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मणिपुर हिंसा (Manipur Violence) को लेकर राज्य सरकार ने एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (The Editors Guild of India) के चार मेंबर्स पर FIR दर्ज की है. इस मामले में अब 'द एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया' ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. उन्होंने अपने सदस्यों के खिलाफ दर्ज एफआईआर (FIR) रद्द कराने की मांग की है. बुधवार, 6 सितंबर को मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एडिटर्स गिल्ड के चारों मेंबर्स को गिरफ्तारी से अंतरिम राहत दी है.
भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने एडिटर्स गिल्ड सदस्यों द्वारा दायर रिट याचिका पर मणिपुर राज्य को नोटिस जारी करते हुए यह आदेश पारित किया. इस मामले की सुनवाई अगले सोमवार, 11 सितंबर को होगी.
बता दें कि मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की टीम पर राज्य में जारी हिंसा को भड़काने की कोशिश करने का आरोप लगाया है और राज्य सरकार ने द एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (EGI) की अध्यक्ष समेत चार पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाया था. इसके एक दिन बाद एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने मंगलवार यानी 5 सितंबर को अपना पक्ष रखा और कहा कि वे मणिपुर के सीएम बीरेन सिंह के बयानों से "स्तब्ध" हैं.
एडिटर्स गिल्ड ने कहा कि उन्हें मणिपुर के सीएम बीरेन सिंह की संस्था को "राज्य-विरोधी" और "राष्ट्र-विरोधी" बताने वाली टिप्पणी बेहद परेशान करने वाली लगी. DIGIPUB और प्रेस क्लब ऑफ इंडिया जैसे अन्य पत्रकार संगठनों ने भी ईजीआई सदस्यों के खिलाफ एफआईआर की निंदा की और इसे "प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला" बताया.
वहीं, दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स, मुंबई प्रेस क्लब ने भी EGI के पत्रकारों पर FIR दर्ज करने की निंदा की और मणिपुर सरकार से वापस लेने की मांग की है.
ये एफआईआर EGI की 'मीडिया रिपोर्टेज ऑन इथनिक वॉयलेंस इन मणिपुर' शीर्षक वाली रिपोर्ट पर दर्ज कराई गई. रिपोर्ट में दावा किया गया कि "मणिपुर के पत्रकारों ने राज्य में हिंसा के बारे में एकतरफा रिपोर्टें लिखीं." इसमें राज्य सरकार पर "हिंसा के दौरान पक्षपातपूर्ण" होने का भी आरोप लगाया गया.
इस रिपोर्ट के पब्लिश होने के दो दिन बाद, EGI अध्यक्ष सीमा मुस्तफा, वरिष्ठ पत्रकार सीमा गुहा, भारत भूषण और संजय कपूर पर आईपीसी की विभिन्न धाराओं के साथ-साथ सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 (IT Act 2000) और प्रेस परिषद अधिनियम 1978 के तहत मामला दर्ज किया गया.
विशेष रूप से, एफआईआर में कथित तौर पर आईटी एक्ट की धारा 66ए का इस्तेमाल किया गया है. बता दें कि इस प्रावधान को सुप्रीम कोर्ट ने 2015 के ऐतिहासिक श्रेया सिंघल फैसले में खत्म कर दिया था. तब से, अपेक्स कोर्ट और केंद्र सरकार ने कई मौकों पर राज्य के प्रशासनिक अधिकारियों को "असंवैधानिक" कानून लागू नहीं करने का निर्देश दिया है.
IPC की धारा 153A (दो समुदायों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना)
IPC की धारा 200 (झूठी घोषणा को सच के रूप में प्रयोग करना)
IPC की धारा 298 (जानबूझकर धार्मिक भावनाओं को आहत करने का इरादा)
स्क्रॉल की रिपोर्ट के अनुसार, FIR इंफाल के एक व्यक्ति द्वारा दर्ज की गई शिकायत के आधार पर दर्ज की गई थी. जिसने कहा था कि रिपोर्ट में एक तस्वीर में कुकी के घर से धुआं उठने का झूठा दावा किया गया था, जो वास्तव में एक वन अधिकारी का ऑफिस था.
