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दिल्ली मेट्रो हर दिन पूरे कर रही 45 लाख लोगों के सपने, एक मैं भी...

Delhi Metro: दिल्ली मेट्रो के बारे में किराए, लाइन, मैप, इतिहास, प्रोजेक्ट, अवॉर्ड, प्रशासन, पूरी जानकारी यहां देखें

धनंजय कुमार
भारत
Updated:
<div class="paragraphs"><p>दिल्ली मेट्रो </p></div>
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दिल्ली मेट्रो

क्विंट हिंदी

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"चेहरे पे सारे शहर के गर्द-ए-मलाल है, जो दिल का हाल है वही दिल्ली का हाल है" मलिकजादा मंजूर अहमद के इस शेर में जिस दिल्ली (Delhi) की बात हो रही है उसका भी एक 'दिल' है. किसी शहर का दिल वही हो सकता है जो वहां रहने वाले लोगों के दिल में हो. मेरे दिल में है - दिल्ली मेट्रो (Delhi Metro).

मेरे लिए इस शहर की सबसे खूबसूरत चीज, सबसे बड़ा तोहफा और सबसे बड़ा साथी कोई है तो मेट्रो ही है. ये मेट्रो न होती तो मैं आपके लिए शायद ये स्टोरी नहीं लिख पाता, साफ कहूं तो मैं ये नौकरी ही नहीं कर पाता, लेकिन क्यों और मैं आज मेट्रो की बात कर क्यों रहा हूं?

मेट्रो और मैं साथ-साथ बड़े हुए...

मैं और मेट्रो साथ-साथ बड़े हुए, एक दूसरे को देखते हुए. मैं 2002 में दिल्ली आ गया और इसी साल दिल्ली में मेट्रो आ गई. 25 दिसंबर 2022 को दिल्ली मेट्रो के 20 साल पूरे हो गए. आज मेट्रो से हर किसी की कोई न कोई याद जुड़ी है. मैं अपना उदाहरण देकर बताऊं तो

मेरा घर मेरे दफ्तर से, जहां इस वक्त मैं ये स्टोरी लिख रहा हूं, लगभग 48 किलोमीटर दूर है. मुझे मेट्रो से दफ्तर आने में करीब 2 घंटे का समय लगता है और एक दिन में दोनों तरफ का किराया मिलाकर सिर्फ 100 रुपये का खर्चा, ऊपर से आरामदायक सफर. अगर ये मेट्रो न हो तो मुझे बस से एक तरफ के 3.5 घंटे यानी दोनों तरफ के 7 घंटे ट्रैवल में बिताने पड़ते.

मैं (धनंजय कुमार) अपनी रोज की यात्रा के दौरान

(फोटो: धनंजय कुमार/क्विंट हिंदी)

इस स्थिति में मेरे पास विकल्प होता कि मैं दफ्तर के पास या तो यहीं कोई रूम या पीजी ले लूं या रोज टैक्सी से जाऊं, लेकिन इसमें मेरी आधी से ज्यादा सैलरी चली जाती. मेरे घर में 4 नई चीजें आ पाईं तो इसी मेट्रो की वजह से,

तो अब आप सोच सकते हैं कि मेट्रो का कम के कम मेरी जिंदगी में कितना बड़ा योगदान है. ये सिर्फ मेरी नहीं बल्कि रोजाना ट्रैवल करने वाले ज्यादातर लोगों की कहानी है.

मेट्रो एक ट्रिप में मेरे डेढ़ घंटे बचा रहा

(फोटो: धनंजय कुमार/क्विंट हिंदी)

ऐसे हुई थी मेट्रो की शुरुआत

मेट्रो के शुरुआत की कहानी बड़ी रोचक है. सबसे पहले 1969 में एक स्टडी में दिल्ली के लिए रैपिड ट्रांजिट सिस्टम की बात कही गई, लेकिन ये ठंडे बस्ते में चला गया. 1984 में अर्बन आर्टस कमीशन दिल्ली के लिए एक मल्टी मॉडल ट्रांसपोर्ट सिस्टम के प्रपोजल के साथ आया, इसमें भी रैपिड ट्रांजिट का जिक्र था.

