Rat Miner's Home Razed: नवंबर 2023 में 44 साल के रैट माइनर्स, वकील हसन का दिल्ली के खजूरी खास में उनके घर पर स्वागत किया गया था. वकील हसन ने उत्तराखंड में उत्तरकाशी की सिलक्यारा सुरंग में 17 दिनों तक फंसे 41 श्रमिकों की जान बचाने वाली 12 सदस्यीय टीम का नेतृत्व किया था. लेकिन तीन महीने बाद 28 फरवरी को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने "अतिक्रमण विरोधी" अभियान के तहत वकील हसन का घर जमींदोज कर दिया और उनके पांच लोगों के परिवार को बेघर कर दिया.
बर्तन, एक फ्रिज, एक घड़ी और गद्दे से घिरे अपने घर के मलबे के सामने बैठे हसन ने द क्विंट से दर्द भरी आवाज में कहा...
"जब हमने 41 मजदूरों की जान बचाई, तो खतरों के बारे में नहीं सोचा. हमने यह नहीं सोचा कि हम जिंदा रहेंगे या मरेंगे... लेकिन क्या बदले में हमें यही मिलेगा? अब मैं कहां जाऊंगा? मेरा परिवार और मुझे सड़कों पर छोड़ दिया गया है.''
वहीं हसन के परिवार का दावा है कि उनके घर को "बिना पूर्व सूचना के" ध्वस्त कर दिया गया था. डीडीए दिल्ली में आवास परियोजनाओं और वाणिज्यिक भूमि के विकास के लिए जिम्मेदार है. उसने कहा कि भूमि पहले एक विकास परियोजना के लिए प्राधिकरण द्वारा अधिग्रहित की गई थी और उस पर अतिक्रमण किया गया था.
28 फरवरी को क्या हुआ था?
वकील हसन और उनकी 41 साल की पत्नी शबाना 2012 से खजूरी खास में श्री राम कॉलोनी में बने घर में रह रहे थे, जो अब ध्वस्त हो चुका है.
उनके तीन बच्चे हैं- अजीम (17), अलीजा (15) और आरिश (7). अजीम वेल्डिंग का काम करता है. अलीजा एक सरकारी स्कूल में 10वीं कक्षा की छात्रा है और आरिश एक निजी स्कूल में पढ़ने जाता है.
हसन रॉकवेल एंटरप्राइजेज कंपनी के मालिक हैं. उनकी कंपनी रैट होल माइनर को रोजगार देती है. उन्होंने कहा कि डीडीए अधिकारी 28 फरवरी को सुबह लगभग 9 बजे उनके घर पहुंचे.
वकील हसन ने कहा...
"मैं और मेरी पत्नी सुबह बाहर गए थे और घर पर केवल मेरे बच्चे थे. DDA अधिकारियों ने पुलिसकर्मियों के साथ मिलकर मुख्य दरवाजे को जोर-जोर से खटखटाना शुरू कर दिया. मेरे बच्चे डर गए और उन्होंने दरवाजा बंद कर लिया. मेरे बेटे ने मुझे फोन किया और मुझे वापस आने के लिए कहा. मैं वापस लौटने के लिए भागा और उन्हें आगे न बढ़ने के लिए कहने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने नहीं सुनी."
पंद्रह साल की अलीजा ने द क्विंट को बताया कि डीडीए अधिकारियों ने कथित तौर पर उससे कहा कि वे उसके पड़ोसी हैं और उससे बात करना चाहते हैं.
"मेरा भाई सो रहा था. जब मेरे माता-पिता बाहर होते हैं तो मैं आमतौर पर दरवाजा बंद कर देती हूं. मैं तब तक दरवाजा नहीं खोलती जब तक मैं नहीं जानती कि कौन है. मैं उनसे कहती रही कि मेरे पिता के लौटने के बाद वापस आ जाएं, लेकिन उन्होंने जोर-जोर से दरवाजा पीटना शुरू कर दिया. फिर उन्होंने दरवाजा तोड़ दिया. मेरे भाई ने विरोध करने की कोशिश की, लेकिन उसे चोट लग गई. हमने उन्हें घर गिराने से रोकने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने मेरी आंखों के सामने ये सब किया.''अलीजा
हसन के सबसे बड़े बेटे अजीम, जो 17 साल के हैं, उसने दावा किया कि पुलिस ने उसके और उसकी बहन के साथ कथित तौर पर दुर्व्यवहार किया था. उन्होंने दावा किया, ''मैंने उनसे कहा कि हम मर जाएंगे, लेकिन उन्हें घर नहीं तोड़ने देंगे. उन्होंने मेरा कॉलर खींचा और मुझे थप्पड़ मारा."
41 साल की शबाना कहती हैं "पुलिसकर्मियों ने मेरे बच्चों के साथ मारपीट की. उन्होंने मेरे बच्चों से कहा कि वे उपद्रव कर रहे हैं... हमने इस घर को अपने खून, पसीने और आंसुओं से बनाया है. हमने इस घर में अपना सब कुछ लगा दिया है. क्या घर बचाना गलत और कानून के खिलाफ है?"
