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कोरोना वायरस के लगातार बढ़ते मामलों को देखते हुए देशभर में दूसरे लॉकडाउन की घोषणा हुई. पीएम ने ऐलान किया कि 3 मई तक पूरे देश में लॉकडाउन रहेगा. लेकिन इस ऐलान ने शहरों में पढ़ने आए छात्रों और रोजी-रोटी की तलाश में आए मजदूरों को मायूस कर दिया. क्योंकि वो आस लगाए बैठे थे कि शायद 14 अप्रैल को लॉकडाउन खुलेगा और वो अपने गांव वापस लौट जाएंगे.
लेकिन लॉकडाउन के बीच राजस्थान के कोटा से एक खबर आई, जिसमें बताया गया कि यहां मौजूद यूपी के छात्रों को घर लाने के लिए सैकड़ों बसों का इंतजाम किया गया है. इस खबर के बाद चारों तरफ हलचल सी मच गई. वहीं नेताओं की भी बयानबाजी शुरू हो गई.
अब आपको बताते हैं कि आखिर छात्रों को वापस लाने को लेकर इतना बवाल क्यों मचा है. दरअसल कोटा कोचिंग का हब माना जाता है. यहां देशभर से हजारों छात्र परीक्षा की तैयारी करने पहुंचते हैं. लॉकडाउन की घोषणा होते ही कोचिंग सेंटर बंद हो गए. हजारों छात्र हॉस्टल या फिर अपने कमरों में ही बंद रह गए. ये छात्र लगातार सरकार से मांग कर रहे थे कि उन्हें उनके घरों तक पहुंचा दिया जाए.
छात्रों की इस मांग पर उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से एक बड़ा ऐलान हुआ. बताया गया कि सरकार ने छात्रों को वापस लाने के लिए 300 बसों का इंतजाम कर दिया है. इस घोषणा के तुरंत बाद बिहार से रिएक्शन आया. खुद सीएम नीतीश कुमार ने इसका घोर विरोध किया. उन्होंने कहा,
सिर्फ यही नहीं, बिहार सरकार की तरफ से इसे लेकर गृह मंत्रालय को एक लेटर भी पोस्ट कर दिया गया.
नीतीश कुमार ने भले ही कोटा से छात्रों को वापस लाने का विरोध किया और इसे लॉकडाउन नियमों का उल्लंघन बताया. लेकिन इसके बाद विपक्षी नेताओं ने नीतीश का घेराव शुरू कर दिया. बिहार में विपक्षी नेता तेजस्वी यादव ने नीतीश की घेराबंदी के लिए यूपी सरकार के फैसले की जमकर तारीफ कर दी. तेजस्वी ने ट्विटर पर कहा,
इसके बाद एक और वाकया सामने आया. जब नीतीश के एक विधायक की तरफ से गुप्त तरीके से पास बनाकर अपने बेटे को कोटा से वापस लाने की इजाजत दी गई. इसके लिए जारी किए गए पास की फोटो खूब वायरल हुई. इसे लेकर भी तेजस्वी ने चुटकी ले डाली. उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा, "बिहार CM यूपी CM को कह रहे थे कि उन्हें कोटा में फंसे छात्रों को वापस लाने के लिए बसों को अनुमति नहीं देनी चाहिए थी. दूसरी तरफ अपने MLA को गोपनीय तरीके से उनके बेटे को वापस लाने की अनुमति दे रहे थे. बिहार में ऐसे अनेकों VIP और अधिकारियों को पास निर्गत किए गए. फंसे बेचारा गरीब."
अब जहां कोटा मामले को लेकर नीतीश कुमार विपक्ष के निशाने पर हैं, वहीं इसी बीच बीजेपी शासित दूसरे राज्य मध्य प्रदेश ने भी कहा है कि वो अपने छात्रों को कोटा से लाने के लिए बसों का इंतजाम करेगा. बताया गया कि इसके लिए राजस्थान सरकार से बातचीत जारी है और जल्द ही सभी छात्रों को वापस उनके घरों तक पहुंचाया जाएगा.
अब कोटा से छात्रों को वापस लाने की बात तो राज्य सरकारों ने छेड़ दी है, लेकिन उन हजारों प्रवासी मजदूरों का क्या, जो शहरों की धूल फांक रहे हैं. अपने घर अपने गांव जाने के लिए ये मजदूर पुलिस की लाठियां खाने के लिए भी तैयार हैं. किसी भी एक अफवाह के बाद हजारों मजदूर उसी तरफ दौड़ पड़ते हैं. हाल ही में मुंबई, दिल्ली और गुजरात के सूरत में ये देखने को मिला.
इसे लेकर अब राज्य सरकारों पर दबाव बनाने की कोशिश भी शुरू हो चुकी है. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और एसपी नेता अखिलेश यादव ने योगी सरकार के फैसले के ठीक बाद एक ट्वीट किया. जिसमें उन्होंने सवाल किया कि ये फैसला तो काफी अच्छा है, लेकिन गरीबों को वापस लाने की क्या योजना है? अखिलेश ने अपने ट्वीट में लिखा,
"राजस्थान के कोटा में फंसे उप्र के विद्यार्थियों को वापस लाने की योजना का स्वागत है लेकिन ये सवाल भी है कि अन्य राज्यों में भुखमरी के शिकार हो रहे अति निम्न आय वर्ग के गरीबों को वापस लाने की क्या योजना है और ये भी कि प्रदेश के तथाकथित नोडल अधिकारियों के मोबाइल मूक-मौन क्यों हैं?"
वहीं बिहार में भी विपक्षी दल लगातार सरकार से यही सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर गरीबों को वापस क्यों नहीं लाया जा रहा है? बता दें कि बिहार और उत्तर प्रदेश के सबसे ज्यादा मजदूर शहरों में फंसे हुए हैं. जिनकी दौड़ती-भागती तस्वीरें आए दिन टीवी चैनलों में दिख जाती हैं. ये प्रवासी मजदूर लगातार मांग कर रहे हैं कि उन्हें वापस उनके घरों में भेजनी की व्यवस्था की जाए. अब कोटा से छात्रों की वापसी ने एक बार फिर प्रवासी मजदूरों के मुद्दे को हवा दे दी है.
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