एडिटर्स गिल्ड ने आरोपों पर रविवार को ट्वीट कर जवाब दिया. टीम ने कहा "2 सितंबर को जारी एक रिपोर्ट में एक फोटो कैप्शन में एक गलती थी. इसे ठीक किया जा रहा है और अपडेटेड रिपोर्ट शीघ्र ही लिंक पर अपलोड की जाएगी. फोटो एडिटिंग के दौरान इसमें गलती के लिए हमें खेद है."
EGI पर पक्षपातपूर्ण रिपोर्ट प्रकाशित करने का आरोप लगाते हुए बीरेन सिंह ने यह भी कहा कि गिल्ड की मणिपुर फैक्ट फाइंडिंग टीम के सदस्यों ने सभी समुदायों के प्रतिनिधियों से मुलाकात नहीं की थी.
24 पन्नों की फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में एडिटर्स गिल्ड ने मणिपुर मीडिया और राज्य सरकार पर पक्षपातपूर्ण होने का आरोप लगाया है. यहां रिपोर्ट के प्रमुख फाइंडिंग दी गई हैं-
रिपोर्ट के अनुसार "जातीय हिंसा के दौरान, मणिपुर के पत्रकारों ने एकतरफा रिपोर्टें लिखीं. सामान्य परिस्थितियों में, स्थानीय प्रशासन, पुलिस और सुरक्षा बलों के संपादकों या ब्यूरो के प्रमुखों द्वारा उनकी जांच और निगरानी की जाती थी. हालांकि, ऐसा हिंसा के दौरान संभव नहीं था.
"मैतेई मीडिया, (जैसा कि हिंसा के दौरान मणिपुर मीडिया बन गया था) ने संपादकों के साथ सामूहिक रूप से डिस्कस कर एक कॉमन नैरेटिव पर काम करने का फैसला किया, जैसे की किसी घटना की रिपोर्ट करने के लिए कॉमन भाषा का उपयोग करने पर सहमति और भाषा के कुछ उपयोग और यहां तक कि किसी घटना की रिपोर्टिंग नहीं करने का संदर्भ दिया गया.
इंटरनेट निलंबित होने और संचार और परिवहन की व्यवस्था ठप होने के कारण मीडिया को सरकार की बताई कहानी पर निर्भर रहना पड़ा. गिल्ड ने आरोप लगाया "एन बीरेन सिंह सरकार के तहत यह नैरेटिव बहुसंख्यक मैतेई समुदाय के पूर्वाग्रहों के कारण एक संकीर्ण जातीय बन गई.''
रिपोर्ट में कहा गया" मैतेई मीडिया सुरक्षा बलों, विशेषकर असम राइफल्स की निंदा में एक पक्ष बन गया. यह असम राइफल्स के खिलाफ लगातार प्रचार करके अपनी ड्यूटी में फेल हो गया कि वे केवल जनता के विचारों को प्रसारित कर रहे थें."
ईजीआई ने आरोप लगाया, "स्पष्ट संकेत हैं कि राज्य का नेतृत्व हिंसा के दौरान पक्षपातपूर्ण हो गया. उसे जातीय संघर्ष में पक्ष लेने से बचना चाहिए था लेकिन वह एक लोकतांत्रिक सरकार के रूप में अपना कर्तव्य निभाने में विफल रही, जिसे पूरे राज्य का प्रतिनिधित्व करना चाहिए था."
इसने आगे कहा "इसका सीधा असर शासन पर पड़ा, जो पक्षपातपूर्ण भी माना था. इसका कुल परिणाम यह है कि कार्यपालिका, राज्य की पुलिस और अन्य सुरक्षा बल और नौकरशाही आज जातीय आधार पर विभाजित हैं. इंफाल में मैतेई सरकार, मैतेई पुलिस और मैतेई नौकरशाही है और पहाड़ियों में रहने वाले आदिवासी लोगों को उन पर कोई भरोसा नहीं है.”
EGI ने कहा, "राज्य ने इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाकर गलती की. इंटरनेट प्रतिबंध केवल अफवाहों को बढ़ावा देता है और वंचित समुदाय के विचारों को अवरुद्ध करता है, जैसा कि मणिपुर में स्पष्ट रूप से हुआ है."
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