Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019नौकरी जाने का डर और घर की टेंशन, DU एडहॉक टीचर्स के ऐसे हैं हालात 

नौकरी जाने का डर और घर की टेंशन, DU एडहॉक टीचर्स के ऐसे हैं हालात 

डर के साए में डीयू के एडहॉक टीचर्स की जिंदगी, नहीं मिलती मैटरनिटी लीव, 

मोहम्मद इमरान खान
भारत
Updated:
हड़ताल पर डीयू के एडहॉक शिक्षक
i
हड़ताल पर डीयू के एडहॉक शिक्षक
(फोटो: क्विंट)

advertisement

दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) देश की सबसे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी में से एक है. यहां के एडहॉक टीचर्स पिछले एक हफ्ते से हड़ताल पर हैं. कई टीचर्स अपनी मांगों को लेकर अनिश्चितकाल के लिए क्रमिक भूख हड़ताल पर बैठे हैं. इनका कहना है कि एडहॉक होने की वजह से इनके साथ कई तरह का भेदभाव हो रहा है. हालात यह हैं कि बीमारी और प्रेग्नेंसी में भी छुट्टी नहीं मिलती है.

दिल्ली यूनिवर्सिटी में तकरीबन 5 हजार एडहॉक टीचर्स हैं. इन एडहॉक टीचर्स ने बातचीत के दौरान बताया कि इनकी जिंदगी नौकरी जाने की आशंका और डर के बीच गुजर रही है. इन्हें हर वक्त नौकरी जाने का डर सताता रहता है. डीयू के एडहॉक टीचर्स के भाग्य का फैसला हर 4 महीने में होता है, जिसमें उनके कॉन्ट्रैक्ट को या तो बढ़ा दिया जाता है या फिर कैंसिल कर दिया जाता है.

कुछ एडहॉक टीचर्स ने बताया कि काम को लेकर उन लोगों के साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है. एडहॉक होने की वजह से कई बार उनसे वो काम भी कराए जाते हैं, जो उनके दायरे में नहीं आते. इन्हें पूरी मैटरनिटी लीव तक नहीं मिलती.

विवेकानंद कॉलेज की डॉ मीना पांडे ने अपने एडहॉक होने के दर्द को बयां करते हुए कहा:

“प्रेग्नेंसी मेरे साथ भी हुई थी मुझे बहुत सारी समस्याओं को झेलना पड़ा. मैंने आठ-आठ घंटे 8 महीने की बेबी को पेट में रख कर एंकरिंग की है. मेरी एक सहयोगी की डिलीवरी हुई, किसी काम से उन्हें अगले दिन आना था. नहीं आने पर क्या हो जाएगा, इस उहापोह में फीडिंग की डायरेक्शन बदल गई और दूध बच्चे के नाक में चला गया. बच्चे की सांसे रुक गई और उसकी जान बचाना मुश्किल हो गया था.”
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

सत्यवती कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. देवेश ने बताया कि कई सालों से एडहॉक पर पढ़ा रहे हैं. एडहॉक के साथ तरह-तरह का भेदभाव होता है. छुट्टियां नहीं मिलती हैं. हर वक्त नौकरी चले जाने का डर सताता रहता है. डॉ. देवेश ने तबाया कि:

“एडहॉक होने की वजह से हम लोगों की शादी तय नहीं होती है. लोग फैमिली प्लानिंग नहीं कर पाते हैं. अगर घर में मां-बाप बीमार हैं तो उन्हें टाइम नहीं दे पाते हैं. आपको रेगुलर आना पड़ेगा, चिकनगुनिया, डेंगू, मलेरिया कैंसर चाहे जो भी हो जाए. हमारे तीन साथी  हैं एक को इस टेंशन में रहते हुए हार्ट अटैक हो गया. म्यूजिक डिपार्टमेंट के अनीस खान को एक साल से निकालने की कोशिश हो रही थी, वो इसी टेंशन में 38 - 40 साल की उम्र में ही मर गए.”

सत्यवती कालेज के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ मनोज कुमार की माने तो लंबें समय तक के लिए एडहॉक की परंपरा ही गैर कानूनी है. खुलकर एडहॉक का शोषण हो रहा है लेकिन कोई बोलने वाला नहीं है. डॉ मनोज ने बताया कि, "यहां पर जो 50 से 60 फीसदी सीट खाली है वो न केवल यूनिवर्सिटी रूल का बल्कि भारत सरकार के तमाम नियम कानूनों का उल्लंघन है. इसके साथ- साथ यूजीसी के नियम का भी उल्लंघन है."

दिल्ली यूनिवर्सिटी के एडहॉक टीचर्स की मांग है कि उन्हें परमानेंट किया जाए. टीचर्स का कहना है कि सरकार ऑर्डिनेंस लाए और सभी को रेगुलर करे. इनका कहना है कि कई सालों से वे बिना सैलरी बढ़ाए, बिना छुट्टी, बिना मैटरनिटी लीव के काम कर रहे हैं. कई टीचर्स तो 10 से 15 सालों से एडहॉक पढ़ा रहे हैं.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 11 Jan 2019,10:21 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT