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भारत में चुनाव आयोग ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) को इसलिए अपनाया था क्योंकि उसे चुनाव प्रक्रिया को सटीक और पारदर्शी बनाना था. मगर क्या वास्तव में ऐसा हो रहा है? ईवीएम और वीवीपैट (वोटर वेरीफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल) में सटीक तरीके से वोट दर्ज हो रहे हैं?
क्विंट ने 2018 के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों और 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान गिने गए और डाले गए वोटों में फर्क से जुड़ी अपनी दो रिपोर्ट के जरिए आंकड़ों में अनियमितताओं को उजागर किया था. मगर चुनाव आयोग ने अनियमितता की बात को इस आधार पर नकार दिया था कि जारी किए गए आंकड़े ‘तात्कालिक’ थे, अंतिम नहीं.
2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में यह पता लगाने के लिए कि ईवीएम में डाले गए और गिने गए वोटों में क्या कोई अनियमितता थी, क्विंट ने सभी विधानसभा क्षेत्रों से जुड़े फॉर्म 20 के आंकड़ों का विश्लेषण किया. फॉर्म 20 हर एक निर्वाचन क्षेत्र में गिने गए वोट, हर मतदान केंद्र पर हर उम्मीदवार को मिले वोट, कुल पंजीकृत वोटर, नोटा के तहत पड़े वोट और टेंडर्ड वोट का ब्योरा देता है. फॉर्म 20 के आंकड़ों को चुनाव अधिकारी संकलित करते हैं.
क्विंट ने अनियमितताओं को लेकर दिल्ली के मुख्य चुनाव अधिकारी से संपर्क किया. उनके जवाब को तीन प्वाइंट्स में समेटा जा सकता है :
दिलचस्प बात यह है कि ये तीनों प्वाइंट्स बेमेल वोटों के मुद्दों का जवाब नहीं देते और इसलिए आसानी से विवाद की वजह हो सकते हैं.
चुनाव आयोग का दावा है कि डाले गए और गिने गए वोटों के आंकड़ों में अंतर स्वाभाविक और ‘मामूली’ है. मगर क्या इस ‘मामूली’ अंतर ने कम से कम दो दिल्ली विधानसभा क्षेत्रों के नतीजों पर फर्क डाला है जहां जीत का अंतर 1000 वोटों से कम था?
हर मतदान केंद्र पर चार चुनाव अधिकारी तैनात किए जाते हैं जिनमें एक पीठासीन अधिकारी या मतदान केंद्र प्रमुख और तीन अन्य मतदान अधिकारी होते हैं. औसतन किसी एक मतदान केंद्र पर हजार से ज्यादा वोटर नहीं होते हैं क्योंकि वीवीपैट 1200 वोटों से ज्यादा का रिकॉर्ड नहीं रख सकता है.
इतना ही नहीं, चुनाव आयोग के नियम के अनुसार भी पीठासीन अधिकारी को अपने मतदान केंद्र पर हर दो घंटे में दर्ज वोटों का रिकॉर्ड रखना होता है और साथ-साथ निर्वाचन क्षेत्र के रिटर्निंग अफसर को इसकी जानकारी देनी होती है.
जब चुनाव की प्रकिया अच्छी तरह से परिभाषित है तब क्यों डाले गए और गिने गए वोटों में अनियमितताएं देखनी पड़ रही हैं?
दिल्ली विधानसभा चुनावों में डाले गए वोटों के बारे में चुनाव आयोग की घोषणा में 24 घंटे की देरी हुई. घोषणा में देरी को लेकर चुनाव आयोग का स्पष्टीकरण था कि वह ‘अटकलों को टालना चाहता’ था.
दिल्ली के मुख्य चुनाव अधिकारी रणबीर सिंह ने कहा, “वे अनुमान लगाना नहीं चाहते थे और वास्तविक आंकड़े देना चाहते थे...इसलिए रिटर्निंग अफसरों ने आंकड़ों की जांच पर पूरी रात मेहनत की और सुनिश्चित किया कि वे सटीक हों. इसमें थोड़ा वक्त लगा है लेकिन आंकड़े दर्ज करने में सटीक रहने को सुनिश्चित करना सबसे अहम है.”
चुनाव आयोग ने पहले कहा था कि मतदान के आंकड़ों की घोषणा में देरी हुई थी क्योंकि वे ‘सटीक आंकड़े’ सुनिश्चित करना चाहते थे. अब वे कह रहे हैं कि डाले गए और गिने गए वोटों में फर्क लिपिकीय भूलों के कारण हैं. कम से कम इन दोनों दावों में से एक भ्रामक है.
फॉर्म 20 जिसमें मतदान केंद्रवार गिने गये वोटों का ब्योरा है, बताता है कि सभी मतदान केंद्रों के ईवीएम गिने गए. साफ है कि कोई ईवीएम बाकी नहीं रहा. ना ही किसी तकनीकी गलती के कारण ऐसा हुआ कि वोट नहीं गिने गए. इतना ही नहीं, जो मॉक पोल में वोट पड़े वे भी मिटाए नहीं गए थे.
तीसरी बात, अगर चार निर्वाचन क्षेत्रों के ईवीएम आंकड़े नहीं मिले या नहीं गिने गए, तो नियमों के मुताबिक वीवीपैट की पर्चियों की गिनती होनी चाहिए थी. क्या ऐसा किया गया? अगर नहीं, तो क्यों?
ईवीएम वोटों की गिनती कम पाए जाने पर क्या कहना है? क्या मतदान खत्म होने के बाद ईवीएम के वोट मिटाए गए, जिस कारण कम वोट मिले?
2019 लोकसभा चुनाव में डाले गए और गिने गए वोटों के बेमेल रहने से जुड़ी क्विंट की रिपोर्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी. अदालत ने भारतीय चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा. यह मामला अब भी लंबित है.
सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका के लंबित रहने के बावजूद चुनाव की प्रक्रिया में आंकड़ों के सटीक रहने को सुनिश्चित क्यों नहीं कर पा रहा है आयोग?
क्विंट ने दिल्ली सीईओ के ऑफिस को लिखा है और इस मामले में उनके जवाब पर आगे सवाल पूछे हैं. जैसे ही हमें कोई जवाब मिलता है हम इस आर्टिकल को अपडेट करेंगे.
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