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दिल्ली हाईकोर्ट ने शनिवार (15 जून) को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की पत्नी सुनीता केजरीवाल और कुछ अन्य व्यक्तियों को नोटिस जारी कर उनसे अदालती कार्यवाही की कथित "वीडियो रिकॉर्डिंग" और "पोस्ट" करने से संबंधित विभिन्न कंटेंट को हटाने का आदेश दिया, जब दिल्ली के मुख्यमंत्री ने शराब नीति मामले में गिरफ्तारी के बाद अदालत को व्यक्तिगत रूप से संबोधित किया था.
हाईकोर्ट के अधिवक्ता वैभव सिंह द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था. याचिका में कोर्ट की कार्यवाही की “ऑडियो और वीडियो रिकॉर्ड करने और शेयर करने की कथित साजिश” और ट्रायल कोर्ट के जज की "जान को खतरे" में डालने के खिलाफ जांच और एफआईआर दर्ज करने के लिए एक एसआईटी के गठन की मांग की गई थी.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा और न्यायमूर्ति अमित शर्मा की खंडपीठ ने एकपक्षीय अंतरिम आदेश में सुनीता केजरीवाल और पांच अन्य प्रतिवादियों को भी नोटिस जारी किया और कहा कि उन्हें संबंधित सामग्री को दोबारा पोस्ट करने से रोका जाता है.
कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह अप्राप्त प्रतिवादियों को भी सूचना दे.
इस बीच, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म मेटा की ओर से पेश हुए वकील तेजस करिया ने दलील दी कि अगर पोस्ट करने वाले लोग इसे हटा देते हैं तो उनके मुवक्किल के पास हटाने के लिए कुछ नहीं बचता. करिया ने कहा, "
इसके बाद, हाईकोर्ट ने कहा कि जब भी मेटा के संज्ञान में यह बात आएगी कि "इस तरह की सामग्री को दोबारा पोस्ट किया जा रहा है", तो वह इसे हटा देगा.
सिंह ने अपनी याचिका में कहा था, "आम आदमी पार्टी के कई सदस्यों सहित कई अन्य विपक्षी दलों के सदस्यों ने जानबूझकर अदालत की कार्यवाही को बदनाम करने और उसमें हेरफेर करने के इरादे से ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग की है."
उन्होंने कहा कि 28 मार्च को सुनवाई समाप्त होने के तुरंत बाद, आम आदमी पार्टी के सदस्यों और अन्य राजनीतिक दलों से संबंधित कई सोशल मीडिया हैंडलों ने ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही की ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग को पोस्ट करना, रीपोस्ट करना, फॉरवर्ड करना, शेयर करना और फिर से शेयर करना शुरू कर दिया गया.
याचिका में कहा गया है:
याचिका में कहा गया है कि अदालती रिकॉर्डिंग को अनधिकृत रूप से साझा करना दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायालयों के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग नियम 2021 का उल्लंघन है, जो विशेष रूप से अदालती कार्यवाही की अनधिकृत रिकॉर्डिंग पर रोक लगाता है.
इसमें कहा गया है कि अदालती कार्यवाही निष्पक्षता और न्याय सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई है; लेकिन इस तरह की अनधिकृत रिकॉर्डिंग सनसनीखेज, गलत व्याख्या या रिकॉर्ड की गई सामग्री में हेरफेर को बढ़ावा देकर न्यायिक प्रक्रिया की अखंडता को बाधित कर सकती है.
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