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कोरोनावायरस महामारी में स्वास्थयकर्मी ही वास्तव में हीरो हैं, जिनकी चर्चा नहीं होती. भारत में स्वास्थ्यकर्मी, खासतौर से जो लोग इस लड़ाई में सबसे आगे आकर काम कर रहे हैं, उन पर जरूरत से ज्यादा बोझ है. इमर्जेंसी और जनरल मेडिसिन के डॉक्टर, फेफड़े और बुजुर्गों का इलाज करने वाले डॉक्टर भी इनमें शामिल हैं.
नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के सर्जरी विभाग के वरिष्ठ रेजिडेंट डॉ आदर्श प्रताप कहते हैं, “इस कठिन समय में हमें अपनी व्यावसायिक जिम्मेदारी दिखानी होगी.”
वायरस के खिलाफ सीधी लड़ाई लड़ रहे डॉक्टरों में डॉक्टर प्रताप एक हैं. वे उन डॉक्टरों में भी शुमार हैं, जो बेहतर सुरक्षा संसाधनों या निजी सुरक्षा उपकरणों की मांग कर रहे हैं, जिसे पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) भी कहा जाता है.
वे आगे कहते हैं,
प्रोग्रेसिव मेडिकोज एंड साइंटिस्ट्स फोरम (पीएमएसएफ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और एम्स के पूर्व डॉक्टर डॉ हरजीत सिंह भट्टी कहते हैं कि वे डॉक्टरों के लिए जरूरी सक्रिय मानकों में कमी को देखते हुए चिंतित हैं. “करीब 7 हजार नर्स और दूसरे सहयोगी स्वास्थ्य कर्मचारी हैं. जैसे टेक्निशियिन, हेल्पर जो स्ट्रेचर आदि लाते-ले जाते हैं. वे भी इंसान हैं और उन्हें भी सुरक्षा चाहिए.”
डॉ भट्टी आगे कहते हैं, “डॉक्टरों से सबसे पहले संपर्क किया जाता है और हमें सुरक्षित रहने के लिए सुरक्षात्मक उपकरण चाहिए. अगले ही दिन लखनऊ में एक डॉक्टर की जांच पॉजिटिव मिली. ऐसा तब हुआ जबकि वह उनकी पूरी टीम पूरी तरह से क्वारंटाइन कर दी गयी थी.”
हमारी रक्षा कर रहे लोगों की सुरक्षा में असफलता से भारत की पब्लिक हेल्थकेयर सिस्टम पर अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा जो पहले से ही दबाव में है.
पत्र भेजने के अगले दिन मंगलवार, 17 मार्च को अस्पताल प्रशासन ने डॉक्टरों के साथ एक मीटिंग बुलायी और अगले दिन बुधवार को एक और मीटिंग बुलाई.
डॉ प्रताप कहते हैं,
इस मौके पर दूसरे हेल्थ केयर प्रोफेशनलों के यूनियनों के साथ-साथ विभिन्न विभागों के अध्यक्ष भी इकट्ठे थे. उन्होंने आगे कहा,
एक और आग्रह प्रोटोकॉल को स्पष्ट करने को लेकर था. डॉ प्रताप कहते हैं, “हम ओपीडी या दूसरे मरीजों को अलग करने को कैसे मैनेज करें. डब्ल्यूएचओ, आईसीएमआर और स्वास्थ्य मंत्रालय हर दिन हमें नयी सूचनाएं दे रहा है और दिशानिर्देश तेजी से बदल रहे हैं. हम इस उच्च संक्रमण वाले वायरस को मैनेज करने को लेकर फोकस हैं और अपनी कोशिश जारी रखे हुए हैं.”
डॉ प्रताप बैठक के नतीजे को सकारात्मक बताते हुए कहते हैं, “हम सभी इस बात पर सहमत थे कि राष्ट्रीय आपदा का सामना करने के लिए हमें इकट्ठा होकर काम करना है.”
एम्स में अब तक कोई कोरोना का पोजिटिव मामला नहीं आया है. इसलिए किसी डॉक्टर की जांच नहीं की गयी है. वे कहते हैं, “लेकिन हम क्षमता बढ़ाने की कोशिशों में लगे हैं, जिनमें स्क्रीनिंग सेंटर, आईसीयू बेड और आइसोलेशन बेड का तेयार किया जाना शामिल है. लेकिन अभी के लिए हमारी जरूरत बिना किसी बाधा के पीपीई प्राप्त करना है अन्यथा अगर हम संक्रमित हो गये तो तबाही मच जाएगी.”
