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डॉ कफील को इलाहबाद HC से बड़ी राहत, निलंबन के दूसरे आदेश को कोर्ट ने किया रद्द

Allahabad HC ने राज्य सरकार के आदेश के पीछे के तर्क और परिस्थितियों को मनमाना करार दिया

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भारत
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<div class="paragraphs"><p>डॉ कफील खान </p></div>
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डॉ कफील खान

(फोटो: PTI)

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गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी से हुई कई बच्चों की मौत के मामले में निलंबित चल रहे बाल रोग विशेषज्ञ डॉ कफील खान (Kafeel Khan) को इलाहबाद हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है. जस्टिस अश्वनी कुमार मिश्रा की बेंच ने डॉ कफील के खिलाफ दूसरे निलंबन आदेश को रद्द करते हुए राज्य सरकार के आदेश के पीछे के तर्क और परिस्थितियों को मनमाना करार दिया.

अगस्त 2017 से ही निलंबित चल रहे डॉ कफील खान ने इलाहबाद हाईकोर्ट के इस फैसले का स्वागत करते हुए न्यायतंत्र को शुक्रिया कहा. उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा कि,

“दूसरा निलंबन जो मुझ पर ये आरोप लगा कर निलंबित किया गया था कि मैंने बहराइच जिला अस्पताल में जबरदस्ती मरीजों का इलाज किया और मैं सरकार की नीतियों की आलोचना करता हूं, उसे इलाहबाद उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया -शुक्रिया न्यायतंत्र का और शुक्रिया आप सबका”

आदेश के पीछे तर्क और परिस्थितियां मनमानी - हाईकोर्ट

डॉ कफील की याचिका पर दूसरी सुनवाई करते हुए जस्टिस अश्वनी कुमार मिश्रा ने माना कि निलंबन के पर्याप्त समय बीत जाने के बाद भी जांच पूरी नहीं की गई है.

“निलंबन के आदेश को रद्द करने के पीछे एक वजह ये है कि पर्याप्त समय बीत जाने के बाद भी जांच पूरा नहीं किया गया है. कोर्ट का मानना है कि आदेश के आदेश के पीछे के तर्क और परिस्थितियां मनमानी है.”
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क्या है पूरा मामला

गौरतलब है कि 22 अगस्त 2017 में गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन खत्म हो गया. जिसके चलते कई बच्चों की मौत हो गई थी. इस मामले को लेकर डॉ कफील खान को निलंबित कर दिया गया था और उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही की बात हुई थी.

लेकिन बाद में राज्य सरकार ने डॉ कफील के खिलाफ निलंबन का दूसरा मामला भी दर्ज किया था और इसकी जानकारी सरकार ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में जस्टिस यशवंत वर्मा की बेंच को दी थी. इसके बाद बेंच सरकार को एक हलफनामे के जरिए दो हफ्ते के भीतर, बाद के निलंबन आदेश के साथ-साथ 22 अगस्त, 2017 के निलंबन के प्रारंभिक आदेश से संबंधित अन्य आवश्यक तथ्यों को रिकॉर्ड करने का निर्देश दिया था.

डॉ कफील खान ने दूसरे निलंबन आदेश को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट में नयी याचिका दायर की थी. इसपर जस्टिस अश्वनी कुमार मिश्रा ने पहली सुनवाई 26 अगस्त को की थी.

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