Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019अर्श से फर्श तक: कठुआ मामले की वकील दीपिका राजावत की दास्तां

अर्श से फर्श तक: कठुआ मामले की वकील दीपिका राजावत की दास्तां

कठुआ मामले के एक साल बाद वकील दीपिका सिंह राजावत की जिंदगी में उतार-चढ़ाव जारी है.

ऐश्वर्या एस अय्यर
भारत
Updated:
कठुआ मामले के एक साल बाद वकील दीपिका सिंह राजावत की जिंदगी में उतार-चढ़ाव जारी है.
i
कठुआ मामले के एक साल बाद वकील दीपिका सिंह राजावत की जिंदगी में उतार-चढ़ाव जारी है.
(इलस्ट्रेशन: अरूप मिश्रा/क्विंट)

advertisement

“मैं भूल नहीं सकती कि 2018 में किस प्रकार मुझे खरी-खोटी सुनाई गई और किस प्रकार मुझे सम्मानित किया गया और समर्थन मिला – सब कुछ उस पहली मुलाकात से शुरु हुआ.” वकील दीपिका राजावत विस्तार से बताती हैं कि किस प्रकार कठुआ रेप पीड़ित आफरीन* के माता-पिता जम्मू का उन्होंने स्वागत किया था. वो समय पिछले साल, यानी साल 2018 में यही फरवरी का महीना था, जब वकील राजावत ने कठुआ रेप तथा हत्या पीड़ित के परिजनों का प्रतिनिधित्व करना शुरू किया था.

राजावत की आंखों को सबसे पहले एक ही बात दिखी थी. आफरीन और उसकी मां की आंखें बिलकुल एक जैसी थीं.

(इलस्ट्रेशन: अरूप मिश्रा/क्विंट)

राजावत को शायद ही ये अहसास था कि ये मामला अब तक की उनकी जिंदगी का सबसे यादगार मामला साबित होगा. ये मामला उन्हें शोहरत की बुलंदियों तक पहुंचाएगा और उन्हें धूल भी चटाएगा. और ये सबकुछ एक वर्ष के भीतर देखना पड़ेगा.

उन्होंने एक पत्रकार मित्र के जरिये आफरीन के माता-पिता तक पहुंचने का फैसला किया था. सबकुछ शुरु हुआ था फेसबुक के एक पोस्ट से. द क्विंट को बीती बातें बताते हुए राजावत बीच-बीच में अपनी भावनाओं पर नियंत्रण खो देती थीं.

इस मामले में उनकी दिलचस्पी कोर्ट में दाखिल चार्जशीट में घटना के वीभत्स विवरण से काफी पहले जाग चुकी थी. मध्य अप्रैल 2018 में दाखिल पुलिस की चार्जशीट में कहा गया था कि मुस्लिम घुमंतु जनजाति की गुज्जर बकरवाल लड़की का 10 जनवरी 2018 को अपहरण किया गया. उसे नशे की हालत में लगातार हवस का शिकार बनाया गया और एक हिन्दू देवस्थान में छिपाकर रखा गया. 17 जनवरी को उसकी लाश कठुआ के रसाना जंगलों में पाई गई.

फेसबुक पोस्ट पढ़कर आफरीन के माता-पिता से मुलाकात

एक शाम राजावत फेसबुक पोस्ट देख रही थीं, तभी उन्हें आफरीन से जुड़े कई पोस्ट देखने को मिले. उनमें दिये गए वीभत्स विवरणों से वो हिल गईं. “आफरीन की उम्र आठ वर्ष थी. मेरी बेटी अष्टमी सिर्फ छह वर्ष की है.” राजावत ने कहा, जो पति से अलग होने के बाद अकेले अपनी बेटी को पाल-पोस रही हैं.

(इलस्ट्रेशन: अरूप मिश्रा/क्विंट)

फौरन उन्होंने पीड़ितों की मदद करने का फ़ैसला कर लिया. बिना वक्त गंवाए उन्होंने अपनी कोशिश शुरु कर दी, “मैंने अपने एक पत्रकार मित्र को बुलाया और उनसे मुलाकात करने में मदद करने की गुजारिश की. उसके जरिये मैं एक स्थानीय गुज्जर कार्यकर्ता के सम्पर्क में आई, जिसे उनकी रिहाइश के बारे में जानकारी थी.”

