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उन्हें 90,000 रुपये का कर्ज चुकाना है, एक किस्त का भुगतान करने के लिए एक गाय बेच चुके हैं, और परिवार की बची हुई दो बीघा जमीन भी बेचनी पड़ सकती है. पंजाब के पटियाला जिले के गज्जू माजरा के रहने वाले 30 वर्षीय बिककर सिंह पर लॉकडाउन ने मुसीबतों का पहाड़ गिरा दिया है. कुछ महीनों पहले सिंह ने ऐसे हालातों की उम्मीद नहीं की थी. सभी ट्रैक्टर और मवेशी घर के अंदर बंद पड़े हैं.
बिक्कर को इस बात की फिक्र है कि उसका परिवार कैसे गरीबी की ओर जा रहा है, लेकिन वह ये भी समझते हैं कि ये मुश्किल समय हैं. वो कहते हैं, “यह वायरस डरावना है. मैं नहीं चाहता कि कोई इसकी चपेट में आए. मैं वह सब कुछ कर रहा हूं, जिससे मैं सुरक्षित और स्वच्छ रह सकता हूं, लेकिन यह समय मेरे आर्थिक हालत पर बहुत मुश्किल है,”
बिक्कर के तीन गायों में से अब उनके पास दो गायें बची हैं. वो बताते हैं, “यह सब होने से पहले मैंने 90,000 रुपये का कर्ज लिया और डेयरी किसान बनने का फैसला किया. हमारे पास वैसे भी बहुत कम जमीन थी. पैसे के साथ, उन पैसों से मैंने तीन गाय खरीदी, लेकिन हाल ही में मुझे तीसरी गाय बेचनी पड़ी क्योंकि वह हर समय बीमार रहती थी. मैंने उस पर हार नहीं मानी मैंने उसका इलाज करने में बहुत पैसा खर्च किया. डॉक्टर हर विजिट के लिए 400 रुपये लेते हैं और दवाएं और इंजेक्शन देते हैं. लेकिन भगवान की दूसरी इच्छा थी. मुझे उसे बेचना पड़ा”
बिक्कर ने एक साल पहले 45,000 रुपये में गाय खरीदी थी और इसे 15,000 रुपये में बेचना पड़ा. "मैंने सुना है कि वह अब 17-18 लीटर दूध दे रही है, वो अब ठीक हो गई है," ये कहते हुए उनकी आवाज धीमी हो जाती है.
गाय बेचने से मिले 15,000 रुपये से उन्होंने उसे खरीदने के लिए लिए गए कर्ज की एक किस्त को चुकाया. बाकी दूध वह 50 फीसदी के घाटे पर बेच रहा है. वो कहते हैं, “मैं 30-32 रुपये प्रति लीटर में दूध बेचता था, लेकिन अब सभी निजी कंपनियां बंद हैं. सरकार हमारी मदद करने के लिए यहां नहीं आती है, मैंने अन्य डेयरी किसानों से पूछताछ की है. अब दो दिनों से मैं इसे एक अन्य व्यक्ति को बेच रहा हूं जो मुझे 15-16 रुपये प्रति लीटर दे रहा है. इस दर पर मुझे अपनी जमीन भी बेचनी पड़ सकती है.”
बिक्कर का कहना है कि वह अब गांव के करीब एक पेट्रोल पंप में काम करता है. वो कहते हैं "मुझे यह करना है, लेकिन यहां भी वेतन हर महीने के अंत में आता है." वह चीजों को बेहतर होने के लिए धैर्य से इंतजार कर रहे हैं.
अलीपुर जट्ट के रहने वाले 45 वर्षीय डेयरी किसान कुलदीप सिंह के परिवार में 4 सदस्य हैं. उनके पास 5 गायें हैं. वे बताते हैं, "निजी कंपनी के लोग दिन में केवल एक बार आते हैं और दूध ले जाते हैं."
कुलदीप को इस साल बहुत उम्मीदें थीं क्योंकि दूध की कीमतें आखिरकार सामान्य हो गई थीं.
अब कुलदीप प्रति लीटर 10 रुपये के नुकसान पर 22 रुपये लीटर में दूध बेचते हैं. वे कहते हैं, "आप कह सकते हैं कि मुझे इस हफ्ते कम से कम 12,000 रुपये का नुकसान हुआ है. ये निजी कंपनी के लोग केवल आए थे, लेकिन एक हफ्ते के लिए, कोई भी बिक्री नहीं हुई थी. अब जो पैसा मिल रहा है, उसका इस्तेमाल गायों के चारे के भुगतान के लिए किया जा रहा है. इस बिक्री से कोई वास्तविक लाभ नहीं है.”
40 वर्षीय हरप्रीत सिंह बाकियों की तुलना में आर्थिक रूप से ज्यादा सुरक्षित हैं. पटियाला के गज्जू माजरा गांव में परिवार में पांच सदस्य हैं. वे बताते हैं, “मेरे पास 12 गायें हैं और मैं उनकी देखभाल करने के लिए बहुत पैसा खर्च कर रहा हूं. लेकिन हम जिस स्थानीय निजी कंपनी को दूध बेचते थे, वह बंद हो गई है और सरकारी अधिकारी कह रहे हैं कि वे हमसे नहीं खरीदेंगे. मैं क्या करूं? अगर मैं गाय को नियमित रूप से दूध नहीं दुहता हूं, तो वह बीमार हो जाएगी और मर जाएगी.”
तो हरप्रीत दूध का क्या करते हैं? वे जवाब देते हैं, “हम गांव में दूध नहीं बेच सकते क्योंकि पुलिस हमें बाहर निकलने नहीं देती है. हम गायों को फिर से वही दूध पिला रहे हैं, और जितना हो सके हम घर पर ही उसका इस्तेमाल कर रहे हैं.”
उन्होंने कहा कि वह चाहते हैं कि सरकार उनके जैसे किसानों की मदद करे. जिन निजी विक्रेताओं ने रुचि दिखाई है, वे बता रहे हैं कि वे दूध आधी कीमत में खरीदेंगे. जो चीज 33 रुपये लीटर में बिक रही थी, उसके लिए वे 15 रुपये लीटर दे रहे हैं. मैं इसके लिए अभी तक सहमत नहीं हूं क्योंकि यह कीमत बहुत कम है. लेकिन मुझे करना पड़ सकता है."
भारत किसान यूनियन उगराहां के महासचिव सुखदेव कोकरी ने द क्विंट को बताया कि उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी और पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को एक मांग पत्र भेजा था जब लॉकडाउन की शुरुआत हुई.
वे कहते हैं, “डेयरी किसान संघर्ष कर रहे हैं और सरकार इस मामले पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे रही है. वे केवल पूर्ण लॉकडाउन में दिलचस्पी रखते हैं, जिसे हम भी समर्थन करते हैं, लेकिन लंबे समय में, सरकार को समाधान खोजना होगा. अगर सरकार को इस दूध को खरीदने, उपयोग करने और स्टोर करने का कोई रास्ता नहीं मिलता है, तो किसान सड़कों पर आ सकते हैं, इस संभावना को नकारें नहीं. अभी वे ऐसा नहीं कर रहे हैं, लेकिन जब यह लंबे समय तक उन्हें नुकसान होता रहेगा, तो वे ऐसा करेंगे."
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