advertisement
(चेतावनी: इस स्टोरी में हिंसा का जिक्र है, पाठक अपने विवेक का इस्तेमाल करें)
"तुम बच्चे के बारे में फिकर मत करना, नरगिस. मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगा, और तेरा ख्याल रखूंगा. आज माहौल सही लग रहा है, तो मैं काम पे जाके, शाम को वापस आ जाऊंगा. फिर हम बात करेंगे. आई लव यू..."
25 फरवरी 2020 की सुबह सर्द थी. ठीक इससे 20 दिन पहले, नई दिल्ली (New Delhi) के मुस्तफाबाद में 32 साल के स्क्रैप व्यापारी मुरसलीन को पता चला कि उसकी पत्नी नरगिस गर्भवती है.
दोनों खुश थे, लेकिन साथ ही नरगिस के स्वास्थ्य और अपनी मामूली आमदनी पर चार बच्चों का पालन-पोषण कैसे कर पाएंगे इस बात को लेकर चिंतित थे. नरगिस को यह आश्वासन देकर कि सब कुछ ठीक हो जाएगा, मुरसलीन उस दिन सुबह 10 बजे काम पर निकल गए- लेकिन फिर वह कभी वापस नहीं लौटे.
19 दिन बाद, नरगिस को शाहदरा के गुरु तेग बहादुर अस्पताल के मुर्दाघर में मुरसलीन का क्षत-विक्षत शरीर मिला. शरीर पर गोलियों के घाव थे और आंखें सूजी हुई थीं.
विवादास्पद नागरिकता (संशोधन) कानून को लेकर फरवरी 2020 में पूर्वोत्तर दिल्ली में हुई बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा के दौरान, मुरसलीन को कथित तौर पर 'जय श्री राम' नहीं बोलने के लिए भीड़ ने प्रताड़ित किया, फिर गोली मारकर उसकी हत्या कर दी गई और भागीरथी विहार नहर में फेंक दिया गया.
दिल्ली दंगे के दौरान 53 लोगों की मौत हुई थी और 500 से अधिक घायल हुए थे.
हालांकि, विधवा महिलाओं की संख्या पर कोई आधिकारिक आंकड़े नहीं हैं, लेकिन अनुमान है कि यह संख्या 25 है.
हिंसा के चार साल बाद, द क्विंट चार विधवाओं - नरगिस, सायबा, जाहिरा और नीतू की कहानियां आपको बता रहा है, जो अपनी जिंदगी को फिर से बनाने की कोशिश में न खत्म होने वाले सदमें के साथ जी रही हैं.
भले ही नरगिस, सायबा और जाहिरा अजनबी हैं, लेकिन उनमें बहुत समानताएं हैं.
उनके पति- मुर्सलीन (32), आस मोहम्मद (30), और अकील अहमद (35) - या तो काम के लिए या अपने परिवार की देखभाल के लिए बाहर निकले थे, तभी कथित तौर पर भीड़ ने उन्हें पीट-पीट कर मार डाला. 25-26 फरवरी 2020 को तीनों को भागीरथी विहार के नहर में फेंक दिया गया.
25 फरवरी 2020 को, सायबा के पति आस, जो एक दिहाड़ी मजदूर थे, अपनी बेटी की स्कूल की फीस भरने और फिर काम पर जाने के लिए पुराने मुस्तफाबाद स्थित अपने घर से बाहर निकले थे.
पैंतीस साल की जाहिरा और उनके पति अकील जो एक मैकेनिक थे, मुस्तफाबाद के रहने वाले थे. दंगों से एक हफ्ते पहले, वे जाहिरा की मां से मिलने के लिए उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में लोनी गए थे.
चार बच्चों की मां जाहिरा ने द क्विंट को बताया कि 26 फरवरी 2020 को, अकील को मुस्तफाबाद में अपने परिवार की सुरक्षा के बारे में चिंता होने लगी और उन्होंने वापस लौटने का फैसला किया. रात करीब साढ़े नौ बजे अकील की कथित तौर पर दंगाइयों ने हत्या कर दी.
जून 2020 में दिल्ली पुलिस द्वारा दायर चार्जशीट के मुताबिक, कथित तौर पर 'जय श्री राम' का नारा लगाने से इनकार करने पर भीड़ ने मुरसलीन, आस और अकील सहित नौ मुसलमानों की हत्या कर दी थी. आरोपपत्र में कथित तौर पर कहा गया है कि आरोपी कटर हिंदू एकता नामक एक व्हाट्सएप ग्रुप का हिस्सा थे, जिसे 25 फरवरी को "मुस्लिम दंगाइयों से बदला लेने के लिए बनाया गया था जो हिंदुओं की हत्या कर रहे थे."
इसके बाद, दिल्ली पुलिस ने घटना के संबंध में नौ आरोपियों को गिरफ्तार किया. समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, जुलाई 2023 में, एक स्थानीय अदालत ने मुख्य आरोपी लोकेश सोलंकी को यह कहते हुए जमानत दे दी कि उसके खिलाफ परिस्थितिजन्य साक्ष्य का सिर्फ एक पहलू मिला है, और इसकी विश्वसनीयता का आकलन मुकदमे के अंतिम चरण में किया जाएगा.
तीनों महिलाओं ने क्विंट को बताया कि वे इस मामले की कार्यवाही से अनजान थीं.
अपनी शादी की 10वीं सालगिरह मनाने के कुछ हफ्ते बाद, ब्रह्मपुरी में सब्जी बेचने वाली 35 वर्षीय नीतू सैनी के पति नरेश की 25 फरवरी 2020 की सुबह "अज्ञात व्यक्तियों" द्वारा गोली मार दी गई थी.
क्विंट से बात करते हुए नीतू बताती हैं, "मैं अपने अनिश्चित भविष्य के बारे में सोचकर रोती हूं. अगले दिन मैं अपने बच्चों को कैसे खिलाऊंगी? मेरी बेटी की शादी कैसे होगी? मैं असल में अब अपनी भावनाओं को समझा नहीं सकती."
सैनी परिवार का कहना है कि दिल्ली पुलिस ने हत्या के मामले में FIR दर्ज की थी, लेकिन उन्हें केस के स्टेटस के बारे में कोई जानकारी नहीं थी.
नीतू ने द क्विंट को बताया, "हम नहीं जानते कि अपराधी कौन हैं क्योंकि कोई भी उन्हें पहचानने में सक्षम नहीं था. हम इस बात से अनजान हैं कि जांच में क्या हुआ, अदालत में क्या चल रहा है और मामला कैसे आगे बढ़ रहा है."
अधिक जानकारी के लिए क्विंट ने दिल्ली पुलिस से संपर्क किया है. पुलिस का जवाब मिलने पर इस स्टोरी को अपडेट किया जाएगा.
2020 में दिल्ली सरकार ने मृतक पीड़ितों के परिजनों को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने की घोषणा की. इसके अलावा, 2,500 रुपये की मासिक विधवा पेंशन दी गई.
हालांकि, महिलाओं का कहना है कि यह उनके परिवारों के भरण-पोषण के लिए काफी नहीं था.
घर के रोजाना के खर्चों को पूरा करना मुश्किल हो रहा था इसलिए लोनी स्थित दर्जी का काम करने वाली जाहिरा को अपने बड़े बेटे मोहम्मद जैद को मजबूर होकर स्कूल छुड़ाना पड़ा और साल 2022 में उसे नौकरी खोजने के लिए कहना पड़ा. जैद तब सिर्फ 17 साल का था.
इस बीच, साइबा ने द क्विंट को बताया कि उसके पति की मौत के बाद उसके ससुराल वाले उसके खिलाफ हो गए, उसे संपत्ति का अधिकार देने से इनकार कर दिया और उसके साथ दुर्व्यवहार किया.