कुछ ही दिनों में वो पीड़िता के घरवालों से मुलाकात करने में कामयाब रहीं. रफीजा* और आरिफ* उनके सामने नर्वस और घबराए हुए बैठे थे. राजावत ने बातचीत की शुरुआत की, “सबसे पहले मैंने उनकी बेटी की मृत्यु पर अफसोस जताया. मैंने उनका दर्द अपने रुह में महसूस करने की कोशिश की. मैं जानती थी कि कानूनी रूप से अगला कदम क्या होना चाहिए. पूरी व्यवस्था आरोपियों के पक्ष में थी. उनके समर्थन में रैलियां निकाली जा रही थीं. मैंने उन्हें समझाया कि चूंकि अपराध शाखा जांच कर रही है, लिहाजा हाई कोर्ट से जांच की निगरानी कराना ज़रूरी है. उन दोनों को कानून के बारे में जानकारी नहीं थी, इसलिए मुझे इस कदम की अहमियत समझाने में खासी मशक्कत करनी पड़ी.” उन्होंने बताया. दरअसल आफरीन के माता-पिता के वकील के रूप में राजावत ने सबसे पहले यही किया. उन्होंने बताया कि उन्हें मालूम था कि अगर जांच प्रक्रिया की निगरानी नहीं की गई, तो सही प्रकार से जांच नहीं की जाएगी. उसी महीने जम्मू उच्च न्यायालय में उन्होंने एक याचिका दायर की.

गर्व भरी आंखों से उन्होंने बताया, “माननीय हाई कोर्ट ने मामले का इतनी गंभीरता से संज्ञान लिया कि हाई कोर्ट के आदेश के कुछ ही दिनों के भीतर एक या दो लोगों को छोड़कर सभी आरोपियों की गिरफ्तारियां हो गईं.”

अब तक राजावत का नाम कठुआ बलात्कार कांड के साथ अभिन्न रूप से जुड़ चुका था.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

मामला पठानकोट कोर्ट तक क्यों और कैसे पहुंचा?

उनकी बढ़ती लोकप्रियता के बीच पुलिस ने अपनी जांच पूरी की और 9 अप्रैल 2018 को कठुआ के सम्बंधित कोर्ट में अपनी चार्ज शीट दाखिल करने गई. “मुझे जानकारी मिली कि कठुआ बार एसोसियेशन के वकीलों ने किस प्रकार चार्ज शीट दाखिल करने से पुलिस को रोका.” राजावत ने बताया. उस वक्त राजावत कोर्ट में नहीं थीं, लेकिन उन्हें अपने सहयोगियों से इस घटना के बारे में पता चला. उन्हें मालूम हुआ कि किस प्रकार भारी संख्या में वकीलों ने जमावड़ा लगाकर पुलिस जांच के खिलाफ नारे लगाए.

(इलस्ट्रेशन: अरूप मिश्रा/क्विंट)

अपराध शाखा की जांच से नाखुश बार एसोसियेशन ने बंद का आह्वान किया. उन्होंने मामले की सीबीआई जांच की भी मांग की. इस बीच राजावत अपनी तारीखों पर हाजिर होती रहीं. उसी दौरान वो जम्मू बार एसोसियेशन के अध्यक्ष बी एस स्लाथिया के साथ हुई अपनी मुलाकात को याद करती हैं, जिन्होंने उनसे कहा था, “अगर आप खुद (केस के लिए) हाजिर होना नहीं छोड़ती हैं, तो मुझे मालूम है कि आपको कैसे रोका जाए. गंध फैलाने की जरूरत नहीं है.” उन्होंने बताया कि इस धमकी ने उन्हें डरा दिया था. साथ ही वो सोशल मीडिया पर भी नफरत भरी प्रतिक्रियाओं का सामना कर रही थीं. “मुझपर आरोप लगे कि मैं हुर्रियत के लिए काम कर रही हूं, मैं कश्मीरी पंडितों को जम्मू से भी बाहर निकालना चाहती हूं, मैं राजपूत नहीं हूं.” राजावत ने बताया.

जब द क्विंट ने सम्पर्क किया तो स्लाथिया ने स्वयं पर लगे आरोपों से इंकार किया. उन्होंने कहा कि उन्होंने निश्चित रूप से राजावत को मामले की पैरवी करने से रोका था, लेकिन विनम्रता के साथ.

