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दिन है मंगलवार, 12 मार्च का. आज रमजान का पहला दिन है. शाम लगभग 5:45 बजे, शबाना कपड़ों, बर्तनों, किताबों और दो टूटे बेड से भरे अपने छोटे से अस्थायी टेंट के अंदर जगह साफ करने में व्यस्त है. शबाना शाम को अपने पति वकील हसन के लौटने का बेसब्री से इंतजार कर रही हैं, जो नमाज पढ़कर आते ही होंगे.
उनकी 12 साल की बेटी अलीजा अपने टेंट से मच्छरों से लड़ने में व्यस्त है. शबाना ने उसे खाना लाने के लिए अपनी भाभी के घर चलने के लिए कहा ताकि पांच लोगों का यह परिवार समय पर अपना रोजा (उपवास) खोल सके. उनके सिर पर पड़ोसियों की दी हुईं तिरपाल लटकी हुई हैं.
आंसुओं से भरी आंखों के साथ शबाना मेरी ओर मुड़ीं और कहा:
पिछले 15 दिन से रैट होल माइनर वकील हसन और उनका परिवार बेघर है. 28 फरवरी को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने "अतिक्रमण विरोधी" अभियान के तहत पूर्वोत्तर दिल्ली के खजूरी खास इलाके में उनके घर को गिरा दिया था.
बुलडोजर चलाए घर के बाहर अपने अस्थायी टेंट में यह परिवार विरोध में बैठा है. उन्होंने द क्विंट से बात की कि उनका जीवन कैसे बदल गया है, उन्होंने डीडीए द्वारा मुआवजे के रूप में पेश किए गए दो फ्लैटों को क्यों अस्वीकार कर दिया, और परिवार कैसे अंधकारमय भविष्य की ओर देख रहा है.
वकील हसन रॉकवेल एंटरप्राइजेज के मालिक हैं. यह कंपनी रैट होल माइनर्स को नौकरी देती है. वकील हसन और उनकी 41 वर्षीय पत्नी शबाना के तीन बच्चे हैं: अजीम (17), अलीजा और आरीश (7). यह परिवार खजूरी खास के श्री राम कॉलोनी में मौजूद इस घर में 2012 से रह रहा था. अब इस घर पर बुलडोजर चलाया जा चुका है.
28 फरवरी को सुबह लगभग 9 बजे, डीडीए ने उनके घर को ढहा दिया. जब उनके घर पर बुलडोजर चल रहा था, तब केवल तीन बच्चे घर पर थे.
आप डेमोलिशन पर डीडीए के विस्तृत बयान के बारे में इस रिपोर्ट में अधिक पढ़ सकते हैं.
द क्विंट से बात करते हुए शबाना ने कहा, "मैं अभी भी इस बात से उबर नहीं पा रही हूं कि हमारा घर, जो हमारे खून, पसीने और आंसुओं से बनाया गया था, उसे ध्वस्त कर दिया गया है. उस दिन की याद आज भी हमें हर रात सताती है... "
वकील हसन ने इसे अपने जीवन का "अंधकार वाला दौर" बताते हुए कहा,
दोनों ने क्विंट को बताया कि डेमोलिशन का उन पर "गहरा आर्थिक प्रभाव" पड़ा है. साथ ही उन्होंने कहा कि इससे हसन के रोजगार पर भी असर पड़ा है.
डेमोलिशन के तीन दिन बाद, डीडीए ने 2 मार्च को एक बयान में कहा कि उसने वकील हसन को उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना के निर्देश पर नरेला में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए बनाया गया एक फ्लैट और रोजगार देने की पेशकश की थी. हालांकि, हसन ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था.
इसके बाद डीडीए ने कहा कि एलजी ने एक बार फिर दिलशाद गार्डन में वकील हसन को 2 बीएचके डीडीए फ्लैट देने का आदेश दिया है. हालांकि, इसे भी उन्होंने अस्वीकार कर दिया था.