इस प्रोजेक्ट के लिए फंड जुटाने की प्रक्रिया चल ही रही थी कि 1981 से 1998 तक दिल्ली की आबादी दोगुनी हो गई और सड़कों पर गाड़ियों की संख्या पांच गुना बढ़ी. सरकारी बस इस बोझ को संभाल पाने में नाकाम हो रहे थे. लोगों ने निजी गाड़ियों का सहारा लिया जिससे भीड़ और प्रदूषण की समस्या पैदा होने लगी, इसे देखते हुए 1992 में सरकार ने प्राइवेट बसों को भी इजाजत दे दी, लेकिन एक नई समस्या खड़ी हो गई.

ज्यादातर प्राइवेट ड्राइवर अनुभवहीन थे जिससे सड़क हादसे बढ़ने लगे. इस स्थिति से निपटने के लिए एच.डी देवेगौड़ा की केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार ने मिलकर 3 मई 1995 को DMRC कंपनी का गठन किया और इसके पहले एमडी ई. श्रीधरन बने, जिन्हें आज भारत का मेट्रो मैन कहा जाता है.

आप जानकर थोड़ा हैरान होंगे कि दिल्ली मेट्रो देश की पहली मेट्रो नहीं है, बल्कि ये उपलब्धि कोलकाता के पास है, जिसने 1984 में ही इसे शुरू कर दिया था. दिल्ली मेट्रो का कंस्ट्रक्शन 1998 में शुरू हुआ. कोलकाता मेट्रो से सबक लेते हुए DMRC को ज्यादा शक्तियां दी गईं थी. इसमें हायरिंग, फंड, टेंडर और निर्णय लेने के अधिकार शामिल थे.

2002 में दिल्ली मेट्रो के उद्घाटन के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई, लालकृष्ण आडवाणी और दिल्ली की तत्कालीन CM शीला दीक्षित

(फोटो: DMRC)

24 दिसंबर 2002 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दिल्ली मेट्रो का उद्धाटन किया. इसकी पहली लाइन रेड लाइन थी, शाहदरा से तीस हजारी के बीच. ये लाइन 8.35 किलोमीटर लंबी थी और इसपर 6 स्टेशन थे. यहां मेट्रो की शुरुआत हो चुकी है. अब आपको बताते हैं कि कैसे इसका विस्तार हुआ.

वर्तमान में दिल्ली मेट्रो

2002 से 2022 आ गया, दिल्ली मेट्रो ने अपने 20 साल पूरे कर लिए. 2011 की जनसंख्या के अनुसार ही दिल्ली की आबादी का घनत्व 11,320 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमिटर है. ये कितना ज्यादा है इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि दूसरे नंबर पर बिहार का घनत्व सिर्फ 1106 है. दिल्ली की आबादी में हुए इस विस्फोट को संभालने और संचालित करने की जिम्मेदारी मेट्रो ने बखूबी निभाई.

वर्तमान में, दिल्ली मेट्रो का कुल नेटवर्क 391 किलोमीटर का है. 12 अलग-अलग लाइनों पर कुल 286 स्टेशन हैं. इसमें ग्रेटर नोएडा की एक्वा लाइन और गुड़गांव की रैपिड मैट्रो भी शामिल है.

इस मैप में दिल्ली के सभी स्टेशन, रूट और किस फेज में निर्माण हुआ ये देख सकते हैं.

दिल्ली मेट्रो के पास फिलहाल 176 छह कोच वाले, 138 आठ कोच वाले और 22 चार कोच वाले ट्रेन हैं. इस तरह DMRC के पास कुल 336 ट्रेन सेट हैं. ये ट्रेन हर रोज 2700 से ज्यादा फेरे लगाती हैं.

दिल्ली मेट्रो में हर दिन करीब 40 से 45 लाख लोग यात्रा कर रहे हैं. हर इंसान औसतन 17 किलोमीटर की दूरी तय करता है. 2019-20 में मेट्रो ने करीब 100 करोड़ यात्रियों को उनकी मंजिल तक पहुंचाया.

दिल्ली में तो मेट्रो ने अपना जाल बिछाया ही है साथ ही सीमाओं को पार कर उत्तर प्रदेश में नोएडा और गाजियाबाद, हरियाणा में गुड़गांव, फरीदाबाद, बहादुरगढ़ और बल्लभगढ़ तक पहुंच गया है.

मेट्रो सिर्फ यात्रियों को ही सहूलियत ही नहीं दे रही बल्कि 14,000 से ज्यादा लोग अभी इसके साथ नौकरी कर रहे हैं. यानि DMRC ने बड़े पैमाने पर रोजगार सृजित किया है.

