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तबलीगी जमात के ज्यादातर सदस्यों की कोरोना जांच रिपोर्ट निगेटिव होने के बावजूद उन्हें सवा महीने से क्वॉरंटीन केन्द्रों में रखा गया है. दिल्ली सरकार के आदेश के दो दिनों बाद भी तबलीगी जमात के सदस्यों के क्वॉरंटीन केन्द्रों में फंसे रहने को लेकर अनिश्चिता बनी हुई हैं. दिल्ली में तबलीगी जमात के ऐसे सदस्यों की संख्या लगभग 4000 है और इनमें विभिन्न देशों के नागरिकों की संख्या भी सैकड़ों में हैं. इनमें 17 साल से लेकर 80 साल तक के लोग हैं. जिसमें लगभग 200 महिलाएं भी शामिल हैं
तबलीगी जमात के सदस्यों के क्वॉरंटीन केन्द्रों में सवा महीने से रखे जाने को लेकर नाराजगी बढ़ रही है. 6 मई को दिल्ली सरकार के आदेश से पहले नरेला स्थित केन्द्र में सदस्यों ने 5 मई को सामूहिक तौर पर सत्याग्रह कर खाना लेने से इनकार कर दिया था. उन लोगों को समझाने के लिए प्रशासन को जमात से जुड़े मौलाना को बुलाना पड़ा था और यह आश्वासन दिया गया कि उन्हें तत्काल वापस उनके घर भेजने का इंतजाम किया जाएगा.
6 मई को नरेला स्थित क्वॉरंटीन केन्द्र में तबलीगी जमात के सदस्यों के लिए पर्याप्त सुविधाएं नहीं होने की शिकायत को लेकर एक जनहित याचिका पर हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार को तीन दिनों के अंदर अपनी सफाई पेश करने का निर्देश दिया है.
इन्हीं दबावों में दिल्ली सरकार ने 6 मई को तबलीगी जमात के उन सभी सदस्यों को क्वॉरंटीन केन्द्रों से मुक्त करने का आदेश तो दिया, जिनकी रिपोर्ट निगेटिव आई हैं. लेकिन क्वॉरंटीन केन्द्रों से तबलीगी जमात के सदस्यों की मुक्ति अभी तक अनिश्चित बनी हुई है. दिल्ली स्थित नरेला में क्वॉरंटीन केन्द्र में रखे गए लोगों को यात्री के नाम से पुकारा जाता है.
नरेला स्थित क्वॉरंटीन केन्द्र में हसीब अहमद ने बताया कि उन्हें वहां 31 मार्च को लाया गया था. इसके बाद उनकी दो बार कोरोना जांच की गई. पहली बार केन्द्र में लाए जाने के लगभग दस दिनों के बाद जांच की गई. इसकी रिपोर्ट निगेटिव आई. कोरोना वायरस के शक के आधार पर लोगों को चौदह दिनों के लिए क्वॉरंटीन में भेजे जाने की सलाह दी जाती है. लेकिन चौदह दिनों की दो किस्तें पूरी होने के बाद भी हसीब को नहीं मुक्त नहीं किया गया. 31 वर्षीय उतराखंड के हसीब की दूसरी बार 4 मई को जांच की गई. उसने बताया कि उसकी रिपोर्ट भी निगेटिव आई है.
हसीब के साथ उत्तराखंड के 34 लोग हैं. उनमें केवल उसके शहर हरिद्वार के पास स्थित भगवानपुर के दस लोग हैं. इन सभी की कोरोना जांच रिपोर्ट निगेटिव आई है. नरेला को देश का सबसे बड़ा क्वॉरंटीन केन्द्र माना जा रहा है. यहां 1600 लोगों को रखे जानकी व्यवस्था है. चौदह टावर में विभाजित डीडीए प्लैट को क्वॉरंटीन केन्द्रों में बदला गया है. नरेला स्थित इन फ्लैटों को आवंटित करने के लिए सालों से डीडीए कोशिश कर रही है लेकिन दिल्ली के लोग यहां के फ्लैट्स को किसी लिहाज से मुफीद नहीं मानते हैं.
नेपाल के 17 वर्षीय मोहम्मद उमेर ने फोन पर बताया कि उसकी भी दो बार जांच हो चुकी है और कोरोना नेगेटिव है. उसने बताया कि नेपाल के 17 लोगों को वहां 31 मार्च को दिल्ली में निजामुद्दीन स्थित मरकज से लाया गया था. सभी 17 नेपाली कांठमांडू, पोखरा और वीरगंज के हैं. नेपाल के अलावा इंडोनेशिया, बांग्लादेश और मलेशिया के भी लोगों को मरकज से 31 मार्च को नरेला स्थित क्वॉरंटीन केन्द्र में लाया गया था. विदेशियों में सबसे ज्यादा बुरी स्थिति उन देशों के नागरिकों की हैं जिनका खाना पीना बिल्कुल अलग है.
तबलीगी जमात के निजामुदीन स्थित मरकज में सालाना धार्मिक जलसे में 13 देशों से आने वालों की कुल संख्या 1500 है. इनमें से सबसे ज्यादा तादाद इंडोनेशिया की 750 है. मलेशिया के 170, थाइलैंड के 86, कर्जिस्तान के 125 समेत फिजी, वियतनाम, सुडान , बांग्लादेश, श्रीलंका, ईरान, तंजानिया, काजागिस्तान के नागरिक हैं.
मरकज से लाए जाने वाले कुल चार हजार लोगों में 900 दिल्ली के हैं. क्वॉरंटीन केन्द्र में अन्य राज्यों में तमिलनाडु, तेलंगाना के निवासियों की संख्या सर्वाधिक है. दिल्ली सरकार के आदेश के अनुसार उन राज्यों की सरकारों से संपर्क किया जा रहा है जिन राज्यों के लोग क्वॉरंटीन केन्द्र में हैं. लेकिन जब इस संवाददाता ने दिल्ली सरकार के जिला प्रशासन से संपर्क करने की कोशिश की गई तो अधिकारी साफ-साफ जवाब देने से कतराते दिखे.
दूसरी तरफ दिल्ली सरकार ने अपने आदेश में कहा है कि गृह विभाग उन राज्यों के स्थानीय आयुक्तों से संपर्क कर उन्हें वहां भेजने का इंतजाम कर रहा है जिन राज्यों के वे निवासी हैं. लेकिन जब इस संवाददाता ने तेलंगाना के स्थानीय आयुक्त के कार्यालय में संपर्क किया तो उन्हें दिल्ली सरकार की ओर से आदेश के दो दिनों बाद तक किसी स्तर पर संपर्क नहीं किया गया है.
नरेला में क्वॉरंटीन केन्द्र में यात्रियों को भी यह जानकारी नहीं हैं कि उन्हें किस दिन मुक्त किया जाएगा. मध्य प्रदेश के आमिर ने बताया कि कई तरह से कागजों में उलझाकर रखा है. उनसे सवा महीने रहने के बाद फिर से उनके घर का पता मांगा जा रहा है.
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