हसन ने कहा कि उन्होंने विध्वंस को लेकर डीडीए और पुलिस अधिकारियों से पूछताछ की. उन्होंने दावा किया, "जब मैंने उनसे पूछताछ तो उन्होंने कहा कि मैं दुर्व्यवहार कर रहा था और फिर मुझे और मेरे दोस्त को (हमें रिहा करने से पहले कुछ घंटों के लिए) पुलिस स्टेशन (खजुरी खास) ले गए. वहां पुलिस ने हमारे साथ दुर्व्यवहार किया."
हसन और उसके परिवार के सदस्यों के आरोपों पर क्विंट ने कई बार कॉल और मैसेज के जरिए पूर्वोत्तर दिल्ली के डीसीपी जॉय टिर्की से संपर्क किया. अगर उनका जवाब मिलेगा तो इस स्टोरी को अपडेट किया जाएगा.
इस बीच, नाम न छापने की शर्त पर बोलते हुए, दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी ने द क्विंट को बताया कि स्थानीय पुलिस को केवल "कानून और व्यवस्था बनाए रखने" में सहायता प्रदान करने के लिए भेजा गया था. आरोपों को खारिज करते हुए अधिकारी ने कहा, 'ऐसा कुछ नहीं हुआ.'
हसन का दावा- बिना पूर्व सूचना के तोड़फोड़ किया गया, DDA ने किया इनकार
हसन ने आरोप लगाया कि अधिकारियों ने सिर्फ उनके घर को निशाना बनाया है. इस बात पर जोर देते हुए कि विध्वंस से पहले उन्हें कोई नोटिस नहीं दिया गया था.
उन्होंने कहा...
"मैं पिछले 12 सालों से इस घर में रह रहा हूं. इन सालों के दौरान उन्होंने मुझे कई बार निशाना बनाया है. उस क्षेत्र में बहुत सारे घर हैं, जिनके बारे में उन्होंने कहा कि यह डीडीए की जमीन है, लेकिन केवल मुझे निशाना बनाया गया."
अपनी कार्रवाई पर कायम रहते हुए, डीडीए ने 29 फरवरी को जारी एक बयान में कहा कि "एक प्राधिकरण के रूप में अपनी भूमिका में, वह अपनी भूमि पर अतिक्रमण या अपने विकास क्षेत्रों में अनधिकृत निर्माण की अनुमति नहीं दे सकता है".
डीडीए ने यह भी कहा कि हसन को अपने घर की "अतिक्रमण की स्थिति" के बारे में पता था क्योंकि इसे पहले 2016 में हटा दिया गया था और 2017 में फिर से अतिक्रमण कर लिया गया था.
"सितंबर 2022 और दिसंबर 2022 में फिर से विध्वंस की योजना बनाई गई थी. विध्वंस की कोशिशों को एक बार फिर परिवार की महिलाओं ने विफल कर दिया, जिन्होंने खुद को शारीरिक नुकसान पहुंचाने की कोशिश की और परिसर के अंदर आत्मदाह की धमकी दी. ये सभी प्रयास डीडीए द्वारा विषयगत संपत्ति को ध्वस्त करने की बात वकील और उनके परिवार को अच्छी तरह से पता थी और इस प्रकार, वे एक अतिक्रमणकारी के रूप में अपनी स्थिति के बारे में अच्छी तरह से जानते थे."DDA का बयान
यह कहते हुए कि यह एक "नियमित अतिक्रमण हटाने का अभियान" था, डीडीए ने कहा कि बुधवार की कार्रवाई "किसी विशेष व्यक्ति को निशाना बनाकर नहीं" की गई थी.
डीडीए ने यह भी कहा कि अधिकारियों ने विध्वंस के दिन हसन के परिवार को अतिक्रमित क्षेत्र को खाली करने के लिए सूचित किया था.
'हमारा सारा सामान खो गया...बेटी की परीक्षा छूट गई'
तोड़फोड़ के बाद, हसन और उसके परिवार ने अपने टूटे हुए घर के पास सड़क पर रात बिताई.
"उन्होंने हमें अपना सामान उठाने का भी समय नहीं दिया... भगवान का शुक्र है कि मेरी भाभी अंदर भागीं और कुरान निकाल लाईं... हमारे पास पहनने के लिए कपड़े भी नहीं हैं. साथ ही, हम ये भी नहीं जानते हैं कि हम क्या बचा पाए और क्या नष्ट हो गया,'' शबाना ने कहा.
10वीं कक्षा की छात्रा अलीजा ने कहा कि तोड़फोड़ के दौरान उसकी स्कूली किताबों के साथ-साथ उसका ज्यादातर सामान नष्ट हो गया.
