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इलेक्टोरल बॉन्ड के लिए RBI ने किया था इंकार,क्यों नहीं मानी सरकार

अब खुलासा हुआ है कि आरबीआई ने इलेक्टोरल बॉन्ड लाने का विरोध किया था लेकिन सरकार नहीं मानी.

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साल 2017-18 में इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिए जितना चंदा आया है उसका 95 फीसदी सिर्फ बीजेपी को ही मिला. एक वोटर के नाते आप जानना चाहेंगे कि ये चंदा किसने दिया है? लेकिन आप ये नहीं जान सकते. क्योंकि कानून में इसकी व्यवस्था है. तो आप बताइए कि ये कानून हमारे चुनावों और हमारी राजनीति को पारदर्शी बनाता है या संदेह बढ़ाता है? जाहिर है संदेह बढ़ाता है.अब खुलासा हुआ है कि आरबीआई ने इलेक्टोरल बॉन्ड लाने का विरोध किया था लेकिन सरकार नहीं मानी.

वीडियो एडिटर: संदीप सुमन

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सरकार ने RBI की आपत्ति को किया था दरकिनार: रिपोर्ट

न्यूज वेबसाइट न्यूज लॉन्ड्री ने दावा किया है कि साल 2017 के बजट से ठीक पहले खुद रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने इलेक्टोरल बॉन्ड का विरोध किया था. लेकिन मोदी सरकार ने आरबीआई की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए इलेक्टोरल बॉन्ड की घोषणा कर दी.

पत्रकार नितिन सेठी की इस रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2017 में बजट पेश होने से सिर्फ चार दिन पहले एक वरिष्ठ टैक्स अधिकारी ने 28 जनवरी, 2017 को वित्त मंत्रालय में अपने वरिष्ठ अधिकारियों को एक नोट लिखकर इलेक्टोरल बॉन्ड के संबंध में आगाह किया था. उन्होंने कहा था कि गुमनाम चंदे को कानूनी रूप से वैध बनाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम में संशोधन करना होगा.

रिजर्व बैंक ने अपने जवाब में इलेक्टोरल बॉन्ड का खुलकर विरोध किया था. इसका विरोध करने के लिए आरबीआई की तरफ से कारण भी बताए गए थे..

रिपोर्ट कहती है कि ऐसा लग रहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड मामले में सरकार के टॉप लेवल के लोगों ने पहले मन बना लिया था कि इसे लागू करना ही करना है. दावा है कि आरबीआई की चिट्ठी के जवाब में तत्कालीन राजस्व सचिव हंसमुख अढ़िया ने एक पैराग्राफ का जवाब भेज कर आरबीआई की सभी आपत्तियों को खारिज कर दिया. अढ़िया के जवाब में ये भी कहा गया कि शायद आरबीआई इस सिस्टम को सही से समझ नहीं सका है. अढ़िया ने लिखा, "आरबीआई की सलाह काफी देर से आई है और वित्त विधेयक पहले ही छप चुका है. इसलिए हम अपने प्रस्ताव के साथ आगे बढ़ सकते हैं." और इस पर वित्त मंत्री ने अपने हस्ताक्षर भी कर दिए. मतलब आरबीआई की आपत्ति को सिरे से खारिज कर दिया गया.

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इलेक्टोरल बॉन्ड क्या है?

इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक पार्टियों के लिए एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें उन्हें मिलने वाला चंदा कहां से और किसने दिया इसकी जानकारी बाहर नहीं निकल सकती है. कानूनी तौर पर वैध इस हथियार से राजनीतिक दल किसी भी बड़े कॉरपोरेशन या फिर किसी संस्था से बिना उनकी पहचान उजागर किए करोड़ों रुपये का चंदा ले सकती है.
द क्विंट ने पिछले कुछ महीनों में कई आर्टिकल पब्लिश किए हैं, जिनमें दिखाया गया है कि इलेक्टोरल बॉन्ड किस तरह डेमोक्रेसी के लिए खतरा हैं. इस स्कीम में कोई पारदर्शिता नहीं है. इसलिए इलेक्टोरल बॉन्ड पर सवाल उठ रहे हैं. पारदर्शिता न होने की वजह से ही EC और पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने इलेक्टोरल बॉन्ड की आलोचना कर चुके हैं. यहां तक इन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट को भी अपनी आपत्तियां बताई हैं.

बीजेपी और मोदी सरकार पर उठाए जा रहे सवाल

अब इलेक्टोरल बॉन्ड पर नए खुलासे के बाद बीजेपी और मोदी सरकार पर सवाल उठाए जा रहे हैं. कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी कहती हैं कि इलेक्टोरल बॉन्ड को आरबीआई और राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताओं को खारिज करते हुए सिर्फ इसलिए क्लीयरेंस दिया गया, जिससे बीजेपी के कोष में ब्लैकमनी जमा की जा सके. प्रियंका गांधी ने कहा है कि ऐसा लगता है कि ब्लैकमनी खत्म करने के वादे पर चुनी गयी बीजेपी खुद ही इसमें व्यस्त थी. ये देश के लोगों के साथ एक शर्मनाक विश्वासघात है.

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण कहते हैं कि RBI और ECI की आपत्ति के बावजूद कैसे ये सरकार पारदर्शिता के नाम पर  इलेक्टोरल बॉन्ड ले आई. सरकार ने सत्ताधारी पार्टी को दी जाने वाली घूस को वैध करने का रास्ता साफ कर दिया. भूषण का दावा है कि इस 6000 करोड़ कैश के 95% से ज्यादा बीजेपी को मिला है.

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