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डिजिटल मीडिया पर गाइडलाइन,पब्लिशर बोले-प्रेस की आजादी निशाने पर

केंद्र सरकार देश में डिजिटल कंटेंट को नियमित करने वाले कानून ला रही है.

क्विंट हिंदी
भारत
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गाइडलाइन का क्या है असल मकसद?
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गाइडलाइन का क्या है असल मकसद?
(फोटो: iStock)

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केंद्र सरकार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, डिजिटल न्यूज मीडिया प्लेटफॉर्म और ओटीटी के लिए नई गाइडलाइन्स लेकर आई है. सरकार ने इसे डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड नाम दिया है.

इस बीच सरकार के प्रस्तावित कानून और गाइडलाइन्स पर डिजिटल कंटेंट बनाने वाले और उससे जुड़े लोगों की प्रतिक्रिया आ रही हैंं, कई पब्लिशर सरकार के नजरिए पर सवाल उठा रहे हैं तो कई इस कदम को फ्रीडम ऑफ स्पीच पर पहरे की तरह देख रहे हैं.

दरअसल इन गाइडलाइन्स के दायरे में Facebook, Twitter, instagram जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्‍स, Netflix, Amazon Prime, Hotstar जैसे OTT प्‍लेटफॉर्म्‍स और क्विंट, द वायर, न्यूज क्लिक, न्यूज लॉन्ड्री, इंडिया टुडे का तक, लल्लनटॉप जैसी डिजिटल न्यूज वेबसाइट आएंगी.

डिजिटल मीडिया में हलचल

सरकार की गाइडलाइन्स पर द वायर के फाउंडिंग एडिटर सिद्धार्थ वरदराजन ने प्रेस की आजादी से जोड़ा है. वह कहते हैं, “डिजिटल न्यूज पब्लिशर पर डाला जा रहा बोझ, बोलने की आजादी (और इस तरह प्रेस की स्वतंत्रता) पर बुनियादी प्रतिबंधों से भी ज्यादा है. डिजिटल पब्लिशर पहले से ही आर्टिकल 19 के प्रतिबंधों के अधीन हैं और उनके खिलाफ दायर कई मानहानि के मुकदमे इस बात का प्रमाण हैं कि डिजिटल मीडिया को विनियमित करने के लिए मौजूदा कानूनों का उपयोग (या दुरुपयोग) कैसे किया जाता है.’’

गाइडलाइन्स के मुताबिक डिजिटल मीडिया को प्रेस काउंसिल, केबल टीवी एक्ट के नियमों का पालन करना होगा. थ्री लेवल शिकायत निवारण सिस्टम बनाना होगा. रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट जज या कोई बेहद प्रतिष्ठित इंसान वाली सेल्फ रेगुलेशन बॉडी बनानी होगी और साथ ही सरकार कोई ऐसा सिस्टम बनाएगी जो ओवरसाइट करेगा.

इसपर सिद्धार्थ कहते हैं,

“भारतीय संविधान मीडिया द्वारा प्रकाशित सामग्री की उपयुक्तता पर फैसले लेने की शक्ति कार्यकारी को नहीं देता है. नौकरशाहों की एक inter-ministerial committee को इस बात पर फैसला लेने की शक्ति देना कि किसी मीडिया प्लेटफॉर्म पर क्या छपना है और क्या नहीं, और इस बात पर फैसला करना कि अधिकारियों की शिकायतों के लिए पर्याप्त रूप से जवाब दिया है या नहीं, इस बात की कानून में कोई जगह नहीं है और ये भारत में प्रेस की आजादी को खत्म करने जैसा है.”

उन्होंने कहा, "मौजूदा कानून पहले से ही भारत में प्रेस स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंधों को परिभाषित करते हैं और कोई भी पाठक या सरकारी अधिकारी शिकायत के साथ एक कानूनी उपाय की तलाश करने के लिए स्वतंत्र है बशर्ते कि यह संविधान द्वारा परिभाषित "उचित प्रतिबंध" की चार दीवारों के भीतर हो.

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“डिजिटल मीडिया से जुड़े लोगों से नहीं ली राय”

मीडियानामा के फाउंडर निखिल पहवा कहते हैं, “केंद्रीय मंत्री जावडेकर ने स्ट्रीमिंग सेवाओं को विनियमित करने के लिए कोई सार्वजनिक परामर्श नहीं किया है. स्ट्रीमिंग सर्विस के लिए एक सेल्फ रेगुलेटरी कोड पहले से ही मौजूद है. स्ट्रीमिंग सर्विस के रेगुलेशन के लिए सरकार के पास कानूनी आधार नहीं है. वे आईटी अधिनियम या केबल और टीवी अधिनियम के तहत ऑनलाइन कंटेंट रेगुलेट नहीं कर सकते हैं.”

निखिल कहते हैं,

जो गैरकानूनी है, वह पहले से ही गैरकानूनी है. इसे नियंत्रित करने के लिए कानून हैं. रेगुलेटरी कोड अतिरिक्त बोझ डालते हैं जो अनावश्यक है.

वहीं द प्रिंट के फाउंडर शेखर गुप्ता कहते हैं, “जो अवैध है, इसका मुकाबला करने के लिए पर्याप्त कानून और यहां तक कि कार्यकारी शक्ति भी हैं.”

शिकायत कर्ता और जज दोनों सरकार!

इंडियन एक्सप्रेस ने अपने एडिटोरियल में लिखा है कि जब सरकार ने आगे के तरीके के रूप में सेल्फ रेगुलेशन पर जोर दिया है, लेकिन इसके बारे में चिंतित होने के लिए बहुत कुछ है. रेगुलेशन के लिए बनाए गए तीन लेवल गाइडलाइन में एक निगरानी तंत्र की बात है जिसमें शिकायतों की सुनवाई के लिए एक अंतर-विभागीय समिति शामिल है - प्रभावी रूप से यह सुनिश्चित करने के लिए कि सरकार के पास शिकायत करने का अधिकार भी है और अधिकार को लागू करने का भी. इसके अलावा, हस्तक्षेप के लिए सीमा स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं है. वो भी ऐसे देश में जहां कानूनों का नियमित रूप से दुरुपयोग किया जाता है, परिभाषाओं में इस अस्पष्टता का आसानी से दुरुपयोग किया जा सकता है.

न्यूज वेबसाइट को देनी होगी जानकारी

उधर इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सचिव अमित खरे ने कहा कि डिजिटल न्यूज पोर्टलों को जल्द ही सूचना और प्रसारण मंत्रालय को उनके संपादकीय प्रमुख, ओनरशिप, पते, और शिकायत अधिकारी, जैसी जानकारी देनी होगी. उन्होंने कहा, "फिलहाल, सरकार के पास पूरी तस्वीर साफ नहीं है कि इस क्षेत्र में कितने लोग हैं और वे कौन हैं, अगर आप उनकी वेबसाइटों पर लॉग इन करते हैं, तो आप उनके कार्यालय के पते या संपादक-प्रमुख पर बुनियादी जानकारी भी नहीं पा सकते हैं."

सूत्रों के मुताबिक, मंत्रालय जल्द ही एक फॉर्म जारी करेगा जिसे सभी डिजिटल न्यूज आउटलेट को एक महीने में मंत्रालय को भरकर जमा करना होगा.

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