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दिल्ली-एनसीआर में पिछले कुछ दिनों से धूल से भरी धुंध छाई हुई है. इससे लोगों को गर्मी से थोड़ी राहत तो मिली, लेकिन हवा का प्रदूषण काफी बढ़ गया. धूल भरी धुंध क्या है, इसका असर कितने दिनों तक और रह सकता है, इस बारे में जानना जरूरी है.
मामला इतना गंभीर है कि इस बारे में दिल्ली के उपराज्यपाल को बैठक बुलानी पड़ी. गुरुवार को मीटिंग में कई फैसले किए गए हैं. दिल्ली में 17 जून तक किसी भी तरह के निर्माण कार्य पर रोक लगा दी गई है. प्रदूषण के लिए सड़कों पर पानी का छिड़काव किए जाने का इंतजाम किया जा रहा है.
दरअसल, दिल्ली के तमाम इलाकों में एयर क्वालिटी इंडेक्स में पीएम 10 का स्तर 500 से ऊपर चला गया है, जो कि बहुत गंभीर माना जाता है.
पूर्वी दिल्ली के आनंद विहार इलाके में गुरुवार सुबह पीएम 10 का स्तर 929 और पीएम 2.5 का स्तर 301 मापा गया, जबकि दिल्ली के आरके पुरम में एयर क्वालिटी इंडेक्स का लेवल इंडेक्स 900 पार कर गया. इसके अलावा आईटीआई जहांगीरपुरी, रोहिणी का शहीद सुखदेव कॉलेज और मंदिर मार्ग के इलाको में हवा की क्वालिटी बेहद खराब रही.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि अगले तीन-चार दिन तक धूल भरी आंधी चल सकती है. दिल्ली में इस बार की गर्मी में वैसे भी कई बार सिर्फ धूल भरी आंधी आई, जिसके बाद बारिश नहीं हुई. जो कि अमूमन गर्मियों में देखने को नहीं मिलता है.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बताया कि पश्चिमी भारत, खास तौर से राजस्थान में धूल भरी आंधी चलने के कारण दिल्ली-एनसीआर में इसका असर देखने को मिल रहा है. हवा में मोटे कणों की मात्रा बढ़ गई और क्वालिटी एकदम खराब हो गई है.
सीपीसीबी ने कहा कि इस बार गर्मियों में प्रदूषण पिछले साल से काफी अलग है. नवंबर में भी दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में पीएम 2.5 और पीएम 10 का स्तर बढ़ गया था. इस बार प्रदूषण का स्तर बढ़ने के पीछे हवा में मोटे कणों की मात्रा बढ़ना वजह है.
0 से 50 के बीच के एयर क्वालिटी इंडेक्स को ‘अच्छा' माना जाता है, 51-100 के बीच को ‘संतोषजनक', 101-200 के बीच को ‘मध्यम', 201-300 को ‘खराब', 301-400 को ‘बहुत खराब' और 401-500 ‘खतरनाक' माना जाता है.
पार्टिकुलेट मैटर ज्यादा होने की वजह से प्रदूषण खतरनाक तक स्तर तक पहुंच जाता है. पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 सल्फर डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और धूल के कण का मिला-जुला रूप है, जिनका आकार बहुत ही छोटा होता है. ये कण हमारी नाक के बालों से भी नहीं रुकते और फेफड़ों और यहां तक कि खून में भी पहुंच जाते हैं. इससे फेफड़ों के साथ-साथ दिल पर भी बुरा असर पड़ता है.
पीएम 10 को रेस्पायरेबल पर्टिकुलेट मैटर कहते हैं. इन कणों का साइज 10 माइक्रोमीटर होता है.
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