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“कपिल मिश्रा तुम लट्ठ बजाओ, हम तुम्हारे साथ हैं. मुल्लों पर तुम लट्ठ बजाओ, हम तुम्हारे साथ हैं. च*रों पर तुम लट्ठ बजाओ, हम तुम्हारे साथ हैं. रावण पर तुम लट्ठ बजाओ, हम तुम्हारे साथ हैं.”
24 फरवरी को दिल्ली पुलिस मुख्यालय में दर्ज एक शिकायत में यही कहा गया था कि एक दिन पहले यानी, 23 फरवरी की दोपहर को उत्तर पूर्वी दिल्ली में ऐसे ही नारे लगाए गए थे.
द क्विंट ने उत्तर पूर्वी दिल्ली के दंगों से जुड़ी बहुत सी शिकायतों को एक्सेस किया जिनमें साफ पता चलता था कि हिंदुत्व का समर्थन करने वाले एक गुट का गुस्सा सिर्फ मुसलमानों और सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ ही नहीं, दलितों के खिलाफ भी था.
इस स्टोरी में हम तीन ऐसी शिकायतों के कुछ अंश पेश कर रहे हैं- साथ ही इसमें स्वयंभू हिंदूवादी नेता रागिनी तिवारी का वीडियो भी पोस्ट किया जा रहा है जिसमें वह दलित एक्टिविस्ट को “काट डालने” की बात कर रही है. स्टोरी में कुछ एक्सपर्ट्स बता रहे हैं कि आखिर दिल्ली के दंगों में दलितों को निशाना क्यों बनाया गया था.
यह शिकायत उत्तर पूर्वी दिल्ली के दंगों से जुड़ी शुरुआती शिकायतों में से एक है, जिसे 23 फरवरी को दर्ज कराया गया था. इसी दिन हिंसा भड़की थी.
‘23.02.2020 को आज दोपहर दो बजे यह कोशिश की गई कि शांति और सौहाद्र को भंग किया जाए. शांति भंग करने के लिए 20 से 25 लोगों की भीड़ ने भड़काऊ नारे लगाने शुरू किए और चिल्लाने लगे, “कपिल मिश्रा, तुम लट्ठ बजाओ, हम तुम्हारे साथ हैं. मुसलमानों पर तुम लट्ठ बजाओ, हम तुम्हारे साथ हैं. जाटव दलितों पर तुम लट्ठ बजाओ, हम तुम्हारे साथ हैं. रावण (भीम आर्मी वाले) पर तुम लट्ठ बजाओ, हम तुम्हारे साथ हैं.”
इसके बाद कपिल मिश्रा अपने कुछ गुर्गों के साथ वहां पहुंचे. उनके हाथों मे बंदूकें, तलवार, त्रिशूल, भाले, लाठी, पत्थर, बोतलें थीं- वे सभी वहां जमा हुए और सांप्रदायिक और जातिसूचक नारे लगाने लगे.
फिर कपिल मिश्रा ने भड़काऊ भाषण देना शुरू किया. वह बोले, ‘ये हमारे घर-टॉयलेट साफ करने वालों को क्या अब हम अपने सिर पर बैठाएंगे.’ इस पर उनके गुर्गों ने जवाब दिया, ‘बिल्कुल नहीं.’
(23 फरवरी को सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के भीम आर्मी के भारत बंद आंदोलन के समर्थन में घेराबंदी की थी. आरक्षण के मुद्दे पर भीम आर्मी ने भारत बंद का आह्वान किया था. कपिल मिश्रा उसी घेराबंदी की बात कर रहे थे.)
कपिल मिश्रा भीड़ को भड़काने का काम कर रहे थे. वह हवा में अपनी बंदूक लहरा रहे थे और चिल्ला रहे थे- “इन हरामजादों को छोड़ना नहीं. आज हमें इन्हें ऐसा सबक सिखाना है कि ये लोग प्रोटेस्ट करना भूल जाएं.
इसके बाद कपिल मिश्रा और उनके गुर्गों ने सुनियोजित षडयंत्र के साथ अल्पसंख्यक और दलित समुदाय के लोगों पर हमला करना शुरू कर दिया जिसके बाद इन समुदायों में डर पैदा हो गया.”
यह शिकायत 17 मार्च को दयालपुर पुलिस स्टेशन में यमुना विहार में रहने वाले एक व्यक्ति ने दर्ज कराई थी.
इस शिकायत से पहली शिकायत में दर्ज बातों की पुष्टि होती है कि 23 फरवरी को क्या हुआ था
इस शिकायत में 25 फरवरी की कथित घटनाओं का विवरण भी है:
“25.02.2020 को महिला प्रदर्शनकारी जले हुए पंडाल में वापस लौटीं और उन्होंने वहां बाबा भीमराव अंबेडकर साहब का तस्वीर लगा दी. करीब 1 बजे मोहन नर्सिंग होम के मालिक और कुछ दूसरे लोग नर्सिंग होम की छत पर चढ़कर वहां से गोलियां चलाने लगे, पत्थर फेंकने लगे. इस समय वहां एसएचओ मौजूद थे और वह औरतों को धक्का देने लगे और उन्होंने गंदी गालियां देने लगे. उन्होंने बाबा साहेब की तस्वीर फाड़ी और फेंक दी.”
