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भारत में कोरोना वायरस की दूसरी लहर से स्वास्थ्य तंत्र चरमरा गया है. कोरोना केसों की संख्या में बेतहाशा इजाफा हुआ. देशभर में रोजाना करीब साढ़े तीन लाख नए कोरोना केस आने लगे हैं और 2500 से ज्यादा लोगों की मौत हो रही है. इन विकट परिस्थितियों में जरूरत थी कि सरकारें कोरोना की टेस्टिंग बढ़ाती और ज्यादा से ज्यादा कोरोना मरीजों की पहचान करतीं. लेकिन इसके उलट सरकारें टेस्टिंग घटा रही हैं. वहीं कुछ राज्यों में टेस्टिंग स्टेबल है. ना बढ़ रही है ना कम हो रही है.
दिल्ली में कोरोना टेस्टिंग गिरती जा रही है. हमने बीते 10 दिन का टेस्टिंग के डेटा निकाला जिसमें साफतौर पर पता चल रहा है कि जब टेस्टिंग बढ़ाए जाने की जरूरत है तब दिल्ली सरकार उल्टा टेस्टिंग को कम कर रही है. कम टेस्टिंग को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट ने भी दिल्ली सरकार से जवाब मांगा था.
देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में भी कोरोना वायरस केसों की तादाद में भारी इजाफा हो रहा है और जरूरत थी कि ज्यादा से ज्यादा केसों के ट्रैक करने के लिए टेस्टिंग बढ़ाई जाए. लेकिन टेस्टिंग बढ़ाना तो दूर की बात सरकार ने उल्टा टेस्टिंग घटा दी है. 18 अप्रैल को राज्य में 2.15 लाख कोरोना टेस्ट हुए थे, वहीं 10 दिन बाद कोरोना टेस्ट की संख्या गिरकर 1.84 लाख हो गई. यानी करीब 30 हजार टेस्टिंग कम कर दी गई.
सरकारों को समझना होगा कि अगर कोरोना वायरस की दूसरी और घातक लहर को काबू में लाना है तो टेस्टिंग को तेजी से बढ़ाना होगा. अगर नए केसों की संख्या बढ़ रही है और टेस्टिंग स्थिर है इसका साफ तौर पर मतलब है कि कई सारे कोरोना मामले डिटेक्ट ही नहीं हो पा रहे हैं. जब तक हम कोरोना वायरस को डिटेक्ट ही नहीं कर पाएंगे तो उससे मुकाबला कैसे करेंगे.
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