आफरीन के माता-पिता को निचली अदालत के हंगामों या अन्य वकीलों की राजावत से नाराजगी के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं थी. वो अपनी बकरियों, भेड़ों और घोड़ों के साथ गर्मियों में कश्मीर जाने के रास्ते में थे. वो जम्मू से करीब 120 किलोमीटर दूर पटनी टॉप पर पहुंचे थे कि हंगामा होना शुरु हुआ. “मेरी टीम वहां से उन्हें वापस लाई. मामले को जम्मू से बाहर ले जाने के लिए उनकी सहमति जरूरी थी.” उन्होंने उस शाम महसूस की गई तत्काल कार्रवाई करने की ज़रूरतों को याद करते हुए विस्तार से बताया.

कागजी कार्रवाई कुछ ही दिनों में पूरी हो गई. लेकिन राजावत चाहती थीं कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का कोई प्रमुख वकील शामिल हो. लिहाजा वो वरिष्ठ वकील इन्दिरा जयसिंह के पास गईं. “मैं चाहती थी कि मामले की सुनवाई जम्मू से बाहर हो और मामले के साथ कोई बड़ा नाम जुड़ा हो, ताकि मदद मिले. इसी कोशिश के बाद पिछले वर्ष 7 मई को मामले का तबादला पठानकोट की कोर्ट में हुआ.”

(इलस्ट्रेशन: अरूप मिश्रा/क्विंट)

भारी नफरत का सामना करने के बावजूद राजावत को कामयाबी मिली थी. ये उनकी शोहरत का चरम था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के बाहर “शांतिपूर्ण मुद्रा” में जीत के गर्व के साथ मीडिया से बातें करते समय उन्हें कतई विश्वास न था, कि उनका गर्व बहुत जल्द चकनाचूर होने वाला है. जब वो दिल्ली में थीं, तो अष्टमी ने उनसे फोन पर पूछा था, “मम्मा आप कब आएंगी?” उस दौरान अष्टमी की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ रहा था. “मुझे उसके स्कूल के टीचर्स से काफी कुछ सुनना पड़ता था. वो अक्सर अपना होम वर्क नहीं कर पाती थी. लेकिन उसने एक बार भी शिकायत नहीं की.” सबकुछ याद करते हुए उन्होंने सुकून जताया कि अष्टमी की पढ़ाई अब बेहतर है.

राजावत को विश्वास था कि उनकी सारी परेशानियां दूर हो चुकी हैं और उनका काम पूरा हो चुका है. “मेरे लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के साथ मामला खत्म हो गया था. मुझे इस मामले में राज्य का स्पेशल पब्लिक प्रोसेक्यूटर नहीं बनाया गया था. मेरे पास केस लड़ने का अधिकार नहीं था.” उन्होंने बताया कि इस केस की पैरवी अब वरिष्ठ पब्लिक प्रोसेक्यूटर कर रहे थे.

पठानकोट में सुनवाई और मामले से बर्खास्तगी

राजावत बताती हैं, कि जब पठानकोट में कठुआ बलात्कार-हत्या मामले की सुनवाई के शुरुआती दिनों में आरोप तैयार किया जा रहे थे उस समय वो जम्मू में एक दूसरे मामले की तैयार कर रही थीं. “एक 14-15 वर्ष की लड़की का बलात्कार उसी के तीन भाईयों ने किया था और वो मेरी मदद चाहती थी. इसी कारण शुरुआती तारीखों में मैं पठानकोट नहीं गई.”

हालांकि अपना काम पूरा करने के बाद अब इस केस से उनकी दूरी बन चुकी थी, लेकिन सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ नफरत की बौछार तेज होती गई. दूसरी ओर उनके राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय मंचों में सम्मानित होने का सिलसिला भी शुरु हो चुका था.

लेकिन अगले झटके के बारे में राजावत ने सपने में भी नहीं सोचा था. छह महीने बाद, 15 नवम्बर 2018 को आफरीन के पिता आरिफ ने एक अर्जी लगाई, जो मामले से उनकी बर्खास्तगी से जुड़ी थी. “मामले का तबादला पठानकोट होने के बाद उन्होंने दिलचस्पी लेना छोड़ दिया है. वो कभी कोर्ट में नहीं आईं.” आरिफ़ ने बताया कि वकील ने उन्हें ये अर्जी दाखिल करने की सलाह दी, जिसे उन्होंने मान लिया.

