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फाइनेंशियल ईयर 2018-19 के दौरान 6000 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड बिके. चुनाव आयोग में राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय पार्टियों की ओर से दाखिल की गईं वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट्स क्विंट ने देखी है. इससे ऐसा लगता है कि 4,500 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड भारतीय जनता पार्टी के लिए खरीदे गए.
बीजेपी को इस बारे में चुनाव आयोग में अपनी फाइनल ऑडिट रिपोर्ट पेश करनी है. उधर कांग्रेस के आला सूत्रों ने कहा उनकी पार्टी को इलेक्टोरल बॉन्ड के तौर पर 550 करोड़ रुपये मिले हैं और उसने चुनाव आयोग को इसकी रिपोर्ट भेज दी है. हालांकि चुनाव आयोग ने न जाने किस वजह से इसे अपनी अपनी वेबसाइट पर इसे अपडेट नहीं किया है. आयोग में वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट जमा करने की आखिरी तारीख 31 अक्टूबर थी.
बीजेपी के प्रवक्ता और कोषाध्यक्ष वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट जमा करने के मामले में खामोश हैं. इलेक्टोरल बॉन्ड के तौर पर पार्टी को कितना पैसा मिला है, इस पर उन्होंने चुप्पी साध रखी है. जब हमने वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट पर जानकारी के लिए बीजेपी मीडिया के सेल के सह-संयोजक संजय मयूख से संपर्क किया तो हमें पार्टी के महासचिव अरुण सिंह से संपर्क करने को कहा गया. लेकिन कई बार फोन कॉल और मैसेज के बावजूद उन्होंने जवाब नहीं दिया. हमने पीयूष गोयल से उनके वेरिफाइड ट्विटर अकाउंट ‘PiyushGoyaloff’ पर भी संपर्क किया लेकिन जवाब के बजाय हमारा ट्विटर अकाउंट ही ब्लॉक कर दिया गया. हमने गोयल से उनके ई-मेल पर संपर्क किया लेकिन उसके जरिये भी हमें कोई जवाब नहीं मिला. चुनाव आयोग ने बीजेपी के वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट के बारे में कोई जानकारी नहीं दी है
जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 29C और आईटी एक्ट की धारा 13A में संशोधन के मुताबिक राजनीतिक पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड के बारे में चुनाव आयोग को जानकारी देने या इस बारे अकाउंट मेंटेन करने या दस्तावेज रखने की जरूरत नहीं है. हालांकि इनकम टैक्स एक्ट की धारा 139 4B के तहत राजनीतिक पार्टियों के लिए अपनी आय की जानकारी चुनाव आयोग को देना जरूरी है. इसमें वो आय भी जिस पर उसे छूट हासिल है.
वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट जमा न करने पर चुनाव आयोग राजनीतिक पार्टियों को कारण बताओ नोटिस जारी कर सकता है. पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने कहा
इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को मोदी सरकार में जनवरी 2018 में अधिसूचित किया गया था. कहा गया था कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता आएगी. लेकिन इसने चुनावी फंडिंग को अपारदर्शी बना गया है. राजनीतिक पार्टियों के लिए यह जरूरी नहीं है कि वह इलेक्टोरल बॉन्ड डोनर के बारे में चुनाव आयोग को बताए. इसलिए जनता को यह कभी पता नहीं चल पाएगा कि 6000 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड पार्टियों केलिए खरीदने वाले कौन थे.
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