शिकायत में आरोप लगाया गया है कि भीड़ के पास बंदूकें, तलवार, त्रिशूल, भाले, कांच की बोतलें, पत्थर, लाठियां वगैरह थीं और वे खुले में बंदूकें तानकर चल रहे थे, जिससे अल्पसंख्यकों और दलितों में डर और आतंक फैल गया.
यह शिकायत बाबरपुर के एक व्यक्ति ने 6 मई को दिल्ली पुलिस मुख्यालय में दर्ज कराई थी. शिकायतकर्ता बाबा साहेब का फॉलोअर होने का दावा करता है. यहां उसकी शिकायत के कुछ हिस्से छापे जा रहे हैं:
“चूंकि मैं बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर का अनुयायी हूं, इसलिए मैं दूसरे प्रदर्शनकारियों के साथ जय भीम, जय संविधान के नारे लगाता था. दयालपुर के एसएचओ तारकेश्वर और एसीपी अनुज कुमार प्रदर्शनों के दौरान वहां आते थे और मुझ पर बहुत गुस्सा होते थे.. वे बाबा साहेब के बारे में गंदी भाषा का इस्तेमाल करते थे और कहा करते थे कि अगर मैंने और दूसरे लोगों ने ऐसे नारे लगाने नहीं छोड़े तो हमें ऐसा सबक सिखाया जाएगा जिसे हम जिंदगी भर न भूलें.”
23.02.2020 को प्रदर्शन वाली जगह पर बहुत से पुलिस वाले आए और वहां जमा लोगों, अनुसूचित जाति के लोगों और बाबा भीमराव अंबेडकर साहब को गालियां देने लगे.
24.02.2020 को पुलिस वालों के साथ गुंडे आए और टेंट में घुसकर औरतों की पिटाई करने लगे. उनके साथ मारपीट और छेड़छाड़ करनी शुरू कर दी. वे मुसलमानों, बाबा साहेब और अनुसूचित जाति के लोगों को गालियां दे रहे थे. उनमें से कई ने भगवा गमछा पहना हुआ था और वे लोग बाबा साहेब, अबुल कलाम आजाद, अशफाकुल्ला खान और सावित्री बाई फुले की तस्वीरों को फाड़ रहे थे, जला रहे थे. उन्होंने उन धार्मिक किताबों को भी फाड़ा और जलाया जो वे औरतों अपने साथ लाई थीं.
इन शिकायतों के अलावा एक वीडियो भी है जिसमें हिंदूवादी नेता दलितों के साथ हिंसा करने की बात कह रहे हैं. हिंसा के दौरान एक स्वयंभू हिंदुत्व नेता रागिनी तिवारी उर्फ जानकी बहन का वीडियो खूब वायरल हुआ.
रागिनी ने 23 फरवरी को दोपहर में मौजपुर के पास एक फेसबुक लाइव वीडियो किया था जिसका वह हिस्सा था.
इस वीडियो में रागिनी साफ कहती सुनी जा सकती हैं, काट डालो, जो भी है, काट डालो, भीमटी है क्या? ये शब्द तब फूटे, जब उन्हें लगा कि सामने दिखने वाला शख्स भीम आर्मी का हो सकता है.
भीमटी या भीमता बाबा साहेब अंबेडकर के समर्थकों के लिए इस्तेमाल होने वाला अपमानजनक शब्द है.
तिवारी ने खुद कबूल किया था कि उन्होंने 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में भाजपा के लिए प्रचार किया था. इससे पहले वह अक्सर सोशल मीडिया पर बहुजन एक्टिविस्ट्स पर हमले कर चुकी हैं. दलित
एक्टविस्ट्स रागिनी की अभद्र टिप्पणियों और उनके जवाब के कई वीडियो पोस्ट कर चुके हैं.
हमने कपिल मिश्रा, रागिनी तिवारी और दिल्ली पुलिस से उन पर लगे आरोपों का जवाब मांगने की कोशिश की.
रागिनी ने इन आरोपों को ‘बेबुनियाद’ बताया.
उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि घेराबंदी के दौरान उन पर हमले किए गए थे.
कपिल मिश्रा ने इन आरोपों का जवाब नहीं दिया और कहा, ‘मेरी व्यक्तिगत राय यह है कि द क्विंट देश विरोधी है और सच्चाई के प्रति बायस्ड है.’
हमने एसएचओ तारकेश्वर सिंह और एसीपी अनुज कुमार से भी इन आरोपों पर जवाब मांगने के लिए संपर्क किया. एचएचओ ने कहा कि वह इस मामले पर मीडिया से बात करने के लिए अधिकृत नहीं हैं लेकिन उन्होंने कहा कि “अपने पीआरओ के जरिए हम पहले ही यह स्पष्ट कर चुके हैं कि ये शिकायतें झूठी और बेबुनियाद हैं.”
एसीपी अनुज कुमार ने हमारे मैसेज और कॉल्स का जवाब नहीं दिया है. जब वह जवाब देंगे तो इस स्टोरी को अपडेट कर दिया जाएगा.
हमने कई एक्सपर्ट्स से बातचीत की और यह पता लगाने की कोशिश की सांप्रदायिक हिंसा में दलितों को कथित रूप से निशाना बनाने के पीछे क्या कारण रहे होंगे.
‘आई कुड नॉट बी हिंदू: द स्टोरी ऑफ ए दलित इन आरएसएस’ के लेखक भंवर मेघवंशी का कहना है, “दलितों के प्रति कट्टरपंथी हिंदुवादी संगठनों का गुस्सा हमेशा से रहा है, लेकिन अब यह साफ तौर से दिखाई दे रहा है और दलितों को भी सांप्रदायिक हिंसा में निशाना बनाया जा रहा है.”
उनका कहना है कि 2 अप्रैल 2018 को भारत बंद एक टर्निंग प्वाइंट रहा.
मेघवंशी ने उत्तर पूर्वी दिल्ली की हिंसा के बारे में कहा:
कवि और दलित एक्टिविस्ट मीना कंडासामी हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में गई थीं. “दक्षिणपंथी समूहों के लिए भारतीय संदर्भ में सैद्धांतिक दुश्मन डॉ. बी आर अंबेडकर हैं जिन्होंने हमेशा हिंदूवादी कट्टरपंथियों को एक्सपोज किया है. इसलिए हैरानी नहीं होती कि दिल्ली के सांप्रदायिक दंगों में हिंदूवादी समूहों ने उनकी तस्वीरों को फाड़कर फेंका दिया.”
कपिल मिश्रा की कथित टिप्पणियों पर मीना का कहना है,
उनके अनुसार, साफ है कि संघ परिवार दलितों और मुसलमानों को एक जैसा समझता है.
उन्होंने कहा कि अपर कास्ट के गुस्से और हिंदुत्व की राजनीति को अलग करके नहीं देखा जा सकता.
1990 के दशक के आखिरी सालों में कॉलेज परिसरों में मंडल विरोधी अपर कास्ट हिंदू दंगे और आंदोलन करने लगे थे. इसके बाद यह पूरे देश में फैल गया- यह अपरकास्ट पुरुष क्रोध, हिंदुत्व के क्रोध के रूप में एल. के. आडवाणी की रथयात्रा में नजर आया जो मंदिर बनाने की तैयारी कर रहा था. इसके बाद यह नफरत 1992 में बाबरी मस्जिद के ध्वंस पर आकर खत्म हुई. इसके बाद दंगों का एक नया दौर शुरू हुआ. संघ परिवार के दलित विरोधी, ओबीसी विरोधी डीएनए को उसके मुसलिम विरोधी चेहरे से अलग करके देखना मुश्किल है. मीना कहती हैं.
मेघवंशी की तरह कंडासामी भी कहती हैं कि इन हमलों का एक कारण यह हो सकता है कि सीएए विरोध प्रदर्शनों के दौरान मुसलमानों और दलितों के बीच एकजुटता नजर आई.
इस एकजुटता के बीच एक नाम और उभरकर आया- भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर आजाद का.
आजाद के अनुसार, आरएसएस हमेशा से दलित विरोधी रहा है. इस बात में कोई हैरानी नहीं कि सीएए विरोधी प्रदर्शनों का समर्थन करने के कारण दलितों के प्रति उनका गुस्सा हमलों के रूप में जाहिर हुआ, और इसीलिए अंबेडकर के पोस्टर फाड़े गए.
द कैरेवान के पॉलिटिकल एडिटर हरतोष सिंह बल का कहना है कि दिल्ली के दंगे उस अतीत से रवानगी की तरह है जब हिंदुत्व संगठन मुसलमानों पर हमला करने के लिए दलित और ओबीसी लोगों को इस्तेमाल करते थे.
‘दलित और ओबीसी आरएसएस जैसे हिंदुत्व अपर कास्ट संगठनों का हथियार थे ताकि वे उन्हें इकट्ठा करके मुसलमानों पर हमला करें. कई शहरी क्षेत्रों में दो समुदायों के बीच आर्थिक प्रतिस्पर्धा रहती है जो एक दूसरे के नजदीक रहते हैं. इसलिए अतीत में दोनों समुदायों के बीच हिंसा भी भड़कती रही है. लेकिन अब वह दौर खत्म हो गया है.’
वह कहते हैं, ‘आरएसएस के लिए सबसे बड़ा खतरा यह है कि कहीं मुसलमान और दलित एक साथ खड़े न हो जाएं. यह राजनीतिक, संगठनात्मक और सामाजिक स्तर पर उनके अस्तित्व के लिए खतरनाक है. हिंदू समाज की उनकी जो अवधारणा है, यह उसमें सबसे बड़ा धक्का है, जिसे वे कभी नहीं देखना चाहते.’
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