भारत का पावर सेक्टर एक बड़े संकट से गुजर रहा है, क्योंकि इसके कोयले से चलने वाले पावर प्लांट, जो भारत की 70 प्रतिशत बिजली पैदा करने के लिए जिम्मेदार हैं, कोयले के भंडार की कमी का सामना कर रहे हैं.
सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी (CEA) के आंकड़ों के मुताबिक, देश के 135 कोयले से चलने वाले पावर प्लांट्स में से आधे से ज्यादा के पास सितंबर के आखिर में औसतन चार दिनों से कम कोयले का स्टॉक बचा था, जो कि अगस्त की शुरुआत 13 दिनों के औसत से कम है.
आमतौर पर, अक्टूबर-नवंबर में त्योहारी सीजन के साथ ही भारत में औद्योगिक और घरेलू बिजली की खपत चरम स्तर पर पहुंच जाती है. उच्च बिजली की खपत, भारत की अर्थव्यवस्था को तेज गति से बढ़ने और कोविड से पूर्व स्तरों पर वापस आने का अवसर देती है.
हालांकि, कोयले के भंडार की कमी और संभावित बिजली संकट के कारण, ऐसा लगता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने में कुछ समय लग सकता है.
लेकिन कोयले की कमी कितनी गंभीर है? क्या लोगों को बिजली कटौती का भी सामना करना पड़ेगा? समझिए.
Coal Crisis:क्यों आया भारत में कोयले का इतना बड़ा संकट? क्या ब्लैकआउट का डर?
1. कोयले के भंडार में कमी के पीछे क्या कारण हैं?
भारत में कोयले से चलने वाले पावर प्लांट्स द्वारा उत्पन्न 70 प्रतिशत बिजली में से लगभग तीन-चौथाई, घरेलू खनन कोयले का उपयोग करके उत्पन्न होती है, जबकि बाकी बची चौथाई ऊर्जा आयात किए हुए कोयले का उपयोग करके उत्पन्न की जाती है.
जैसे-जैसे दुनिया के बाकी हिस्सों में अर्थव्यवस्थाएं खुल रही हैं, कोयले जैसे बिजली उत्पादन ईंधन के आयात की मांग बढ़ गई है.
मांग में इस वृद्धि के कारण कोयले के वैश्विक मूल्य में भी बढ़ोतरी हुई है.
Expand2. क्या बिजली में कटौती होगी?
हालांकि, बिजली की कमी पहले से ही देखने को मिल रही है, जबकि बिजली मंत्रालय के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 4 अक्टूबर को उपलब्ध बिजली आपूर्ति और पीक डिमांड के बीच का अंतर 4 गीगावाट से ज्यादा हो गया. ये संभावना कम है कि पावर जेनरेशन प्लांट्स के पास पूरी तरह से ईंधन खत्म हो जाएगा.
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा कि कोयले के मौजूदा स्तर के संबंध में, स्थिति सामान्य से खराब हैं. उन्होंने कहा कि ये कमी अगले पांच से छह महीने तक बनी रह सकती है.
Expand3. इसके पीछे कौन है जिम्मेदार?
CIL के मुताबिक, इस संकट के लिए थर्मल पावर प्लांट्स जिम्मेदार हैं.
मामले की जानकारी रखने वाले एक व्यक्ति ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया कि अगस्त के बाद से कोयले के स्टॉक में गिरावट आई, क्योंकि पावर यूटिलिटी ने ऐसा होने दिया. शख्स ने कहा कि मामला संबंधित अधिकारियों को भेजा गया था.
CIL ने एक बयान में कहा कि वित्त वर्ष की शुरुआत में कोयले का स्टॉक 28.4 मीट्रिक टन के स्तर पर था.
Expand4. क्या कोयला भंडार संकट जानबूझकर बनाया गया है?
