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कोरोना वायरस ने दुनियाभर के कई देशों का हाल बेहाल कर दिया है. इसे रोकने के लिए दिन-रात साइंटिस्ट वैक्सीन बनाने की कोशिश में जुटे हैं. भारत में भी कोरोना के केस लगातार बढ़ते जा रहे हैं. इन्हें रोकने के लिए अभी सिर्फ सोशल डिस्टेंसिंग को ही सबसे कारगर माना जा रहा है. लेकिन एक चीज और है जो कोरोना वायरस पर लगाम लगा सकती है, वो है ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग. भारत भी अब उसी मोड में आने की तैयारी में है, इसीलिए अब टेस्टिंग को लेकर नए प्रयोग शुरू हो चुके हैं.
भले ही शुरुआत में भारत ने टेस्टिंग को लेकर काफी अलग स्ट्रैटेजी अपनाई हो, लेकिन अब देखा जा रहा है कि इसे सबसे जरूरी मानकर नए-नए प्रयोग और राज्यों में लाखों टेस्टिंग किट पहुंचाए जा रहे हैं. वहीं नई तकनीकों का प्रयोग कर भी टेस्टिंग की रफ्तार और रिजल्ट में तेजी लाने की कोशिश हो रही है.
पहले आपको बता दें कि मौजूदा दौर में भारत एक दिन में कितने टेस्ट कर रहा है और कितनी आईसीएमआर की लैब्स और कितनी प्राइवेट लैब्स के साथ टेस्टिंग हो रही है.
केंद्र की तरफ से राज्य सरकारों को रियल टाइम पीसीआर मशीनें भी ज्यादा से ज्यादा पहुंचाईं जा रही हैं. रियल टाइम पीसीआर से हम डीएनए को जल्द से जल्द एम्पलिफाई कर सकते हैं. इससे कोरोना की टेस्टिंग में काफी तेजी आएगी. इसे क्वैंटेटिटिव रियल टाइम पीसीआर भी कहा जाता है. इन मशीनों को अब तक कुल 25 सरकारी लैब में भेजा जा चुका है.
अब हम आपको बताएंगे कि सरकार की तरफ से टेस्टिंग को लेकर नए तकनीक और कौन से नए प्रयोग किए जा रहे हैं. जिससे वक्त तो बचेगा ही, साथ में हर व्यक्ति को अलग से टेस्ट करने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी.
पूल टेस्टिंग वही तरीका है, जिसमें हर व्यक्ति को टेस्ट करने की जरूरत नहीं पड़ती है. इसमें कई मरीजों का सैंपल एक साथ लिया जाता है. इन सभी सैंपल को मिलाकर एक बार में टेस्ट करते हैं. अगर ये पूल टेस्ट पॉजिटिव आता है तो फिर इसके बाद सभी मरीजों का अलग-अलग टेस्ट होता है. लेकिन अगर टेस्ट नेगेटिव आया तो किसी का भी टेस्ट करने की जरूरत नहीं पड़ती. यानी इससे हजारों रुपये का फायदा और वक्त की बर्बादी को रोक सकते हैं.
कोरोना का कहर जिन इलाको पर सबसे ज्यादा होता है, उन्हें रेड जोन, कंटेनमेंट एरिया या फिर हॉटस्पॉट कहा जाता है. ऐसी जगहों के लिए ही रैपिड एंटीबॉडी टेस्टिंग होती है. यहां अगर लोगों में किसी भी तरह की जुकाम, हल्का बुखार या फिर खांसी की भी शिकायत है तो उनकी शुरुआती जांच की जाती है. जिसमें रियल टाइम पीसीआर से टेस्ट होता है. अगर रिपोर्ट नेगेटिव होती है तो कोरोना की संभावना काफी कम होगी. लेकिन अगर पीसीआर टेस्ट पॉजिटिव आता है तो मरीज को तुरंत आइसोलेट किया जाता है और कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग शुरू हो जाती है. आसान भाषा में समझें तो ऐसे जगहों पर सबसे पहले मरीजों के गले और नाक की सूजन जैसे लक्षणों की जांच होती है. जिसके बाद एंटी बॉडी बेस्ड ब्लड टेस्ट किया जाता है.
कोरोना के लिए एक और प्रयोग सामने आया है. जिसे कॉन्वलेसन्ट प्लाज्मा थेरेपी कहा जाता है. हालांकि ये सिर्फ उन्हीं मरीजों का होता है जिन्हें कोरोना से सबसे ज्यादा खतरा होता है और वो क्रिटिकल सिचुएशन में होते हैं. इसे कोरोना के लिए एक प्रयोगात्मक तरीका कहा गया है. इस थेरेपी के तहत COVID-19 से उबर चुके मरीज से लिया गया ब्लड प्लाज्मा नए मरीजों में इंजेक्ट किया जाता है. विशेषज्ञों का मानना है कि ठीक हो चुके मरीज में बनीं कोरोना वायरस एंटीबॉडीज नए मरीज के शरीर में जाकर वायरस को बेअसर कर सकती हैं.
स्वास्थ्य मंत्रालय ने 17 अप्रैल को बताया कि राज्यों को पांच लाख रैपिट एंटी बॉडी किट्स पहुंचाए गए हैं. इसके साथ ही प्लाज्मा थेरेपी को लेकर कहा गया कि इस पर अभी काम चल रहा है. बताया गया कि इमिन्युटी सिस्टम को बढ़ाने के लिए भारत के पारंपरिक इलाज की भी मदद ली जा रही है.
मंत्रालय की तरफ से बताया गया कि अब ऐसे टेस्ट किट पर काम चल रहा है, जिससे कोरोना टेस्ट का रिजल्ट 30 मिनट में मिल सकता है. इसे न्यू रैपिड एंड डायगनॉस्टिक टेस्ट कहा गया है. उन्होंने बताया कि मई तक 10 लाख रैपिड एंटी बॉडी डिटेक्शन किट्स तैयार हो जाएंगी. वहीं 10 आरटीपीसीआर किट भी अगले महीने तक तैयार होंगी.
हालांकि केरल के चित्रा इंस्टीट्यूट ने दावा किया है कि उन्होंने एक ऐसी किट तैयार की है, जिससे 10 मिनट में रिजल्ट का पता लगाया जा सकता है. लेकिन अभी तक आईसीएमआर की तरफ से इसे हरी झंडी मिलना बाकी है.
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