बर्खास्तगी से राजावत को भारी धक्का पहुंचा. अब तक हर रोज नफरत का सामना करते हुए उन्हें इस बात का संतोष था कि उन्होंने मामले की त्वरित सुनवाई कराने की दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है. लेकिन अब उन्हें वैधानिक तथा स्पष्ट रूप से उस मामले से हटा दिया गया था, जिसे उन्होंने परवान चढ़ाया था. वो खुद को बिलकुल परित्यक्त महसूस करने लगीं.

“मैंने कोई गलती नहीं की थी. मैं बिलकुल निर्दोष थी. फिर भी मुझे तरह-तरह के आरोपों का सामना करना पड़ रहा था – ‘उसने जमकर कमाया है,’ ‘उसने पैसों के लिए ये मामला लिया था,’ ‘वो सिर्फ शोहरत कमाने के लिए काम कर रही थी,’ आदि. इन आरोपों ने मुझे दुख पहुंचाया और मेरा आत्मविश्वास हिल गया.” उन्होंने दर्द भरी आवाज में कहा. द क्विंट से बात करते हुए राजावत बार-बार फूट पड़तीं. अब सोशल मीडिया पर एक भी कड़वी बात उन्हें परेशान करने तथा उनका आक्रोश बढ़ाने के लिए काफी है. इन हालात से वो उबरने की कोशिश कर रही हैं.

आरोपों से लड़ने का हौसला और अब घर छोड़ने की मजबूरी


हालात उस वक्त और खराब हो गए, जब उन्हें महबूबा मुफ्ती के मुख्यमंत्री रहते मिला सरकारी आवास खाली करने को कहा गया. पहले से हताश-निराश राजावत अब एक आशियाने की तलाश में परेशान हैं.
उन्होंने बताया कि 20 जून 2018 को जैसे ही पीडीपी-बीजेपी की सरकार गिरी, सरकारी अधिकारियों ने उनसे आवास खाली करने को कहा.

(इलस्ट्रेशन: अरूप मिश्रा/क्विंट)

‘मैडम आप घर खाली कर दें या फिर हमें आपको घर से निकालने के लिए पुलिस से कहना पड़ेगा.’ उन्होंने बताया कि कई बार अधिकारी उनके दरवाजे पर आ धमके. आखिरकार एक दिन उनकी बेटी ने उनसे पूछ ही डाला, “अम्मा, अब हम कहां जाएंगे?” उनकी बेटी के सवाल ने उनके दिल को झकझोरकर रख दिया. वो बार-बार अधिकारियों से घर खाली करने के लिए थोड़ा वक्त देने के लिए मिन्नतें करती रहीं.
“जम्मू में कोई भी मुझे किराये पर घर देने को तैयार नहीं. क्योंकि मेरे भ्रष्ट होने, देशद्रोही होने या समुदाय के लोगों को समर्थन न देने की बात चारों ओर फैल गई है.” उन्होंने कहा कि जिस प्रॉपर्टी डीलर को उन्होंने घर दिलाने को कहा है उसने कई बार बताया कि दीपिका सिंह राजावत का नाम सुनते ही लोगों का जवाब ना होता है.
राजावत कहती हैं कि वो ये सोचकर स्तब्ध हैं कि सालभर पहले फरवरी की ठंड में आफरीन के माता-पिता से मुलाकात उन्हें परेशानियों के इस पड़ाव तक पहुंचा देगा. “मुझे इस बात का बिलकुल अहसास नहीं था कि मुझे इतना कुछ झेलना पड़ेगा. मुझे बिलकुल मालूम नहीं था कि ये मामला मुझे इतनी शोहरत दिलाएगा और फिर बिलकुल ही फर्श पर गिरा देगा.” दर्द भरी आवाज में उन्होंने कहा. कठुआ की ये वकील अब भी सकते में है कि किस प्रकार एक ही वर्ष में उनकी ज़िंदगी अर्श से फर्श पर आ गई.
(*पहचान छिपाने के लिए नाम बदल दिए गए हैं)

देखें वीडियो - कठुआ केस: याद और डर के बीच दोनों मां कर रही हैं इंसाफ का इंतजार

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 06 Feb 2019,09:53 AM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT