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कोरोना पर पूर्व IAS अफसर खफा-’बुरे से बुरा दौर देखा लेकिन ये नहीं’

रिटायर्ड IAS अफसर सोशल मीडिया और लेखों के जरिए अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं

क्विंट हिंदी
भारत
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(फाइल फोटो: PTI)
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(फाइल फोटो: PTI)

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देश में कोरोना वायरस महामारी बेकाबू हो गई है. रोजाना लाखों केस आ रहे हैं और हजारों मौतें हो रही हैं. 23 अप्रैल को 3.32 लाख नए केस सामने आए, जो कि किसी भी देश में अब तक का एक दिन में सबसे बड़ा आंकड़ा है. देश के कई राज्यों में अस्पताल बेड, ऑक्सीजन और दवाइयों की कमी हो रही है. भयावह तस्वीरें सामने आ रही हैं. ऐसे में कई रिटायर्ड आईएएस अफसर सोशल मीडिया और लेखों के जरिए अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं.

रिटायर्ड आईएएस अमिताभ पांडे ने फेसबुक पर पोस्ट लिखकर कहा कि 'पिछले सात सालों में सिविल सर्वेन्ट्स ने भारी प्रशासनिक अक्षमता देखी है और क्या अभी और बुरा देखना बाकी है?'

'हमने सब देखा लेकिन इसके लिए तैयार नहीं थे'

अमिताभ पांडे ने फेसबुक पर लिखा कि उनकी जनरेशन के सिविल सर्वेन्ट्स ने इंदिरा गांधी की इमरजेंसी से लेकर संजय गांधी का 'गुंडाराज' और मोरारजी देसाई का 'सनकी' शासन देखा है.

“राजीव गांधी के उम्मीद दिलाने वाले साल, राजनीतिक उठापटक वाली वीपी सिंह की सरकार, चंद्रशेखर-देवगौड़ा-इंदर गुजराल का अक्सर भूला जाने वाला शासन, नरसिम्हा राव की स्थिर सरकार, वाजपेयी का परिपक्व कार्यकाल और मनमोहन सिंह का शासन, ये सब देखा है.” 
अमिताभ पांडे

पांडे ने लिखा, "हमें लगा हमने सब देख लिया है. लेकिन कुछ भी हमें पिछले सात सालों में देखी गई दुष्ट, सांस्कृतिक बेहूदगी, निर्दयता, दूसरों के प्रति निष्ठुरता, बौद्धिकता की कमी और अब भारी प्रशासनिक अक्षमता के लिए तैयार नहीं कर सकता था. क्या अभी इससे भी बुरा देखना बाकी है?"

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'प्रशासनिक अधिकारियों ने वैधानिक जिम्मेदारी त्याग दी'

भारत में कोरोना वायरस की दूसरी वेव के बीच कुंभ मेले का आयोजन होने दिया गया. इसमें लाखों लोग हिस्सा लेने के लिए उत्तराखंड के हरिद्वार पहुंचे हैं. सरकार के इस फैसले पर कई सवाल उठाए गए. ये आखिरकार किसकी गलती है?

इस पर रिटायर्ड आईएएस अफसर शैलजा चंद्रा ने क्विंट के लिए लिखे एक लेख में कहा कि ‘इस मौजूदा स्थिति के दोषी सारे राजनेता, सार्वजनिक संस्थाएं और प्रशासन समान रूप से हैं.’

केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग की पूर्व सचिव और दिल्ली की पूर्व मुख्य सचिव रह चुकी हैं चंद्रा ने कहा, "प्रशासनिक अधिकारियों ने अपनी वैधानिक जिम्मेदारी की भूमिका त्याग कर उसे गैर वैधानिक हाथों में सौंप दिया है."

शैलजा ने महामारी के बीच कुंभ कराने को लेकर कहा, "आज हम गंभीर आपातकाल का सामना कर रहे हैं, जिसका मुख्य कारण बड़ी सभाओं द्वारा महामारी का प्रसार और सक्षम संस्थाओं द्वारा ना उठाया गया प्रभावी कदम है. अधिकारियों द्वारा निष्क्रिय रूप से हाथ पर हाथ धरे बैठना और राजनीतिक आकाओं के आदेशों का इंतजार करते हुए महामारी प्रसार की स्थिति बने रहने देना एक आपराधिक काम था."

'भारत में अच्छा नेतृत्व नहीं देखा गया'

भारत में कोरोना संक्रमण बेकाबू होने पर पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव के सुजाता राव कहती हैं कि देश के सामने लक्ष्य साफ है लेकिन नीति तर्कयुक्त नहीं है. राव ने क्विंट में अपने लेख में कहा कि 'केंद्र और राज्य स्तर के राजनीतिक नेतृत्व ने अपने फायदे के लिए कुंभ जैसे कार्यक्रम होने दिए.'

सुजाता राव ने कहा, "ऐसे मौकों पर प्रभावी नेतृत्व में कुछ चीजें होनी चाहिए- लक्ष्य क्या है इस पर स्पष्टीकरण, इसे हासिल करने के लिए सही लोगों को अथॉरिटी देना और उन्हें जरूरी फंडिंग देना, मौजूदा सच्चाई पर लोगों को विश्वास में लेना, उनके डर और असुरक्षा दूर करने को लेकर कार्रवाई करना, निर्णय और जिम्मेदारी लेना और इन मामलों पर समझदार लोगों की बात सुनना."

“भारत ने इस क्राइटेरिया को पूरा करने वाला नेतृत्व अभी तक देखा नहीं है. पीएम और गृह मंत्री का ध्यान मार्च से चुनावों पर था और इससे महत्वपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर और सप्लाई में रुकावटें और दिक्कत आई.” 
के सुजाता राव

सुजाता राव ने कहा कि महामारी से लड़ने के लिए सरकार और नेतृत्व के पास सबसे जरूरी चीज पारदर्शिता और लोगों के साथ बातचीत करना है.

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