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''बच्चे पूछते हैं कि अब्बू कब आएंगे?'', दिल्ली दंगों में गिरफ्तार तसलीम की कहानी

Delhi Riots के आरोप में जेल में बंद 'अनजान चेहरों' की कहानी 22 जून को क्विंट पर

शादाब मोइज़ी
भारत
Updated:
<div class="paragraphs"><p>Delhi Riots Documentary: ''बच्चे पूछते हैं कि अब्बू कब आएंगे?''- तसलीम की कहानी</p></div>
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Delhi Riots Documentary: ''बच्चे पूछते हैं कि अब्बू कब आएंगे?''- तसलीम की कहानी

(फोटो- Quint)

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"बच्चों से मुझे झूठ बोलना पड़ता है. बच्चे पूछते हैं कि अब्बू कब आएंगे? और मैं बोलती हूं कि बेटा दो-तीन दिन में आ जाएंगे. फिर बच्चे कहते हैं कि अम्मी आप झूठ बोलते हो, आप तो कहती हैं कि अब्बू आ जाएंगे लेकिन वो आते ही नहीं हैं."

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उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों (Delhi Riots) की साजिश के मामले में गैरकानूनी गतिविधि (निवारण) अधिनियम के तहत गिरफ्तार तसलीम अहमद (Tasleem Ahmed) की पत्नी फहमीदा कमजोर आवाज में फोन पर ये सब कह रही थीं, लेकिन अगले ही पल फहमीदा मजबूती से पूछती हैं कि क्या नागिरकता संशोधन कानून और एनआरसी के विरोध प्रदर्शन में शामिल होना गुनाह है? मेरे पति विरोध प्रदर्शन में अपने हक के लिए जाते थे. अपने हक के लिए प्रोटेस्ट करना कोई गलत बात तो है नहीं."

CAA के विरोध में हुए प्रदर्शनों के बाद फरवरी 2020 में नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में दंगे हुए. आरोप लगा कि कई बेगुनाहों को पुलिस ने जेल में डाल रखा है. इनमें से कई तो सुर्खियों में आए लेकिन कई अनजान चेहरे हैं जो कालकोठरियों में गुम हो गए हैं. क्विंट इन्हीं ऐसे ही चार अनजान चेहरों पर एक डॉक्यूमेंट्री ला रहा है 22 जून को. यहां आप इनमें से एक तसलीम अहमद की कहानी पढ़ रहे हैं. अगर आपको ये कहानी अच्छी लगी और आप चाहते हैं कि ऐसी और कहानियां हम आपतक पहुंचाएं तो Q-इनसाइड बनिए. यहां क्लिक कीजिए.

नागरिकता संशोधन कानून से लेकर दिल्ली दंगे मामले में कई छात्र नेता और एक्टिविस्ट का नाम चर्चा में रहा है लेकिन इसी बीच कई अनजान चेहरे भी हैं, जो मीडिया की सुर्खियों से दूर रहे हैं.

तसलीम न ही छात्र थे और न ही एक्टिविस्ट, लेकिन सीएए-एनआरसी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में शामिल होते थे. नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में हुई हिंसा से करीब 35 कीलोमीटर दूर दिल्ली के संगम विहार के भीड़भाड़ वाले इलाके में रहने वाले तसलीम अहमद के खिलाफ दंगा भड़काने का आरोप है.

सितंबर में दायर अपने 17,000 पन्नों के आरोपपत्र में दिल्ली पुलिस का दावा है कि तसलीम अहमद एक छोटे कोर ग्रुप का हिस्सा थे, जिसने सीलमपुर में एक प्रोटेस्ट साइट की शुरुआत की थी, जो बाद में फरवरी की हिंसा के लिए एक फ्लैशपॉइंट और ट्रिगर बन गई.

हालांकि, तसलीम के पिता जाहिद अली का कहना है कि जब दंगा हुआ तब तसलीम संगम विहार में अपने घर पर था. जाहिद कहते हैं, "तसलीम दंगे में शामिल तो दूर, दंगे के आसपास भी नहीं था. दंगा तो जाफराबाद में हुआ था और वो संगम विहार में था. जो वहां से 30-40 किलोमीटर दूर है."

दो बार पुलिस ने किया गिरफ्तार

तसलीम अहमद को पहली बार FIR रिपोर्ट 48/2020 से जुड़े एक मामले में दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि प्रदर्शनकारियों ने 22 फरवरी 2020 की रात को जाफराबाद में सड़क पर कब्जा करने के लिए पुलिस की अवहेलना की.

हालांकि 10 जून 2020 को अहमद को इस मामले में जमानत मिल गई थी. लेकिन कुछ ही दिन बाद फिर से पुलिस ने पूछताछ के लिए बुलाना शुरू कर दिया था.

जाहिद अली कहते हैं, "मेरे बेटे तसलीम को पहली बार रमजान के महीने में कोरोना के लॉकडाउन के दौरान पुलिस ने घर से गिरफ्तार किया था. फिर एक महीने में जेल में रहने के बाद उसकी जमानत हो गई और वो घर आ गया. लेकिन फिर 22 या 23 जून को पुलिस ने जांच में शामिल होने के लिए बुलाया था. इसी बीच तसलीम का कॉल आया कि उसे गिरफ्तार कर लिया गया है."

दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने तसलीम को दंगों की साजिश के मामले एफआईआर संख्या 59/2020 में गिरफ्तार किया था.

"पहली बार जाना UAPA क्या होता है?"

जाहिद कहते हैं, UAPA क्या होता है ये हम नहीं जानते थे, पहली बार जब गिरफ्तार किया तब UAPA नहीं लगा था, जब दोबारा गिरफ्तार किया तब UAPA लगाया गया.

तसलीम के वकील महमूद प्राचा दिल्ली पुलिस के आरोपों को खारिज करते हुए कहते हैं, "जिस चीज की बुनियाद ही गलत है तो सबूत और गवाह कहां से लाएंगे. दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल के पास इतने सारे साधन हैं, इतने पैसे खर्च करने के बाद भी कोई सबूत और गवाह नहीं है. यूएपीए तो बहुत दूर की बात है."

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Published: 16 Jun 2022,08:52 PM IST

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