कमी की रिपोर्ट्स पर आपत्ति जताते हुए, छत्तीसगढ़ के वकील सुदीप श्रीवास्तव ने कई ट्वीट्स में कहा, “पावर प्लांट्स में कोयले की भारी कमी के बारे में सरकार द्वारा लीक या प्लांट की गई खबरों पर प्लीज यकीन न करें. ये अगले सत्र में निजी कोयला खनिकों के पक्ष में Coal Bearing Area (Acquisition and Development) Act 1957 में संशोधन करने के लिए नैरेटिव सेट करने के लिए बिछाया जा रहा एक जाल है.
ऊर्जा मंत्रालय ने जानकारी दी थी कि बिजली की पीक डिमांड ने 7 जुलाई को 200.57 गीगावाट (GW) की ऑल टाइम हाई डिमांड दर्ज की थी.
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कोयले के भंडार में कमी के पीछे क्या कारण हैं?
भारत में कोयले से चलने वाले पावर प्लांट्स द्वारा उत्पन्न 70 प्रतिशत बिजली में से लगभग तीन-चौथाई, घरेलू खनन कोयले का उपयोग करके उत्पन्न होती है, जबकि बाकी बची चौथाई ऊर्जा आयात किए हुए कोयले का उपयोग करके उत्पन्न की जाती है.
जैसे-जैसे दुनिया के बाकी हिस्सों में अर्थव्यवस्थाएं खुल रही हैं, कोयले जैसे बिजली उत्पादन ईंधन के आयात की मांग बढ़ गई है.
मांग में इस वृद्धि के कारण कोयले के वैश्विक मूल्य में भी बढ़ोतरी हुई है.
उदाहरण के लिए, भारत के प्रमुख सप्लायर्स में से एक, इंडोनेशिया से कोयले के आयात की कीमत, जो मार्च में 60 डॉलर प्रति टन थी, सितंबर में बढ़कर 200 डॉलर प्रति टन हो गई, जिससे पावर प्लांट्स में आयात किया गया कोयला एक बेहतर विकल्प के तौर पर नहीं देखा जा रहा है. इसके अलावा, चीन में एक बड़ा बिजली संकट भी वैश्विक कीमतों में वृद्धि के लिए जिम्मेदार है.
क्योंकि आयात होने वाला कोयला महंगा हो गया है, इसलिए उन पावर प्लांट्स पर अतिरिक्त दबाव है, जो घरेलू रूप से खनन किए गए कोयले का इस्तेमाल करते हैं.
ईंधन का दुनिया की शीर्ष उत्पादक, सरकारी कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) भारत के घरेलू खनन कोयले का लगभग 80 प्रतिशत तैयार करती है.
उदाहरण के लिए, 2020-2021 में भारत के कुल 716 मिलियन टन (MT) कोयला उत्पादन में से, CIL ने 596 MT का उत्पादन किया था.
हालांकि, इस मॉनसून भारत के पूर्वी और मध्य राज्यों में बाढ़ के कारण, खदानों और परिवहन मार्गों की उत्पादन क्षमता प्रभावित हुई है.
भारत के कोयला सचिव, अनिल कुमार जैन ने कहा कि वर्तमान में, पावर प्लांट्स में डिलीवरी 60,000 से 80,000 टन प्रतिदिन कम है.
ये अतिरिक्त बोझ (आयातित कोयले पर घटती निर्भरता के कारण) इस तथ्य के बावजूद है कि अप्रैल से सितंबर 2021 की छह महीने की अवधि में भारत में कोयले का उत्पादन पिछले साल की समान अवधि के 282 मीट्रिक टन से बढ़कर 315 मीट्रिक टन हो गया है, जो लगभग 12 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है.
विशेष रूप से, मॉनसून के दौरान कोयले का उत्पादन आमतौर पर कम होता है, जो कम उत्पादन के लिए जिम्मेदार हो सकता है. हालांकि, पावर प्लांट्स खुद मॉनसून के मौसम से पहले अपने स्टॉक को पूरा करने में विफल रहे थे.
क्या बिजली में कटौती होगी?
हालांकि, बिजली की कमी पहले से ही देखने को मिल रही है, जबकि बिजली मंत्रालय के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 4 अक्टूबर को उपलब्ध बिजली आपूर्ति और पीक डिमांड के बीच का अंतर 4 गीगावाट से ज्यादा हो गया. ये संभावना कम है कि पावर जेनरेशन प्लांट्स के पास पूरी तरह से ईंधन खत्म हो जाएगा.