कमर तोड़ महंगाई में मेट्रो का सस्ता किराया निम्न मध्य वर्ग को बड़ी राहत देता है. दिल्ली मेट्रो का न्यूनतम किराया 10 रुपये और अधिकतम 60 रुपये है. अगर आप 60 रुपये का टोकन लेते हैं तो अधिकतम 3 घंटे तक स्टेशन या मेट्रो परिसर में रह सकते हैं.

तो क्या दिल्ली मेट्रो दिल्ली के हर कोने में है? मेट्रो ने ज्यादातर इलाकों को तो कवर कर लिया लेकिन इसके कुछ इलाके अभी बाकी हैं. इसमें दूर दराज के कुछ इलाके हैं. जैसे ढ़ांसा बॉर्ड्रर, सोनीपत आदी, लेकिन यहां सवाल ये कि आखिर दिल्ली मेट्रो इन इलाकों में नहीं पहुंच पाई तो इसके पीछे क्या कारण हैं? इसका कारण है इन इलाकों की आबादी का कम होना, जिसके चलते एक्सटेंशन की मंजूरी नहीं मिलती. कुछ इलाकों में आज भी एक्सटेंशन न करने के विचार पर क्विंट ने दिल्ली के परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत से सवाल किया, तो उन्होंने कहा कि,

एक्सटेंशन की जब भी बात होती है तो सबसे पहले राइडरशिप का मसला आता है. हालांकि, हम DMRC को मनाने की कोशिश करते हैं. सुविधाओं की उपलब्धता के चलते दिल्ली की आबादी तेजी से बढ़ रही है. राइडरशिप के मुद्दे पर हम DMRC को मनाने की कोशिश करते हैं, जिन इलाकों में मेट्रो नहीं है, वहां भी पहुंचाने की कोशिश करेंगे.
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आगे क्या?

दिल्ली मेट्रो में अभी फेज 4 का काम चल रहा है. अब तक आप जितना कंस्ट्रक्शन देखते हैं वो पहले, दूसरे और तीसरे फेज का है. चौथे फेज में 2015 में कुल 6 लाइनों का प्रस्ताव रखा गया था, लेकिन 2019 में 3 लाइनों को ही मंजूरी मिली. इस फेज के एक लाइन सिल्वर लाइन बनाने का काम चल रहा है. इसके अलावा दो लाइन्स, पुरानी लाइन्स के ही एक्सटेंशन हैं, जिसमें पिंक लाइन पर मुकुंदपुर-मौजपुर रूट और मेजेंटा लाइन पर जनकपुरी पश्चिम-आरके आश्रम रूट है.

इस नक्शे में मोटी पीली लाईन चौथे फेज के लिए मंजूर तीन लाइनें हैं.

स्क्रीनग्रैब

चौथे फेज का काम 2026 तक पूरा होने की उम्मीद है और इसकी लागत करीब 25 हजार करोड़ रुपये है. इसकी फंडिंग की बात करें तो केंद्र सरकार करीब 4600 करोड़ रुपये, दिल्ली सरकार और इसके बाकी सोर्स से करीब 7400 करोड़ रुपये और 13 हजार करोड़ रुपये लोन के रूप में जुटाए जा रहे हैं. इसमें लोन मुख्य रूप से जापान से आएगा. जापान के वित्तीय और तकनीकी सहयोग की मदद से ही सरकार दिल्ली मेट्रो का इतना विस्तार कर पाई है.

इस फेज में तीनों लाइनों के बनने के बाद DMRC 288 नए कोच खरीदेगा. चौथे फेज के पूरा होने के बाद दिल्ली मेट्रो के कुल नेटवर्क में 45 नए स्टेशन और 65 km का नेटवर्क और जुड़ जाएगा.

दिल्ली मेट्रो का पर्यावरण और आपकी सेहत पर प्रभाव

दिल्ली मेट्रो किस हद तक दिल्ली के लोगों का और साथ ही पर्यावरण का ख्याल रख रहा है इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते. द बेटर इंडिया कि रिपोर्ट के अनुसार,

दिल्ली में कोई व्यक्ति अपनी प्राइवेट कार या बस के बजाय मेट्रो का प्रयोग करता है तो अपनी 10 km की यात्रा में लगभग 100 mg कार्बन-डाइ-ऑक्साइड का उत्सर्जन कम करने में मदद करता है.