साइबा ने कहा कि मुआवजे की रकम का इस्तेमाल घर खरीदने में किया, जिसके लिए उन्हें हर महीने 6,000 रुपये किराए के रूप में मिलते हैं. इसके अलावा, वह सिलाई के काम से हर महीने लगभग 2,500 रुपये कमाती हैं, लेकिन 2023 के आखिर में "असहनीय" पीठ दर्द की वजह से उसे इसे बंद करना पड़ा.
साइबा का सबसे बड़ा बेटा मोहम्मद रिहान (14) और बेटी सोनम (12) पास के एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ते हैं. वहीं उनकी सबसे छोटी बेटी साइमा जन्मजात सुनने की समस्याओं से पीड़ित है और बोल नहीं सकती. उन्होंने कहा, "हम साइमा का इलाज नहीं करा पाए क्योंकि हमारे पास पर्याप्त पैसे नहीं हैं."
दूसरी तरफ, नीतू के लिए उसके ससुराल वाले ही उसका सबसे बड़ा सहारा हैं. वह अपने बच्चों रिधि (13) और दक्ष (9) के साथ ब्रह्मपुरी में अपने पति के खरीदे एक कमरे के फ्लैट में रहती हैं.
"मेरे ससुराल वालों की एक सब्जी की दुकान है, इसलिए हम वहां से किराने का सामान लाते हैं. मेरे जीजा भी हमारी मदद करते हैं. लेकिन उनसे पैसे मांगना अजीब लगता है क्योंकि उन्हें भी एक परिवार का पालन-पोषण करना है. हम उन्हें कब तक कहेंगे कि हम नई किताबें, कपड़े और स्कूल की जरूरी चीजें खरीदने में सक्षम नहीं हैं?" नीतू ने कहा.
नरगिस भी अपने ससुराल वालों पर निर्भर हैं और वह उन्हीं की बिल्डिंग में एक छोटे से कमरे वाले घर में रहती हैं.
मुरसलीन के बड़े भाई ने नरगिस की चौथे बच्चे मायरा को गोद लिया था - जिसका जन्म उसके पिता की मौत के कुछ महीनों बाद हुआ था. "मैं उसे अपने साथ रखना चाहती हूं. लेकिन मेरे पास तीन बच्चों को खिलाने के लिए इंकम नहीं है. मैं मायरा, जो अभी सिर्फ तीन साल की है उसका भरण-पोषण कैसे करूंगी?" नरगिस
महिलाओं ने द क्विंट को बताया कि पूर्वोत्तर दिल्ली के दंगों में 53 लोग मारे गए - 38 मुस्लिम और 15 हिंदू - जिससे दोनों समुदायों के बीच गहरी दरार पैदा हो गई, उन्होंने कहा कि वे आज भी अपने बच्चों को अकेले बाहर भेजने से डरती हैं.
नीतू सैनी के लिए आगे बढ़ने या माफ करने की कोई संभावना नहीं है.
नीतू ने कहा, "यह दुखद है कि ऐसा हुआ. मेरे पति जैसे निर्दोष लोगों को बिना किसी कारण के इसके बीच में फंसा दिया गया. मुझे अब मुसलमानों से डर लगता है... लेकिन साथ ही, जो लोग हिंदू हित के चैंपियन होने का दावा करते थे, वे कभी भी पीड़ित परिवार को देखने नहीं लौटे. निर्दोष लोगों की जान की कीमत पर, उन्होंने सिर्फ अपना राजनीतिक करियर बनाया.''
हालांकि, चारों महिलाएं एक-दूसरे की तरह ही कहती हैं कि वे अतीत में जाने के बजाय भविष्य के बारे में सोचना चाहती हैं. उन्होंने कहा, "इस बारे में बहुत कुछ कहा जा चुका है. हम अपने दर्द के बारे में बार-बार बोलना नहीं चाहते... कुछ भी नहीं बदलेगा. हम शांति से अपने जीवन में आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं और अपने और अपने बच्चों के बेहतर भविष्य की उम्मीद करते हैं."
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)