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मिशन शक्ति को लेकर डीआरडीओ के चेयरमैन जीएस रेड्डी का बयान सामने आया है. उन्होंने खुलकर बताया है कि कैसे इस मिशन को अंजाम दिया गया और इसकी तैयारियां कब से की जा रही थीं. मिशन शक्ति की घोषणा होते ही इसका क्रेडिट लेने की होड़ लग गई थी. बताया जा रहा था कि इसे यूपीए सरकार के दौरान ही शुरू कर दिया गया था. लेकिन डीआरडीओ के चेयरमैन का कहना कुछ और है. उन्होंने इस मिशन का सबसे बड़ा क्रेडिट नेशनल सेक्यॉरिटी एडवाइजर (एनएसए) अजीत डोभाल को दिया है.
डीआरडीओ के चेयरमैन जीएस रेड्डी का कहना है कि इस मिशन का सबसे बड़ा क्रेडिट मैं एनएसए अजीत डोभाल को देता हूं. डोभाल ने ही मिशन को हरी झंडी दी थी. रेड्डी ने कहा, मैं एनएसए डोभाल जिन्हें हम रणनीतिक मामलों में रिपोर्ट करते हैं, उन्हें इसका क्रेडिट देना चाहता हूं. उन्होंने ही हमें निर्देश दिए थे कि हम ऐसा टेस्ट कर सकते हैं. पीएम मोदी से सहमति लेने के बाद उन्होंने यह फैसला लिया. इसके बाद हमने इस पर काम किया और टेस्ट पूरा कर दिखाया.
ए-सैट मिसाइल प्रोजेक्ट के बारे में रेड्डी ने बताया कि यह दो साल पहले शुरू हुआ था. इसके लिए तभी से तैयारियां की जा रही थीं. लेकिन हम पिछले 6 महीने से मिशन की तैयारियों में जुटे थे. रेड्डी ने कहा कि अब हमारी ए-सैट मिसाइल लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में मौजूद किसी भी सैटेलाइट को मार गिराने में सक्षम है. लेकिन इसके बावजूद हमने एक लो एल्टीट्यूड वाली सैटेलाइट को चुना. क्योंकि हम एक जिम्मेदार देश की तरह अंतरिक्ष में मौजूद सभी तरह की सैटेलाइट्स को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते थे.
रेड्डी ने बताया कि जी-सैट एक एंटी सैटेलाइट वैपन है. इस मिसाइल को उस टेक्नॉलजी से बनाया गया है जो आमतौर पर बैलिस्टिक मिसाइलों के लिए इस्तेमाल होती है. जिनसे किसी भी कार या गाड़ी को निशाना बनाया जा सकता है. यह पृथ्वी मिसाइल की तरह नहीं है.
डीआरडीओ चेयरमैन ने बताया कि हमने 'काइनेटिक किल' के तहत सैटेलाइट को टारगेट किया. इसका मतलब है कि हमने सीधे टारगेट को हिट किया. हम इस ('काइनेटिक किल') टर्म को कई अन्य तकनीकों में भी इस्तेमाल करते हैं. इसमें हम सटीक निशाना साधने में कामयाब होते हैं.
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