डॉ भट्टी कहते हैं कि उन्हें एम्स के डॉक्टरों पर ‘पूरा विश्वास’ है जो अपना वादा निभाएंगे.
इंडो तिब्बत बोर्ड पुलिस (आईटीबीपी) के चीफ मेडिकल अफसर डॉ एपी जोशी और भारत में क्वारंटाइन फेसिलिटी के इनचार्ज ने क्विंट को बताया कि बाजार में पीपीई इक्विपमेंट अचानक कहीं से बाजार में सामने आ गये हैं.
उस इंटरव्यू में उन्होंने विश्वास दिलाया कि 130 पीपी सूट एक दिन में इस्तेमाल किए जाते हैं.
पहले से ही ऐसी खबरें हैं कि जिन डॉक्टरों ने देशभर में COVID-19 के मरीजों का इलाज किया है उनमें से भी कई लोग जांच में पॉजिटिव पाए गये हैं. ऐसी खबरें केरल, लखनऊ और कर्नाटक से आयी हैं. इस परिस्थिति में जहां देशभर में मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है, क्या हम उन लोगों की रक्षा करने में सक्षम हैं जो हमारी रक्षा करते हैं?
डॉ भट्टी कहते हैं कि लालफीताशाही पर तुरंत कार्रवाई करने की जरूरत है. “जो हमारी रक्षा करते हैं उनके लिए समये से पहले सक्रिय रहने को भरोसा सरकार को दिलाना होगा.”
डॉ प्रताप ने आगे कहा, “राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपात स्थिति में यह बहुत खराब बात है कि बाजार में हजमत सूट की कीमतें बढ़ती चली जा रही हैं. हम बाजार में कीमत नियंत्रित करने में राजनीतिक नेतृत्व की प्रतिबद्धता चाहते हैं और लोक स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए कोष और संसाधनों की सुविधाएं बढाने में भी सरकार का समर्थन मिले. हमें ऐसी कंपनियां चाहिए जो इस समय उत्पादन बढ़ाने के लिए आगे आएं.”
वे कहते हैं, “एम्स में इस महत्वपूर्ण मौके पर हमने नई खोज करते हुए समाधान निकाला है. हमने अस्पताल में कल से ही खुद सैनिटाइजर बनाना शुरू किया है और अस्पताल आधारित इस सैनिटाइजर को लांच किया है.”
एक अन्य समाधान यह है कि कई और निजी कंपनियां मदद के लिए आगे आएं.
आईसीएमआर ने प्राइवेट लैब को आगे आने और मुफ्त में COVID-19 की जांच करने को कहा है. इसके बाद यह अपील सामने आयी है.
डॉ प्रताप कहते हैं,
उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान परिदृश्य में ये लैब पर्याप्त हैं. लेकिन तब क्या होगा जब वायरस स्टेज 3 की ओर बढ़ जाएगा और कई और कोरोना के मरीज सामने आएंगें?
डब्ल्यूएचओ ने विश्व के स्तर पर टेस्ट, टेस्ट, टेस्ट का आग्रह किया है. आखिरकार मुद्दा जांच का है. हमें इसी मसले पर आना है और आम आदमी को बचाना है. मेडिकल प्रोफेशनल और दनिया भर में पढ़ रहे लोग कह रहे हैं कि अहतियातन जांच इस वायरस को फैलने से रोकने के ख्याल से निर्णायक है.
17 मार्च को एक प्रेस कॉन्फ्रेन्स में आईसीएमआर ने यह भी कहा है कि वे ‘प्रतिबंधित जांच रणनीति’ पर फोकस कर रहे हैं. आईसीएमआर की डॉक्टर निवेदिता गुप्ता ने आगे कहा है कि ‘मकसद अंधाधुंध परीक्षण से बचना’ है.
आईसीएमआर के डायरेक्टर जनरल बलराम भार्गव ने अपने इस कदम को विस्तार से बताते हुए कहा, “हम स्टेज 2 में हैं, जिसमें वायरसों का स्थानीय प्रसार होता है.” डॉ गुप्ता ने आगे कहा कि “वर्तमान में एक लैब एक दिन में 90 सैम्पल्स की जांच कर रहा है. लेकिन जरूरत हुई तो इसे दुगना कर एक दिन में 180 सैम्पल प्रति लैब किया जा सकता है.”
डॉ भट्टी तर्क देते हैं, “लेकिन अगर हम आक्रामक तरीके से जांच नहीं करते हैं, हमें सही संख्या का पता नहीं चलेगा और जब वास्तव में यह स्पष्ट होगा तब हम इस समस्या का सामना नहीं कर पाएंगे.“
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