advertisement
NDA उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) राष्ट्रपति चुनाव जीत गई हैं. तीसरे दौर की काउंटिंग के बाद ही द्रौपदी मुर्मू ने विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को मात देते हुए 50% वोट का आंकड़ा पार कर लिया. 25 जुलाई को होने जा रहे शपथग्रहण के बाद द्रौपदी मुर्मू देश में शीर्ष संवैधानिक पद पर बैठने वाली पहली आदिवासी महिला बन जाएंगी. साथ ही वो राष्ट्रपति भवन पहुंचने वाली पहली आदिवासी महिला भी होंगी. चलिए इस आर्टिकल में आपको हम रायसीना हिल में बसे उसी राष्ट्रपति भवन की बनने से लेकर खास विशेषताओं की पूरी कहानी बताते हैं.
किंग जॉर्ज पंचम के राज्याभिषेक के मौके पर 12 दिसंबर 1911 को दिल्ली दरबार आयोजित हुआ. इस दिल्ली दरबार में लगभग एक लाख लोग शामिल हुए और इसमें की गई सबसे महत्वपूर्ण घोषणा थी कि ब्रिटिश भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित की जायेगी.
सर लुटियन ने यमुना नदी से इसकी निकटता को देखते हुए उत्तरी भाग को बाढ़ के लिए अत्यधिक संवेदनशील पाया. इस प्रकार, दक्षिणी तरफ स्थित रायसीना हिल, जो विशाल उच्च भूमि और बेहतर जल निकासी प्रदान करती थी, वायसराय हाउस के लिए एक उपयुक्त विकल्प पाया गया.
इस क्षेत्र की अधिकांश भूमि जयपुर के तत्कालीन महाराजा की थी. राष्ट्रपति भवन के प्रांगण पर खड़ा 145 फीट लंबा जयपुर स्तंभ जयपुर के महाराजा, सिवाई माधो सिंह द्वारा नई राजधानी के रूप में दिल्ली के निर्माण की स्मृति में उपहार में दिया गया था.
निर्माण सामग्री की लाने-ले जाने के लिए इस साइट के चारों ओर विशेष रूप से एक रेलवे लाइन बिछाई गई थी.
राष्ट्रपति भवन के निर्माण में सत्रह साल से अधिक का समय लगा. लॉर्ड हार्डिंग, गवर्नर-जनरल और वायसराय, जिनके शासनकाल में निर्माण शुरू किया गया था, चाहते थे कि राष्ट्रपति भवन चार साल के भीतर पूरा हो जाए. लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के कारण देरी हुई.
राष्ट्रपति भवन के मुख्य भवन का निर्माण हारून-अल-रशीद ने किया था, जबकि प्रांगण का निर्माण सुजान सिंह और उनके पुत्र शोभा सिंह ने किया था. अनुमान है कि लगभग 23 हजार मजदूरों ने इस महलनुमा ढांचे को बनाया था जिसमें 70 करोड़ ईंटें और 30 लाख क्यूबिक फीट पत्थर लगे थे. वायसराय हाउस के निर्माण की अनुमानित लागत तब के मूल्य में 14 लाख रुपए की थी.
आजादी के बाद दो साल वायसराय हाउस गर्वमेंट हाउस के नाम से जानी जाती रही और आजादी के बाद देश के पहले गर्वनर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को रहने के लिए यही बिल्डिंग मिली. हालांकि कहा जाता है कि वह वायसराय Suite की शानो-शौकत से परेशान हो गए और यहां से जाने का मन भी बना लिया थी. लेकिन प्रोटोकॉल के कारण जब यह मुमकिन नहीं हो पाया तो वह नॉर्थ-वेस्ट विंग में रहने लगे जहां कमरे तुलनात्मक रूप से साधारण थे.
उन्होंने भी नॉर्थ-वेस्ट विंग में रहने का फैसला लिया. उसके बाद से नॉर्थ-वेस्ट विंग में रहने की परंपरा आज भी कायम है और देश का हर राष्ट्रपति यहीं रहता है.
यह सर लुटियन ही थे जिन्होंने 330 एकड़ की एस्टेट पर 5 एकड़ के क्षेत्र को कवर करते हुए H आकार की इमारत की कल्पना की थी. राष्ट्रपति भवन में चार मंजिलों में फैले कुल 340 कमरे, 2.5 किलोमीटर के गलियारे और 190 एकड़ में गार्डन एरिया है.
भारत का राष्ट्रपति भवन इटली के रोम में स्थित क्विरिनल पैलेस के बाद दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा निवास स्थल है.
इसमें 750 कर्मचारी हैं, जिनमें से 245 राष्ट्रपति सचिवालय में हैं.
यह तथ्य कम ही लोगों को पता है कि स्वतंत्र भारत के राष्ट्रपति से बहुत पहले नवनिर्मित वायसराय हाउस के शुरुआती गेस्ट महात्मा गांधी थे. वायसराय ने उन्हें एक बैठक के लिए आमंत्रित किया था, इस बैठक में महात्मा गांधी ब्रिटिश नमक पर टैक्स के विरोध में अपनी चाय में नमक मिलाने के लिए अपने साथ नमक ले गए थे.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)