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दिल्ली की बत्ती हो सकती है गुल, अगले दो दिन में ब्लैकआउट का बड़ा खतरा

भारत के Coal से चलने वाले 135 बिजली संयंत्रों में से आधे से अधिक के पास तीन दिनों से भी कम समय का स्टॉक बचा

क्विंट हिंदी
भारत
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<div class="paragraphs"><p>दिल्ली में ब्लैकआउट का खतरा</p></div>
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दिल्ली में ब्लैकआउट का खतरा

(फोटो- क्विंट)

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अभी भी भारत के सुदूर गावों की एक बड़ी आबादी दिन भर में कुछ घंटों के लिए बिजली देखने की आदी है, लेकिन अब राजधानी दिल्ली (Delhi) की जनता पर ब्लैकआउट का खतरा मंडरा रहा है. दिल्ली सरकार ने 9 अक्टूबर को कहा कि अगर बिजली उत्पादन करने वाले पॉवर प्लांटों को होने वाली कोयले की आपूर्ति (coal supplies) में सुधार नहीं हुआ तो अगले दो दिनों में राष्ट्रीय राजधानी में ब्लैकआउट (Blackout) हो सकता है.

क्यों मंडरा रहा है दिल्ली पर “बत्ती-गुल” होने का खतरा ?

इसका सीधा कारण है बिजली उत्पादन करने वाले प्लांटों में मौजूदा कोयले की कमी. दिल्ली के अलावा तमिलनाडु, ओडिशा सहित कई ऐसे राज्य हैं जिन्होंने बिजली संयंत्रों में कोयले की कमी के कारण लंबी बिजली कटौती पर चिंता जताई है.

दिल्ली सरकार की मानें तो नियम के मुताबिक कोयले से चलने वाले पॉवर प्लांटों को एक महीने का न्यूनतम कोयला स्टॉक रखना होता है, लेकिन दिल्ली के पास केवल एक दिन का स्टॉक बचा है. दिल्ली के ऊर्जा मंत्री सत्येंद्र जैन ने कहा कि,

“कोयले की आपूर्ति में सुधार नहीं हुआ तो दो दिन में दिल्ली में ब्लैकआउट हो जाएगा. दिल्ली को बिजली की आपूर्ति करने और कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों को एक महीने का न्यूनतम कोयला स्टॉक रखना होता है, लेकिन अब यह घटकर एक दिन रह गया है.”

केजरीवाल सरकार में मंत्री सतेंद्र जैन ने कहा कि "केंद्र से हमारा अनुरोध है कि रेलवे वैगनों की व्यवस्था की जाए और कोयले को जल्द से जल्द संयंत्रों तक पहुंचाया जाए. सभी संयंत्र पहले से ही केवल 55 प्रतिशत क्षमता पर चल रहे हैं"

हालत ये है कि उत्तर और उत्तर पश्चिमी दिल्ली क्षेत्रों में बिजली की आपूर्ति करने वाली कंपनी- TPDDL- ने अपने ग्राहकों को बिजली का विवेकपूर्ण उपयोग करने का आग्रह करते हुए एसएमएस भेजना शुरू कर दिया है.

भारत में क्यों है कोयले की कमी ?

भारत दुनिया में कोयले के सबसे बड़े उपभोक्ताओं में से एक है और इसकी गंभीर कमी से गुजर रहा है. पड़ोसी देश चीन भी इसी तरह के संकट से गुजर रहा है, जिसे इससे पार पाने के लिए फैक्ट्रियों और स्कूलों को बंद करना पड़ रहा.

रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के 135 कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों में से आधे से अधिक के पास तीन दिनों से भी कम समय का स्टॉक बचा है.
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विशेषज्ञों की माने तो कोविड -19 महामारी से उबरती अर्थव्यवस्था में बिजली की मांग में तेज वृद्धि और इसके आपूर्ति के मुद्दों के कारण कोयले की कमी हो गई है. कोविड महामारी से पहले भारत में अगस्त 2019 में 106 बिलियन यूनिट बिजली की खपत हुई थी लेकिन अगस्त 2021 में यह बढ़कर 124 बिलियन यूनिट तक पहुंच गयी है.

कोयले की आपूर्ति की कमी के अन्य प्रमुख कारण है अप्रैल-जून 2021 के बीच थर्मल पावर प्लांटों द्वारा सामान्य से कम इसका स्टॉक तैयार करना. साथ ही अगस्त और सितंबर के बीच कोयला भंडार वाले क्षेत्रों में लगातार बारिश हुई है, जिससे उत्पादन कम हुआ और कोयला खदानों से कोयले की सप्लाई कम हुई.

इससे पहले कब करना पड़ा था ब्लैकआउट का सामना ?

लगभग 9 साल पहले 30-31 जुलाई 2012 को भारत के 22 राज्यों के लोगों ने भारत का सबसे बड़ा ब्लैकआउट झेला था. भारत की लगभग आधी आबादी (60 करोड़) ने इसका प्रभाव झेला.

ग्रिड फेल हो जाने के बाद हुए इस ब्लैक आउट के कारण रेल सेवाएं ठप पड़ गई. दिल्ली मेट्रो की सभी लाइने बंद करनी पड़ी थी और लोगों को रुकी मेट्रो से निकाला गया था. कई घंटों तक एयरपोर्ट को बंद रखना पड़ा था. इस ब्‍लैकआउट में 80% पावर को वापस बहाल करने में 15 घंटे का समय लग गया था.

इसके अलावा दिल्ली वासियों को जून 2009 का समय भी याद होगा. भीषण गर्मी के बीच हर रोज 10-12 घंटे बिजली नहीं रहती थी. हालत यह थी कि ¼ ट्रैफिक लाइट्स भी बिजली आपूर्ति में कमी के कारण काम नहीं कर रहे थे.

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Published: 09 Oct 2021,07:06 PM IST

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