दिल्ली में हर साल वायु प्रदूषण में 40 से 50 फीसदी हिस्सा प्राइवेट गाड़ियों से निकलने वाले धुंए का होता है. साल 2021 में मेट्रो ने यात्रियों का लगभग 269 मिलियन घंटे का ट्रैवल टाइम बचाया.

हम अकसर सुनते हैं कि विकास के चलते पर्यावरण को नुकसान होता है, लेकिन मेट्रो सतत विकास का सबसे बेहतर उदाहरण है. इसके कंस्ट्रक्शन में अगर 1 पेड़ को काटना पड़ता है DMRC उसके बदले 10 पौधे लगाता है.

2019 तक DMRC को मेट्रो के लिए करीब 56 हजार पेड़ काटने पड़े, लेकिन इसके बदले इसने 5 लाख से ज्यादा पौधे लगाए. दिल्ली मेट्रो के कारण दिल्ली की सड़कों पर हर रोज 1.17 लाख गाड़ियां कम चलती हैं.

दिल्ली मेट्रो 100% सौर ऊर्जी से ऑपरेट होने वाला दुनिया का पहला मेट्रो नेटवर्क बनने की राह पर है. आज इसके लगभग आधे स्टेशन सौर ऊर्जी से ही संचालित होते हैं.

DMRC हर मेट्रो स्टेशन के ऊपर इसी तरह से सोलर प्लेट्स लगा रही है.

(फोटो: DMCR)

दिल्ली मेट्रो का लक्ष्य लैंडफिल से ऊर्जा लेकर 8 मिलियन टन से ज्यादा ग्रीन हाउस गैस को कम करना है. फिलहाल ये हर साल 6.3 लाख टन वायु प्रदूषण कम करने में सहायता कर रहा है. अब तक DMRC 3.5 लाख टन कचरा रिसाईकल कर चुका है.

DMRC ने जीते हैं कई अवॉर्ड

पर्यावरण पुरस्कार:

  • 1. गोल्डन पिकॉक एनवायरनमेंट मैनेजमेंट अवॉर्ड 2005

  • 2. संयुक्त राज्य अमेरिका–एशिया पर्यावरण नेतृत्व पुरस्कार

  • 3. राष्ट्रीय संरक्षण पुरस्कार– क्षेत्रीय रेलवे श्रेणी में दूसरा पुरस्कार, 2008.

  • 4. 2011 में सर्वश्रेष्ठ स्वच्छ विकास तंत्र पुरस्कार.

इंजिनियरिंग के लिए पुरस्कार:

  • 1. गोल्डन सेफ्टी अवॉर्ड के सम्मान में टैलेंट अवॉर्ड 2017

  • 2. दैनिक भास्कर इंडिया प्राइड अवॉर्ड,2010. भारत की छवि को बेहतर बनाने के लिए

  • 3. यूएस ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल ने वर्ष 2017 के लिए डीएमआरसी को ग्रीनबिल्ड लीडरशिप अवॉर्ड से सम्मानित किया.

  • 4. डीएमआरसी को इंडियन ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल द्वारा 100 प्लेटिनम रेटेड मेट्रो स्टेशन के लिए ग्रीन बिल्डिंग लीडरशिप अवार्ड से सम्मानित किया गया.

किसका-किसका योगदान ?

डॉ ई श्रीधरण को आज मेट्रो मैन यूं ही नहीं कहा जाता. मेट्रो की शुरूआत से लेकर उसे गति देने तक मेट्रो में उनका योगदान सबसे बड़ा है. वे DMRC के पहले MD बने और 1995 से 2011 तक इस पद पर रहे. उन्होंने कोंकण रेलवे और दिल्ली मेट्रो के निर्माण में अपने नेतृत्व के साथ भारत में सार्वजनिक परिवहन का चेहरा बदल दिया.

मेगू सिंह अपना कार्यकाल खत्म होने के बाद विकास कुमार को MD पद के लिए बधाई देते हुए.

2011 से मार्च 2022 तक मंगू सिंह DMRC के MD रहे. उनके नेतृत्व में मेट्रो का तेजी से एक्सटेंशन हुआ. मेट्रो को पर्यावरण अनुकूल बनाने में इनका ही योगदान है. उदाहरण के लिए मंगू सिंह के ही कार्यकाल में तय हुआ कि चौथे फेज में जो भी नए स्टेशन बनेंगे वो सभी ग्रीन स्टेशन होंगे. मार्च 2022 से विकास कुमार DMRC के MD हैं.

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Published: 02 Jan 2023,03:24 PM IST

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