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा कि कोयले के मौजूदा स्तर के संबंध में, स्थिति सामान्य से खराब हैं. उन्होंने कहा कि ये कमी अगले पांच से छह महीने तक बनी रह सकती है.
हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि कमी के कारण अभी तक बिजली संकट नहीं हुआ है. उन्होंने कहा कि राशनिंग (कुछ क्षेत्रों के लिए बिजली की आपूर्ति में रोटेशन से कटौती) की कोई जरूरत नहीं है और उत्पादन अगले कुछ दिनों में मांग को पूरा करने में सक्षम होगा.
NDTV ने आरके सिंह के हवाले से कहा, "हम देश की मांग को पूरा कर रहे हैं, मांग बढ़ रही है."
इसके पीछे कौन है जिम्मेदार?
CIL के मुताबिक, इस संकट के लिए थर्मल पावर प्लांट्स जिम्मेदार हैं.
मामले की जानकारी रखने वाले एक व्यक्ति ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया कि अगस्त के बाद से कोयले के स्टॉक में गिरावट आई, क्योंकि पावर यूटिलिटी ने ऐसा होने दिया. शख्स ने कहा कि मामला संबंधित अधिकारियों को भेजा गया था.
CIL ने एक बयान में कहा कि वित्त वर्ष की शुरुआत में कोयले का स्टॉक 28.4 मीट्रिक टन के स्तर पर था.
चार महीने बाद भी, जुलाई के अंत में पावर यूटिलिटी में कोयले का स्टॉक 24 मीट्रिक टन था, जो पांच साल के औसत के बराबर था. अगस्त में ही पावर प्लांट्स में कोयले का स्टॉक 11 मीट्रिक टन से ज्यादा गिर गया था, क्योंकि बढ़ती मांग के कारण उत्पादन में तेजी से वृद्धि हुई थी.
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, CIL ने 29 सितंबर को कहा था, "अगर पावर यूटिलिटी ने CEA द्वारा निर्धारित 22 दिनों के मानक स्टॉक को बनाए रखा होता, तो कोयले के कम स्टॉक की स्थिति को टाला जा सकता था."
कमी को दूर करने के प्रयास में, कोयला मंत्रालय ने 5 अक्टूबर को घोषणा की थी कि कोयला खदानें, जो केवल खुद के उपयोग के लिए कोयले का उत्पादन करती हैं, जिन्हें "कैप्टिव माइंस" के रूप में जाना जाता है, को अब अपने सलाना उत्पादन का 50 प्रतिशत ओपन मार्केट में बेचने की अनुमति दी जाएगी.
कोयले के उच्च घरेलू उत्पादन पर जोर देते हुए, Mines and Minerals (Developement and Regulation) Amendment Act में इसे लेकर संशोधन किया गया था.
क्या कोयला भंडार संकट जानबूझकर बनाया गया है?
कमी की रिपोर्ट्स पर आपत्ति जताते हुए, छत्तीसगढ़ के वकील सुदीप श्रीवास्तव ने कई ट्वीट्स में कहा, “पावर प्लांट्स में कोयले की भारी कमी के बारे में सरकार द्वारा लीक या प्लांट की गई खबरों पर प्लीज यकीन न करें. ये अगले सत्र में निजी कोयला खनिकों के पक्ष में Coal Bearing Area (Acquisition and Development) Act 1957 में संशोधन करने के लिए नैरेटिव सेट करने के लिए बिछाया जा रहा एक जाल है.
ऊर्जा मंत्रालय ने जानकारी दी थी कि बिजली की पीक डिमांड ने 7 जुलाई को 200.57 गीगावाट (GW) की ऑल टाइम हाई डिमांड दर्ज की थी.
श्रीवास्तव बताते हैं कि भारत की पीक डिमांड अभी भी 2.0 लाख मेगावाट (MW) से कम है, क्योंकि पीक थोड़े समय के लिए छूता है, जबकि औसत मांग लगभग 1.5 लाख मेगावाट है.
