरी तरह से चौपट. आखिरकार यह नुकसान किसका हुआ. हिन्दुओं का ही हुआ. सरकार इतना तक इंसाफ न कर सकी कि हिन्दुओं कि लाशों की गिनती हो सके. कहीं दस गुना , कहीं बीस गुना तक लाशों की संख्या छुपाई गई ताकि छवि न खराब हो.
दुसरे देशों में अत्याचार बढ़ता है तो जनता सड़क पर आ जाती है. अमेरिका में जार्ज फ्लायड की ह्त्या का मामला डेमोक्रेट ने नहीं उठाया, बल्कि जनता सड़क पर आ गयी. दुनिया में ऐसे तमाम देश हैं जैसे तुर्की, ट्युनिसिया, बर्मा , अजरबैजान और मिश्र जहां अन्याय के खिलाफ लोग सड़क पर आ जाते हैं.
गलती न मानने वाले समाज मे सुधार की गुंजाइश नही होती, वर्तमान परिस्थिति को देखकर कहा जा सकता है कि भारत का कोई भविष्य नहीं है. कार्ल मार्क्स ने सही कहा था कि धर्म जनता के लिए अफीम है. बर्बादी की शुरुआत 2014 से हो गया था, लेकिन हिन्दू- मुस्लिम और हिन्दू राज की नशा में लोगों को दिखा नही, जिसने देखा और टोका देश द्रोही कहा गया. बांग्लादेश से ही हम पीछे हो गए फिर भी कुछ लोगों की आंख नही खुल रही है. अस्पताल में कोरोना के इलाज के बाद बहुत लोग प्रसाद चढ़ाएंगे और तीर्थ भी करने की तैयारी में होंगे. जो आर्थिक रूप से सशक्त हैं अब भारत छोड़ रहे हैं.
(डॉ उदित राज ,लेखक पूर्व लोकसभा सदस्य एवं कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता है , यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. द क्विंट न इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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