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सुप्रीम कोर्ट का फैसला, दिल्ली सरकार को ट्रांसफर पोस्टिंग का अधिकार

2014 में AAP के सत्ता में आने के बाद से केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच सत्ता संघर्ष चल रहा है.

क्विंट हिंदी
भारत
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<div class="paragraphs"><p>दिल्ली सरकार बनाम केंद्र</p></div>
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दिल्ली सरकार बनाम केंद्र

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली (Delhi) में 'प्रशासनिक सेवाओं पर किसका नियंत्रण होना चाहिए', इस पर दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच हुए विवाद पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण के लिए दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया और माना कि नौकरशाहों पर उसका नियंत्रण होना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि राज्यों के पास भी शक्ति है लेकिन राज्य की कार्यकारी शक्ति संघ के मौजूदा कानून के अधीन है. यह सुनिश्चित करना होगा कि राज्यों का शासन संघ द्वारा अपने हाथ में न ले लिया जाए. कोर्ट ने दिल्ली सरकार को ट्रांस्फर पोस्टिंग का अधिकार दिया है.

राज्यों के पास भी शक्ति है लेकिन राज्य की कार्यकारी शक्ति संघ के मौजूदा कानून के अधीन है. यह सुनिश्चित करना होगा कि राज्यों का शासन संघ द्वारा अपने हाथ में न ले लिया जाए.
डीवाई चंद्रचूड़, चीफ जस्टिस

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार के एक लोकतांत्रिक रूप में, प्रशासन की वास्तविक शक्ति सरकार की निर्वाचित शाखा पर होनी चाहिए.

चीफ जस्टिस डीवायू चंद्रचूड़ ने कहा कि एक राज्य में संघ की कार्यकारी शक्ति उन मामलों पर है, जिन पर संघ और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं, यह सुनिश्चित करने के लिए सीमित है कि राज्य का शासन संघ द्वारा नहीं लिया जाता है. यह शासन की संघीय प्रणाली और प्रतिनिधि लोकतंत्र के सिद्धांत को पूरी तरह से निरस्त कर देगा.

जस्टिस एमआर शाह, कृष्ण मुरारी, हेमा कोहली और पीएस नरसिम्हा की बेंच ने 18 जनवरी को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलें सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था. बता दें कि केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और दिल्ली सरकार के लिए सीनियर एडवोकेट एएम सिंघवी ने अपनी दलीलें पेश की थी.

कहां से शुरू हुआ विवाद?

2014 में आम आदमी पार्टी (AAP) के सत्ता में आने के बाद से, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के शासन को लेकर केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच लगातार सत्ता संघर्ष चल रहा है. दोनों पक्षों के परस्पर विरोधी हितों और मुखर कार्रवाइयों ने दिल्ली में शासन की गतिशीलता को आकार देते हुए एक लंबे विवाद को जन्म दिया है.

केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच लंबे समय से चल रहे विवाद से जुड़े छह मामलों पर सुनवाई कर रही दो जजों की पीठ ने 'सेवाओं पर नियंत्रण' को छोड़कर शेष पांच मुद्दों पर सर्वसम्मति से आदेश दिया था.

14 फरवरी, 2019 को, सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने सेवाओं के संबंध में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (GNCTD) और केंद्र सरकार की शक्तियों के बारे में एक विभाजित फैसला सुनाया. इसके बाद मामले को आगे के फैसले के लिए तीन-न्यायाधीशों की पीठ के पास भेज दिया गया.

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केंद्र सरकार की एक गुजारिश के बाद, मई 2021 में तीन-न्यायाधीशों की बेंच ने इस मामले को आगे के विचार के लिए संविधान पीठ के पास भेज दिया. हाथ में मामला, जिसमें दिल्ली सरकार बनाम एलजी मुद्दा शामिल है और राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण पर अधिकार क्षेत्र से संबंधित है, अब बड़ी बेंच के फैसले का इंतजार किया जा रहा है.

फरवरी 2019 के फैसले से पहले, सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 4 जुलाई, 2018 को राष्ट्रीय राजधानी के शासन के लिए मानदंड निर्धारित किए थे.

ऐतिहासिक फैसले में कोर्ट ने सर्वसम्मति से कहा था कि दिल्ली को एक राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है, लेकिन एलजी की शक्तियों को यह कहते हुए काट दिया कि उनके पास "स्वतंत्र फैसले लेने की शक्ति" नहीं है और उन्हें निर्वाचित सरकार की सहायता और सलाह पर कार्य करना है.

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