सोलर और हाइडल एनर्जी (90,000 मेगावाट) और विंड एनर्जी से 39,000 मेगावाट की बढ़ती उत्पादन क्षमता का उल्लेख करते हुए, उन्होंने कहा कि CEA की सिफारिश के मुताबिक, भारत को कोल थर्मल प्लांट्स से लगभग 1 लाख मेगावाट की जरूरत हो सकती है, जिसके लिए एक साल में 500 मिलियन टन कोयले की जरूरत होगी.
अब, CIL खुद लगभग 600 मीट्रिक टन कोयले का उत्पादन करता है. ध्यान देने वाली बात है कि कोयले के स्टॉक में कमी का मतलब देश में कोयले के उत्पादन में कमी नहीं है.
Power-Technology ने बताया कि महामारी के कारण 2020 में पावर सेक्टर में निवेश में 15 प्रतिशत की गिरावट देखी गई थी.
इसने भारत की बिजली वितरण कंपनियों के अंदर वित्तीय तनाव को और बढ़ा दिया, जिसके कारण ऊर्जा मंत्रालय अब बिजली कंपनियों को भंडार करने के लिए कह रहा है.
इसके अलावा, श्रीवास्तव ने चेतावनी दी कि, “कोयला की कमी का नैरेटिव बदहाली का माहौल बनाने के लिए बनाया जा रहा है, ताकि Coal Bearing Area (Acquisition and Development) Act 2021 जैसे कठोर कानून को संसद के अगले सत्र में पास किया जा सके."
न्यूजक्लिक की रिपोर्ट के मुताबिक, बिल के पारित हो जाने के बाद, निजी कंपनियों को सामाजिक प्रभाव का आकलन करने, बहुसंख्यक आबादी की सहमति प्राप्त करने और कोयला खनन के लिए भूमि अधिग्रहण से पहले प्रभावित लोगों को पर्याप्त मुआवजे का भुगतान करने से छूट मिल जाएगी.
इसके अलावा, 2013 में भूमि अधिग्रहण बिल के एक प्रावधान, जिसे LARR Act, 2013 के रूप में जाना जाता है, अब उन कॉरपोरेट्स पर लागू नहीं होगा जो बोलियों के माध्यम से अधिग्रहित भूमि से कोयले का खनन शुरू करेंगे.
श्रीवास्तव कहते हैं कि इस "कठोर" बिल के साथ, कोयला खनन के लिए पर्यावरण मानदंडों को भी ताक पर रख दिया जाएगा.
वैश्विक उच्च कीमतों के कारण कम आयात, बाढ़ से प्रभावित उत्पादन और परिवहन, और कोयला उत्पादकों और कोयले से चलने वाले प्लांट्स के बीच पॉलिसी विफलता के कारण, मौजूदा समय में कोयला भंडार की कमी देखने को मिल रही है.
अगर ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है, तो पावर रेशनिंग सरकार के लिए एक आसान समाधान हो सकता है. हालांकि, ये आर्थिक विकास में और रुकावट डालेगा.
सरकारी मंत्रालयों और उद्योग के पास बिजली कटौती से बचने के लिए बिजली उत्पादन को प्राथमिकता देने के लिए एल्यूमीनियम और सीमेंट निर्माताओं जैसे इंडस्ट्रियल यूजर्स से सप्लाई को फिर से हटाने का विकल्प है.
ब्लूमबर्ग के मुताबिक, इसके कारण नॉन-पावर सेक्टर की कंपनियों के पास या तो उत्पादन पर अंकुश लगाने या आयात किए गए कोयले के लिए उच्च कीमतों का भुगतान करने का विकल्प बचेगा.
ग्लोबल एनालिटिक्स कंपनी CRISIL ने कहा, "आने वाले समय में, आपूर्ति संकट जारी रहने की उम्मीद है, नॉन-पावर सेक्टर मुश्किल का सामना कर रहा है, क्योंकि मांग को पूरा करने के लिए आयात ही एकमात्र विकल्प है, लेकिन बढ़ती कीमत पर."
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