Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019उमर खालिद के ‘मीडिया ट्रायल’ पर कोर्ट: ‘न्यूज वेरीफाई करनी चाहिए’

उमर खालिद के ‘मीडिया ट्रायल’ पर कोर्ट: ‘न्यूज वेरीफाई करनी चाहिए’

उमर खालिद और पुलिस के बीच किस बात पर बहस हुई?

ऐश्वर्या एस अय्यर
भारत
Published:
उमर खालिद और पुलिस के बीच किस बात पर बहस हुई?
i
उमर खालिद और पुलिस के बीच किस बात पर बहस हुई?
(फोटो:क्विंट हिंदी)

advertisement

मीडिया ट्रायल के खिलाफ उमर खालिद की एप्लीकेशन पर आदेश सुनाते हुए कड़कड़डूमा कोर्ट के चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट दिनेश कुमार ने कहा कि 'सभी तथ्यों को वेरीफाई करने के बाद ही कोई न्यूज आइटम पब्लिश किया जाना चाहिए.' आदेश में 'गलत रिपोर्टिंग' के उदाहरण के तौर पर एक न्यूज आइटम का खास तौर से जिक्र किया गया.

आदेश में कहा गया: एक न्यूज आइटम में न्यूज इन शब्दों के साथ शुरू होती है “Radical Islamist and Anti Hindu Delhi Riots accused Umar Khalid....”. आदेश में कहा गया कि न्यूज रिपोर्ट पूरे दिल्ली दंगे को हिंदू-विरोधी के तौर पर पेश करती है, जबकि ऐसा केस नहीं है. इसमें लिखा है, "इन दंगों में सभी समुदायों को नतीजे भुगतने पड़े थे."

आदेश में जिस रिपोर्ट का जिक्र किया गया है, वो राइट-विंग पब्लिकेशन OpIndia की खबर लगती है. इसका टाइटल इन्हीं शब्दों के साथ शुरू होता है. क्विंट ने पुष्टि की है कि उमर के वकीलों ने जो असली याचिका डाली थी, ये आर्टिकल कई और न्यूज रिपोर्ट के साथ अटैच किया गया था. 

कोर्ट के आदेश में कहा गया कि 'ऐसे न्यूज आइटम जनता को ये दिखा सकते हैं कि आरोपी उमर खालिद ने दिल्ली दंगों में अपनी भूमिका स्वीकार कर ली है. हालांकि, ये न्यायिक व्यवस्था की जिम्मेदारी है कि वो सुनवाई के बाद मेरिट के आधार पर फैसला सुनाए.'

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

मीडिया ने साफ नहीं किया कि कबूलनामा सबूत नहीं होता: कोर्ट

कई मीडिया रिपोर्ट्स में कबूलनामा या डिस्क्लोजर स्टेटमेंट के आधार पर ये बताया गया था कि उमर खालिद ने दिल्ली दंगों में अपनी भूमिका स्वीकार कर ली है. इस पर कोर्ट के आदेश में कहा गया कि 'पुलिस अधिकारी को दिया गया कबूलनामा कोर्ट में सबूत की तरह पेश नहीं हो सकता.'

आदेश में कहा गया कि न्यूज रिपोर्ट्स में सिर्फ लिखा गया कि खालिद ने अपने शामिल होने की बात कबूली है, लेकिन किसी एक में भी ये साफ नहीं किया कि ऐसे कबूलिया बयान सबूत के तौर पर पेश नहीं होते.

“एक रिपोर्टर को कानून की बुनियादी जानकारी होनी चाहिए क्योंकि पाठक न्यूज आइटम को बिना तथ्यों की प्रमाणिकता जानें उसको सच मान लेते हैं. इसके अलावा हो सकता है कि पब्लिक को कानून के बारे में पता न हो.”
कोर्ट का आदेश  

ये प्रेस की जिम्मेदारी है कि पाठकों को तथ्यों और परिस्थितियों के बारे में शिक्षित करे. आदेश में कहा गया कि 'कोई भी न्यूज आइटम तथ्यों को साफ और वेरीफाई करने के बाद ही छापा जाना चाहिए.'

उमर खालिद और पुलिस के बीच किस बात पर बहस हुई?

आदेश में कहा गया, "आरोपी उमर खालिद की एक शिकायत है कि कई न्यूजपेपर और मीडिया चैनलों पर उनके खिलाफ पक्षपातपूर्ण रिपोर्ट्स चलाई गईं." खालिद के वकीलों ने बताया था कि आरोपी को चार्जशीट दिए जाने से पहले ही वो मीडिया को लीक कर दी गई थी.

दिल्ली पुलिस ने कोर्ट को बताया था कि मीडिया को चार्जशीट पुलिस ने लीक नहीं की थी. आदेश में पुलिस के हवाले से कहा गया, "चार्जशीट फाइल करने या उसके बाद पुलिस ने कोई प्रेस रिलीज जारी नहीं की और कोई मीडिया ब्रीफिंग नहीं हुई."

कई मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया था कि उमर खालिद ने अपने कबूलनामे में दिल्ली दंगों में अपनी भूमिका स्वीकार की है.

उमर और उनके वकीलों ने कोर्ट को कई बार बताया कि खालिद ने ऐसा कोई कबूलनामा नहीं लिखा है. 4 अक्टूबर 2020 को कोर्ट को बताया गया कि खालिद ने 'पुलिस अधिकारी या किसी के भी सामने कुछ कबूल नहीं किया है.' ये सब कोर्ट के आदेश का हिस्सा है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT