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DU:स्थायी समिति का आंबेडकर पर कोर्स हटाने का प्रस्ताव,पक्ष-विपक्ष में क्या तर्क?

क्या कमेटी चाहती है कि हम छात्रों को पढ़ाएं कि भारत में कभी भी जाति और लैंगिक असमानता नहीं थी: प्रोफेसर माया जॉन

आशना भूटानी
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>दिल्ली यूनिवर्सिटी अब जाति, लिंग और असमानता पर इतिहास का कोर्स हटा सकता है</p></div>
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दिल्ली यूनिवर्सिटी अब जाति, लिंग और असमानता पर इतिहास का कोर्स हटा सकता है

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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डॉक्टर बीआर अंबेडकर (Dr BR Ambedkar) पर एक वैकल्पिक कोर्स को लेकर शिक्षाविदों और दिल्ली विश्वविद्यालय की अकादमिक मामलों की स्थायी समिति के बीच खींचतान जारी है, इस बीच समिति ने विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग द्वारा पढ़ाए जाने वाले 'असमानता और अंतर' (Inequality and Difference) नामक एक वैकल्पिक कोर्स को हटाने का सुझाव दिया है.

इस वैकल्पिक कोर्स को पिछले सात सालों से पढ़ाया जा रहा था, जिसमें वर्ण, जाति, वर्ग और लिंग जैसे प्रमुख मुद्दे शामिल हैं. डीयू के इतिहास विभाग में पढ़ाने वाले और अकादमिक परिषद के निर्वाचित सदस्य डॉ विकास गुप्ता ने इस खबर की पुष्टि की है.

यह कोर्स छात्रों को उनके दूसरे साल या चौथे सेमेस्टर में विकल्प के रूप में दिया जाता है, जिसमें जाति, लिंग और भारत के संविधान के विषयों पर कई ऐतिहासिक लेखन शामिल हैं.

कुलपति (वी-सी) द्वारा गठित स्थायी समिति में 36 सदस्य हैं. इसमें अन्य सदस्यों के अलावा कुछ डीन, प्रिंसिपल और विभाग प्रमुख शामिल हैं. अकादमिक परिषद में 26 निर्वाचित सदस्य और वी-सी, रजिस्ट्रार, विभागों के प्रमुख और प्रोफेसर शामिल हैं. बैठक की अध्यक्षता वीसी करते हैं.

डॉ गुप्ता ने द क्विंट को बताया कि, “मई की शुरुआत में स्टैंडिंग कमेटी ने इस पर चर्चा की थी और कोर्स को खत्म किया जा रहा था. कमेटी ने तर्क दिया कि लिंग और जाति को लेकर पहले से ही अन्य कोर्स में पढ़ाया जा रहा है.”

हालांकि, डॉ गुप्ता ने तब इस फैसले का विरोध किया था. उन्होंने कहा कि, "मेरा तर्क है कि विषय पर बात होना एक बात है और उसपर गहनता से पढ़ाई करना अलग बात है."

द क्विंट ने इस कोर्स को पढ़ाने वाले प्रोफेसरों और एकेडमिक काउंसिल के सदस्यों से बात की ताकि यह समझा जा सके कि कोर्स क्यों महत्वपूर्ण है और वे काउंसिल की आगामी बैठक में इसे बनाए रखने की उम्मीद क्यों करते हैं?

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"क्या कमेटी चाहती है कि हम छात्रों को पढ़ाएं कि भारत में कभी भी जाति और लैंगिक असमानता नहीं थी?”

डीयू में इतिहास की प्रोफेसर और अकादमिक परिषद की सदस्य प्रोफेसर माया जॉन ने कहा कि शुक्रवार, 26 मई को सुबह 10.30 बजे शुरू होने वाली बैठक में तय होगा कि कोर्स का क्या किया जाएगा.

यह एक ऐसा कोर्स है जो अपने आप में काफी समृद्ध है, जो असमानता के कई कारणों पर बात करता है. यह भारत में असमानता की विभिन्न संरचनाओं के बारे में बातचीत करने के लिए अन्य विभागों के छात्रों को शामिल करने का इतिहास विभाग का तरीका है. यह छात्रों को वर्ण, जाति, लैंगिक असमानता और नस्लीय और जातीय अंतर के बारे में ऐतिहासिक रूप से सोचना सिखाता है.
प्रोफेसर माया जॉन

उन्होंने बताया कि, कोर्स चार यूनिट में हैं. पहले यूनिट में 'असमानताओं की संरचना और रूप: सामान्य और ऐतिहासिक अनुभव' वर्ण, जाति, अस्पृश्यता और नस्ल और गुलामी का अध्ययन है. दूसरी यूनिट का शीर्षक 'लिंग, घरेलू व्यवस्था और सार्वजनिक क्षेत्र' है. तीसरी यूनिट 'जनजाति' और 'वन निवासी' पर है और चौथे यूनिट का शीर्षक 'भारतीय संविधान और समानता के प्रश्न' है. कोर्स की हर यूनिट को पूरा करने में दो से पांच हफ्ते का समय लगता है.

कोर्स में अंबेडकर की द अनटचेबल्स: वे कौन थे? और वे अछूत क्यों बन गए, उमा चक्रवर्ती की प्रारंभिक भारत में ब्राह्मणवादी पितृसत्ता की अवधारणा: लिंग, जाति, वर्ग और राज्य और डेविड हार्डीमैन का दलित और आदिवासी पर बात.

प्रोफेसर माया जॉन ने कहा, "यह अंडर ग्रेजुएट छात्रों के लिए एक महत्वपूर्ण कोर्स है. क्या समिति चाहती है कि हम छात्रों को पढ़ाएं कि भारत में कभी भी जाति और लैंगिक असमानता नहीं थी?”

"यह वैसा ही है जैसा NCERT के साथ किया गया"

डीयू की प्रोफेसर आभा देव हबीब ने नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (NCERT) के साथ जो कुछ हो रहा है इससे डीयू के वैकल्पिक कोर्स की तुलना की.

उन्होंने कहा, “वे नहीं चाहते कि हम समस्याओं की पहचान करें. सरकार के लिए असहज करने वाले हिस्सों को भ्रष्ट करने या छोड़ने से, हम कैसे प्रतिस्पर्धा कर पाएंगे और क्या हमारी शिक्षा अब उनके प्रचार के अनुसार होगी?"

12 मई को एक बैठक में बीआर अंबेडकर की फिलॉसफी पर एक कोर्स को हटाने के सुझाव पर चर्चा की गई. दर्शनशास्त्र विभाग की पाठ्यक्रम समिति ने प्रस्ताव के खिलाफ कड़ी आपत्ति व्यक्त की.

बीआर अंबेडकर पर कोर्स को हटाने के प्रस्ताव के बारे में, दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रवक्ता ने द क्विंट को बताया, “अब तक सिर्फ यही चर्चा हुई है कि, क्या अन्य विचारकों को भी कोर्स में जोड़ा जाना चाहिए. इस कोर्स को अभी तक हटाया नहीं गया है.”

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