आंखों में आंसू लिए अलीजा ने द क्विंट को बताया, "मेरे सभी दस्तावेज जगह-जगह हैं. मेरा फोन, जिसमें मेरा ज्यादातर स्टडी मटेरियल है वो भी टूट गया है. मेरी आज (29 फरवरी) विज्ञान की परीक्षा थी, लेकिन इस वजह से मुझे इसे छोड़ना पड़ा. मैं नहीं कर सकी. मैंने अपनी किताबें भी नहीं बचा सकी. जरा सोचिए, मेरी बोर्ड परीक्षाएं चल रही हैं, लेकिन मेरे पास तैयारी के लिए कोई सामान नहीं है."
अलीजा ने कहा...
"कुछ दिनों में मेरी परीक्षा है, लेकिन मैं मानसिक रूप से परेशान हूं और मैं पढ़ाई नहीं कर सकती. मैंने अपने पिता को कभी रोते नहीं देखा था, लेकिन कल मैंने उन्हें रोते हुए देखा. मेरी मां का भी बुरा हाल हो गया है. उन्हें देखकर मेरा दिल टूट गया..."
इस बीच, शबाना को चिंता है कि अलीजा की परीक्षा छूटने से वह 10वीं कक्षा में फेल हो जाएगी. "मैं अपने बच्चे के भविष्य को लेकर चिंतित हूं. वह एक प्रतिभाशाली लड़की है, जो मेरे इलाके में 40 छात्रों के लिए मुफ्त ट्यूशन देती है. मुझे डर है कि एग्जाम के छूटने का असर उसकी पढ़ाई पर पड़ेगा... क्या स्कूल उसे दोबारा परीक्षा देने की इजाजत देगा क्योंकि उसका घर तोड़ दिया गया है?"
नाम न छापने की शर्त पर शबाना के पिता ने द क्विंट को बताया कि पिछले 36 घंटों से परिवार ने खाना खाने से इनकार कर दिया है.
उन्होंने कहा, "उन्होंने सुबह से ठीक से खाना नहीं खाया है. जब मैंने उनसे पूछा तो उन्होंने कहा कि उनका खाने का मन नहीं है. मैं उनके लिए चिंतित हूं..."
'BJP सांसद ने हमें आश्वासन दिया कि हमारे घर को कुछ नहीं होगा': हसन
क्विंट से वकील हसन ने कहा...
"हमने 41 लोगों की जान और उनके परिवारों को बचाया है... पूरे देश ने हमारे प्रयासों की सराहना की. लेकिन मुझे समझ नहीं आता कि अब मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है. हमने इतना अच्छा काम किया लेकिन बदले में, मेरा अपना घर ढहा दिया गया है."
हसन ने कहा कि सुरंग रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद, उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सांसद मनोज तिवारी से यह सुनिश्चित करने का अनुरोध किया था कि उनके घर को ध्वस्त नहीं किया जाएगा.
हसन ने आरोप लगाया, "तिवारी जी ने मुझे आश्वासन दिया कि इस घर को कुछ नहीं होगा. उन्होंने यहां तक कहा कि वह आएंगे और हमारे साथ खाना खाएंगे... लेकिन अब वह हमारा फोन भी नहीं उठा रहे हैं."
तोड़फोड़ के बारे में पूछे जाने पर मनोज तिवारी ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा:
“हां, जिस दिन हमने उसका अभिनंदन किया था, उस दिन मैंने उससे वादा किया था. लेकिन जब मैंने मामले पर गौर किया, तो मुझे एहसास हुआ कि इसमें कई समस्याएं थीं...घर से संबंधित कुछ कानूनी मुद्दे थे...''
बीजेपी सांसद ने यह भी कहा कि हसन के परिवार को जल्द ही प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) के तहत एक घर दिया जाएगा. मनोज तिवारी के वादे पर हसन ने कहा कि उनसे न तो बात की गई है और न ही उन्हें लिखित में कुछ दिया गया है.
इस बीच, 1 मार्च यानी गुरुवार की दोपहर को अपने बयान में डीडीए ने कहा कि जब सुरंग बचाव अभियान में हसन की भूमिका सामने आई, तो अधिकारियों ने उसके परिवार के लिए आश्रय की वैकल्पिक व्यवस्था की. हालांकि, उन्होंने उन्हें दी गई राहत राशि को "अस्वीकार" कर दिया, और "या तो उसी स्थान पर या उसी आसपास किसी भी स्थान पर एक स्थायी घर की मांग की".
बाद में, गुरुवार देर रात जारी एक बयान में, डीडीए ने कहा कि हसन को उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना के निर्देश पर नरेला में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए निर्मित एक फ्लैट के साथ-साथ रोजगार की पेशकश भी की है. हालांकि, हसन ने दोनों से इनकार कर दिया था.
हसन और उनके परिवार ने कहा कि वे तब तक इलाके में रहेंगे, जब तक उन्हें "न्याय नहीं मिल जाता."
"हमें क्यों जाना चाहिए? हमें न्याय चाहिए. यह हमारा घर है. मेरी सरकार से एक प्रार्थना है - मुझे मेरा घर वैसा ही चाहिए जैसा वह था. हमें मौत पर भी इतना दुख नहीं हुआ होगा, जितना हम अभी हमारे घर के विध्वंस पर दुखी हैं."क्विंट से शबाना
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