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14 फरवरी 2019 को पुलवामा में कायराना आतंकी हमले के दस दिनों के भीतर गृह मंत्रालय (MHA) ने CRPF जवानों के लिए जम्मू और श्रीनगर के बीच हवाई यातायात को मंजूरी दे दी थी. पुलवामा हमले में CRPF के 40 जवान शहीद हो गए थे.
हाल ही में जम्मू और कश्मीर के बनिहाल में CRPF काफिले पर एक और हमले की कोशिश हुई. इस बार काफिले में 400 जवान थे. खुशकिस्मती से ये हमला नाकाम रहा.
सवाल है कि अब भी भारी संख्या में जवानों का यातायात सड़क के जरिये क्यों हो रहा है? वो भी तब, जब सरकार ने हवाई यातायात को मंजूरी दे दी है?
द क्विंट ने CRPF के कुछ जवानों से बातचीत की और ये जानना चाहा कि सड़क यातायात के खतरों से वाकिफ होने के बावजूद इतनी कम संख्या में जवान हवाई यातायात क्यों कर रहे हैं?
हमें जो बात पता चलीं, वो वित्तीय समस्या थी.
विमानों का टिकट खर्च CRPF जवानों से अपनी जेब से वहन करने को कहा गया है, जिसका भुगतान बाद में CRPF कर देगी. CRPF के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि भुगतान में दो महीने तक का वक्त लग सकता है.
घाटी में CRPF के करीब 45,000 जवानों की तैनाती है. हर हफ्ते औसतन 2-3 CRPF काफिले का आवागमन होता है. ये CRPF और अन्य केन्द्रीय पैरामिलिट्री फोर्स और सेना की जिम्मेदारी है कि वो छुट्टी पर जा रहे जवानों को सुरक्षित नजदीकी रेलवे स्टेशन तक पहुंचाएं. श्रीनगर का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन जम्मू है.
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CRPF के प्रवक्ता ने बताया कि CRPF, एयर इंडिया और IRCTC के साथ जम्मू और श्रीनगर के बीच जवानों का यातायात सुगम बनाने के लिए बातचीत कर रहा है. लेकिन उन्होंने ये नहीं बताया कि वार्ता की प्रक्रिया कब तक चलेगी. CRPF के पूर्व अधिकारी वीपीएस पंवार के मुताबिक एयर इंडिया की उड़ानें भी समस्या का वास्तविक समाधान नहीं हैं.
द क्विंट ने पहले बताया था कि CRPF अधिकारियों ने MHA से पुलवामा आतंकी हमले का सामना करने वाले काफिले के लिए हवाई यातायात की सुविधा उपलब्ध कराने का निवेदन किया था, लेकिन निवेदन पर ध्यान नहीं दिया गया.
ये भी बताया गया था कि जनवरी 2019 में BSF ने जम्मू और कश्मीर में फंसे हुए BSF जवानों को हवाई मार्ग से निकालने का निवेदन किया था, लेकिन उस निवेदन को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.
BSF के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सर्दियों के दौरान बर्फ में फंसे जवानों के लिए यातायात काफी मुश्किल भरा हो जाता है. इसी कारण कभी-कभार MHA से मदद मांगी जाती है.
BSF अधिकारी ने ये भी बताया कि हवाई यातायात की सुविधा उपलब्ध न होने पर जवानों का आवागमन सड़क से कराना पड़ता है.
घाटी में केन्द्रीय पैरा मिलिट्री फोर्सेज के अलावा सेना भी भारी संख्या में तैनात है.
सेना के लिए:
ये बेहद आश्चर्यजनक तथा दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार को तभी सुरक्षा बलों के कल्याण का ख्याल आता है, जब कोई बड़ा हादसा हो जाता है. जबकि सुरक्षा बलों के लिए हवाई यातायात जैसी बुनियादी सुविधाएं सालों पहले शुरु हो जानी चाहिए थीं.
और अब, जब कहने को उन्हें ये सुविधा मिल गई है, एक तो ये महंगी है, और ये भी तय नहीं कि हर जवान को ये सुविधा मिल पाएगी, या नहीं.
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