गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण की रोकथाम के लिए सरकार ने अहम फैसला किया है. दिल्ली में भारत स्टेज-6 यानी BS-VI लेवल के डीजल-पेट्रोल की आपूर्ति अब 1 अप्रैल 2018 से होगी. इससे पहले BS-VI लेवल को 2020 से लागू करने की तैयारी थी. पेट्रोलियम मंत्रालय ने अप्रैल 2019 से पूरे दिल्ली-NCR में इसे संभव बनाने के लिए विचार करने को कहा है.
इस पूरी पहल के बीच ये जानना जरूरी है कि सड़क पर दौड़ती ये गाड़ियां कितना प्रदूषण फैलाती हैं? साथ ही क्या फैसले के बाद प्रदूषण से जंग में 'सांस' को जीत हासिल हो पाएगी?
आखिर इसकी जरूरत क्या है?
BS का मतलब है भारत स्टेज और ये एमिशन नॉर्म्स हैं, यानी गाड़ियों से होने वाले उत्सर्जन के मानक. बीएस के आगे जो संख्या है- 2, 3, 4 या 6 उसके बढ़ते जाने का मतलब है उत्सर्जन (एमिशन) के बेहतर मानक जो पर्यावरण के अनुकूल हैं.
बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी एक रिपोर्ट में IIT दिल्ली के प्रोफेसर दिनेश मोहन वायु प्रदूषण की वजहों का जिक्र कर रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली की हवा में 2.5 PM की मात्रा का 17 फीसदी ट्रांसपोर्ट की वजह से है. बता दें कि हवा में PM 2.5 की मात्रा 200 प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक होते ही ये खतरनाक हो जाती है. इसकी मात्रा 400 प्रति क्यूबिक मीटर या उससे ऊपर जाना स्वस्थ लोगों को भी बीमार कर सकता है.
Q-जानकारी: पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 सल्फर डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और धूल के कण का मिला जुला रूप है जिनका आकार बहुत ही छोटा होता है. ये कण हमारी नाक के बालों से भी नहीं रूकते और फेफड़ों और यहां तक खून में भी पहुंच जाते है. इससे फेफड़ों के साथ-साथ दिल पर भी बुरा असर पडता है.
ट्रांसपोर्ट ही नहीं, सबसे बड़ा 'विलेन' है कंस्ट्रक्शन
ऐसा नहीं है कि ट्रांसपोर्ट ही प्रदूषण को फैलाने में सबसे बड़ी वजह है. रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रांसपोर्ट, ईट भट्टी और पॉवर प्लांट भी अलग-अलग ट्रांसपोर्ट के ही बराबर मात्रा में PM 2.5 पार्टिकल का इमिशन करते हैं. वहीं हवा में सल्फर डाई ऑक्साइड की सबसे ज्यादा मात्रा भी ईट भट्टी, पॉवर प्लांट्स के जरिए आती है.
ऐसे में ये रिपोर्ट कहती है कि ईंट भट्टी को कंस्ट्रक्शन में शामिल करने के बाद कुल PM 2.5 का 50 फीसदी कंस्ट्रक्शन के कारण ही हवा में है. साथ ही वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार कारक सल्फर डाई ऑक्साइड का भी 90 फीसदी तक उत्सर्जन इसी सेक्टर से होता है. जरूरत है कुछ ऐसे नियमों का जिससे लंबे समय तक इस समस्या का हल निकल सके.
चलते-चलते ये जान लीजिए कि आखिर बीएस स्टैंडर्ड को लागू कौन करता है?
बीएस मानक देश का सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड- सीपीसीबी तय करता है और देश में चलने वाली हर गाड़ी के लिए इन मानकों पर खरा उतरना जरूरी है. इसके जरिए ही गाड़ियों से निकलने वाले धुएं से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रण में रखा जाता है. बीएस के आगे जितना बड़ा नंबर है, उस गाड़ी से होने वाला प्रदूषण उतना ही कम है.
1 अप्रैल 2017 से BS-IV लागू हो चुका है
मंत्रालय इससे पहले एक अप्रैल 2017 से BS-IV लेवल को देश भर में लागू कर चुका है. सरकार ने इस दिशा में आगे कदम उठाते हुए कई पक्षों से बातचीत के बाद BS-IV से सीधा BS-VI लेवल पर जाने का निर्णय किया था. जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस क्षेत्र में हो रही बेहतरी को भारत में भी अपनाया जा सके.
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