शबाना ने दावा किया कि डीडीए ने उन्हें लिखित में नहीं दिया था कि वैकल्पिक आवास उनका होगा.
"नरेला हमारे लिए बहुत दूर है. मैंने सोसायटी के बारे में पूछताछ की और एरिया के बारे में ऐसी-वैसी बातें सुनी हैं. कल, अगर हम चले गए और बाद में मेरे बच्चों के साथ कुछ हो गया तो क्या होगा? क्या डीडीए इसकी जिम्मेदारी लेगा?" उन्होंने पूछा.
वकील हसन और शबाना, दोनों ने कहा कि उन्हें डर है कि डीडीए उन्हें "स्थायी नहीं बल्कि अस्थायी समाधान" दे रहा है.
क्विंट ने यह समझने के लिए डीडीए पीआरओ बिजय शंकर रॉय से कई बार कॉल और मैसेज के जरिए संपर्क किया कि क्या अधिकारी किसी नए प्रस्ताव के साथ परिवार तक पहुंचे हैं. जवाब मिलने पर स्टोरी को अपडेट किया जाएगा.
हसन परिवार के लिए हर दिन का जीवन बेहद कठिन हो गया है. उपयोग करने के लिए टॉयलेट नहीं है और खाना पकाने के लिए किचन नहीं. ऐसे में यह परिवार न्याय की उम्मीद में अपने टेंट के अंदर बैठकर अपना पूरा दिन बिताता है.
दिल की बीमारी से पीड़ित शबाना ने कहा कि टॉयलेट न होना रात में उनके और उनके परिवार के लिए एक समस्या है.
इस बीच, वकील ने कहा कि उनका अस्थायी टेंट गंदा पानी निकलने वाली नाली के ऊपर है, जिसके कारण उन्हें दुर्गंध और मच्छरों के बीच सोना पड़ रहा है, जिससे उनकी परेशानी बढ़ गई है. उन्होंने कहा, "इसकी वजह से हमारा सबसे छोटा बेटा बुखार और सर्दी से पीड़ित हो गया है."
इसके अलावा, परिवार ने द क्विंट को बताया कि राहगीर अक्सर उनके टेंट को कबाड़ की दुकान समझ लेते हैं.
अलीजा डेमोलिशन के कारण अपनी 10वीं की परीक्षा नहीं दे पाई. उसने कहा कि भले ही उसने स्कूल फिर से शुरू कर दिया है, लेकिन वह पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने में असमर्थ है. उसने क्विंट को बताया, "मेरा दिमाग हमेशा यही सोचता रहता है कि क्या अम्मी और अब्बू ठीक हैं या नहीं, क्योंकि वे काफी तनाव में हैं. मुझे उनकी सेहत की चिंता है."
अलीज़ा ने पूछा, "क्या यह भी कोई जिंदगी है जहां हमें सड़क के किनारे एक टूटी लकड़ी की खाट पर बैठना पड़ता है?"
वकील हसन और उनके परिवार ने मांग की है कि डीडीए या तो उनके घर को फिर से बनाए करे या उन्हें उसी इलाके में एक प्लॉट दे.
3 मार्च को बीजेपी सांसद मनोज तिवारी ने कहा कि हसन के परिवार को जल्द ही प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) के तहत घर दिया जाएगा. मनोज तिवारी के वादे पर हसन ने कहा कि उनसे न तो बात की गई है और न ही उन्हें लिखित में कुछ दिया गया है.
वकील और उनके परिवार ने कहा कि वे तब तक इलाके में रहेंगे जब तक उन्हें "न्याय नहीं मिल जाता". उन्होंने भूख हड़ताल करने की भी बात की है.
वकील हसन कहते हैं, "यह हमारा घर है. या तो वे एक घर बनाएं या हमें हमारे पुराने घर के पास एक घर दे दें. मुझे बहुत उम्मीद नहीं है, लेकिन जब तक हमें हमारा घर वापस नहीं मिल जाता, हम एक इंच भी पीछे नहीं हटेंगे."
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