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देश में कोरोना वायरस और लॉकडाउन से पैदा हुए आर्थिक संकट से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है. इस ऐलान में गरीब तबके और प्रवासी मजदूरों के लिए जो राहते दी गई हैं, उसे समझने के लिए क्विंट ने की इकनॉमिस्ट और आईआईटी दिल्ली में असिस्टेंट प्रोफेसर, डॉ रीतिका खेड़ा से बात. डॉ खेड़ा ने कहा कि मौजूदा समय में सबसे जरूरी काम है कि लोगों के हाथ में खाना और पैसा पहुंचाया जाए, और सरकार ने जो ऐलान किए हैं, उन्हें व्यवस्थित ढंग से लागू किया जाए.
डॉ खेड़ा ने कहा कि जनवितरण प्रणाली में 8 करोड़ लोगों का जोड़ा जाना अच्छा कदम है, लेकिन इसे सिर्फ दो महीने के लिए नहीं, बल्कि हमेशा के लिए करने की जरूरत है. उन्होंने कहा, “आज की स्थिति ये है कि जनवितरण प्रणाली में जो वास्तविक कवरेज है, वो केवल 60 प्रतिशत है. जो 6 प्रतिशत की भरपाई है, वो आज 10 करोड़ लोगों की कमी है. और अगर 8 करोड़ जोड़े जाते हैं, तो हम कम से कम अपना कानूनी दायित्व पूरा कर रहे हैं. लेकिन सरकार ने ये केवल दो ही महीने के लिए कहा है. मेरे हिसाब से इन 8 करोड़ को इन्हें परमानेंट करने की जरूरत है.”
डॉ रीतिका खेड़ा ने कहा कि फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के पास भंडारण की समस्या हो रही है. सरकार को जितने स्टॉक की जरूरत है, उससे तीन गुना ज्यादा अनाज सरकार के पास पहले से है. इसलिए तीन महीने के लिए जो दोगुना राशन देने का ऐलान हुआ था, उसे और तीन महीने के लिए बढ़ा देना चाहिए.
डॉ खेड़ा ने कहा कि वन नेशन-वन राशन कार्ड प्लान सुनने में अच्छा लगता है, लेकिन इसपर गौर किया जाए तो इसमें कई पेचीदगियां दिखती हैं. उन्होंने कहा कि अधिकतर मजदूर राशन कार्ड अपने घरों पर रखते हैं ताकि परिवार को राशन मिल सके.
डॉ रीतिका खेड़ा ने कहा कि अपने-अपने घरों को लौट रहे मजदूरों के लिए इस वक्त सबसे बेहतर कम्युनिटी किचन की व्यवस्था रहेगी, जहां वो कम पैसों या मुफ्त में खाना खा सकते हैं. केरल, झारखंड, दिल्ली, तमिलनाडु में मजदूरों और जरूरतमंदों के लिए कम्युनिटी किचन चलाए जा रहे हैं.
डॉ खेड़ा ने कहा कि बरसात के महीने में भी मनरेगा के काम चालू रखना जरूरी है, क्योंकि ये हंगरी सीजन होता है. उन्होंने कहा इसके अलावा, मनरेगा मजदूरों को 2-3 महीने के लिए 10 दिन की मजदूरी भी पहले दे दी जानी चाहिए.
डॉ खेड़ा ने कहा कि सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि उन्हें साल का 100 दिन का काम और मजदूरी मिले.
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