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दिल्ली यूनिवर्सिटी (Delhi University) के बीए प्रोग्राम से "सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा" तराना लिखने वाले मशहूर शायर मोहम्मद इकबाल का नाम मिटाने का फैसला किया गया है. दिल्ली की एकेडमिक काउंसिल ने शुक्रवार (26 मई) को सिलेबस से जुड़े कई बदलाव किये हैं. इन बदलावों में अल्लामा इकबाल को पॉलिटिकल साइंस के सिलेबस से हटा दिया गया है. एकेडमिक काउंसिल की ओर से पार्टिशन, हिंदू और ट्राइबल स्टडीज के लिए नए सेंटर स्थापित करने के प्रस्तावों को भी मंजूरी दी गई है.
वाइस चांसलर के प्रस्ताव को सदन ने सर्वसम्मति से पारित कर दिया. बैठक में अंडरग्रेजुएट करिकुलम फ्रेमवर्क (यूजीसीएफ) 2022 के तहत अलग-अलग कोर्स के चौथे, पांचवें और छठे सेमेस्टर के सिलेबस को पारित किया गया. वहीं इकबाल को हटाने के साथ ही इस मौके पर कुलपति ने डॉ भीमराव अंबेडकर को अधिक से अधिक पढ़ाने पर भी जोर दिया.
इकबाल के बारे में वाइस चांसलर ने कहा,
बता दें कि इकबाल को बीए पॉलिटिकल साइंस के सिलेबस के ‘मॉडर्न इंडियन पॉलिटिकल थाउट’ चैप्टर में विस्तार से पढ़ाया जाता था. यह चैप्टर कोर्स के छठे सेमेस्टर में पढ़ाया जाता था. इसके अलावा काउंसिल की बैठक में सिलेबस और अलग अलग सेंटर स्थापित करने के प्रस्ताव पारित किए गए. इन प्रस्तावों पर आखिरी मुहर दिल्ली यूनिवर्सिटी की एग्जीक्यूटिव काउंसिल (EC)को लगानी हैं. इसकी बैठक 9 जून को होनी है.
इकबाल उर्दू और फारसी के मशहूर शायर हैं. जिन्होंने मशहूर गीत "सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा" लिखा था, भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे प्रमुख उर्दू और फारसी शायरों में से एक हैं. उन्हें पाकिस्तान के राष्ट्रीय कवि के रूप में भी जाना जाता है.
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की दिल्ली यूनिट ने एक ट्वीट में इकबाल को सिलेबस से हटाने के फैसले का स्वागत करते हुए कहा, “दिल्ली विश्वविद्यालय अकादमिक परिषद ने डीयू के राजनीति विज्ञान सिलेबस से मोहम्मद इकबाल को हटाने का फैसला किया. मोहम्मद इकबाल को 'पाकिस्तान का दार्शनिक पिता' कहा जाता है. वह जिन्ना को मुस्लिम लीग में नेता के रूप में स्थापित करने में प्रमुख प्लेयर थे. मोहम्मद इकबाल भारत के विभाजन के लिए उतने ही जिम्मेदार हैं जितने कि मोहम्मद अली जिन्ना हैं”
डीयू एकेडमिक काउंसिल की बैठक के दौरान सेंटर फॉर इंडिपेंडेंस एंड पार्टीशन स्टडीज स्थापित करने के प्रस्ताव को भी मंजूरी दी गई. डीयू एकैडमिक काउंसिल के मुताबिक यह केंद्र शोध के माध्यम से स्वतंत्रता आंदोलन के ऐसे अज्ञात नायकों और घटनाओं पर भी काम करेगा, जिन्हें अभी तक इतिहास में जगह नहीं मिली है. साथ ही भारत विभाजन की त्रासदी के समय की घटनाओं का भी गहन अध्ययन एवं शोध किया जायेगा. इसके लिए उस दौर के उन लोगों की आवाज में "मौखिक इतिहास" भी दर्ज किया जाएगा जिन्होंने इस त्रासदी को झेला है.
बैठक में हुए फैसले के मुताबिक इस केंद्र में विदेशी शासन से स्वतंत्रता प्राप्त करने में आने वाली चुनौतियों और देश के भौगोलिक विभाजन के कारण लोगों पर पड़ने वाले शारीरिक, भावनात्मक, आर्थिक और सांस्कृतिक नुकसान के प्रभाव को पूरी तरह से समझने के लिए अध्ययन भी किया जाएगा. केंद्र स्वतंत्रता संग्राम के विभिन्न पहलुओं और विभाजन के कारणों और प्रभावों के अध्ययन पर काम करेगा.
एकेडमिक काउंसिल में 100 से अधिक सदस्य हैं जिनमें से पांच सदस्यों ने पार्टिशन स्टडीज के प्रपोजल का विरोध भी किया. और इसे विभाजनकारी बताया है. इन सदस्यों ने कहा ”पार्टिशन स्टडीज सेंटर के लिए प्रपोजल विभाजनकारी है. इसका उद्देश्य बताता है कि यह सेंटर 1300 सालों में पिछले हमलों, दुखों और गुलामी का अध्ययन करेगा.”
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