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सियासतदान जो बोलते हैं वो करते नहीं, और जो करते हैं वो बोलते नहीं. अक्सर वो कहते एक बात हैं और उसका मतलब कुछ और होता है. चुनावी मौसम में वादों और इरादों की बरसात होती है. वोटर के लिए अक्सर नेताओं की बातों को समझने और इसके आधार पर सही फैसला लेने में दिक्कत होती है. ऐसे में जरूरी है कि हम चुनावी मंचों से झरने वाली गुड़ सी बातों में अपने मतलब की बात खोजें. ''रोज का डोज' में तमाम चुनावी चक्कलस के बीच असली बात क्या है, ये समझने और समझाने की कोशिश करेंगे. ये रहा आज का चुनावी डोज...
लोकसभा चुनाव 2019 के लिए मंगलवार को कांग्रेस ने अपना घोषणापत्र जारी किया. घोषणापत्र का फोकस तीन चीजों पर है. रोजगार को बढ़ावा, किसानों की मदद और महिला सुरक्षा पर जोर. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने घोषणापत्र लॉन्च पर सबसे ज्यादा जोर NYAY योजना पर दिया. घोषणा पर BJP के जवाब का मतलब समझने से पहले छोटे में घोषणापत्र का मतलब समझिए
घोषणापत्र बनाने वाली कमेटी के अध्यक्ष पी चिदंबरम और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी दोनों ने बताया कि ये घोषणापत्र जनता की राय लेकर बनाया गया है. इसमें नेताओं के मन की नहीं,जन मन की बात है. घोषणापत्र लॉन्च के कार्यक्रम में पत्रकारों ने राहुल से बार-बार ये बात पूछी कि चुनाव का एजेंडा आप कैसे बदलेंगे? क्योंकि NDA चुनाव को राष्ट्रवाद और आतंकवाद के मुद्दे पर कराना चाह रही है. हर बार राहुल ने जवाब में यही कहा कि मेरी नजर में मुख्य मुद्दे दो ही हैं..रोजगार और किसान. उन्होंने ये भी कहा कि-''इन मुद्दों पर मैं मोदी जी को डिबेट के लिए चैलेंज करता हूं''. जाहिर है इन मुद्दों पर बातचीत करने के लिए बीजेपी के पास अनुकूल आंकड़े नहीं हैं. कोई ताज्जुब नहीं कि बीजेपी की तरफ से फिर से ये कोशिश शुरू हो गई कि बातचीत के एजेंडे को अपने मनपसंद मुद्दों पर केंद्रीत रखा जाए.
आप गौर करें तो पठानकोट हमले और उसके बाद बालाकोट पर एयर स्ट्राइक के बाद चुनाव का टोन सेट हो गया था. ‘NYAY’, ‘22 नौकरियां देने’ और ‘बिजनेस शुरू करने के लिए किसी परमिशन की जरूरत नहीं’ - जैसे वादे कर कांग्रेस चुनावों का नैरेटिव बदलने की कोशिश कर रही है.
NYAY की घोषणा होने के बाद कांग्रेस के विरोधियों ने इसे नाकाबिले अमल करार दे दिया. इसी क्रम में घोषणापत्र जारी होने के थोड़ी ही देर बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि ये देश को तोड़ने वाला घोषणापत्र है. खासकर उन्होंने जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 नहीं हटाने, AFSPA और देशद्रोह के कानून (धारा 124A) को खत्म करने के ऐलान का विरोध किया।
हाल ही में जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार पर इसी कानून के तहत केस किया गया. कोई ताज्जुब नहीं है कि इसे खत्म करने के ऐलान के बाद कन्हैया कुमार ने भी इसका समर्थन करते हुए कहा - इसके दुरुपयोग का लंबा इतिहास रहा है.
इसमें कोई शक नहीं कि जनता की राय लेकर बनाए गए इस घोषणापत्र में जनता के असली मुद्दों की बात है लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि मतदान में जब इतना कम समय बचा है तो क्या कांग्रेस अपनी बात को जन-जन तक पहुंचा पाएगी? क्योंकि दूसरी तरफ से बार-बार राष्ट्रवाद का नारा बुलंद किया जाएगा. इन मुद्दों पर बात न हो इसकी बात की जाएगी. एक तरीका ये हो सकता था कि असली मुद्दों पर जो बात हुई उसके अलावा आतंकवाद, राष्ट्रीय सुरक्षा, हेट क्राइम, मॉब लिचिंग और गौरक्षकों की हिंसा पर इशारो में बात करने के बजाय घोषणापत्र में खुलकर बात करनी चाहिए थी. बताना चाहिए था कि इन्हें रोकने के लिए क्या करेंगे? ये देश ही नहीं कांग्रेस के लिए भी अच्छा होता.
नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अबदुल्ला ने उत्तरी कश्मीर के बांदीपोरा में एक सभा में कहा - ''आज हमारे ऊपर तरह-तरह के हमले हो रहे हैं. कई तरह की साजिश हो रही है. कई ताकतें लगी हुई हैं कश्मीर की पहचान मिटाने में. बाकी रियासत बिना शर्त के 1947 में मिले, पर हमने कहा कि हमारी अपनी पहचान होगी, अपना संविधान होगा, हमने उस वक्त अपने सदर-ए-रियासत और वजीर-ए-आजम भी रखा था, इंशाअल्लाह उसको भी हम वापस ले आएंगे.'' उमर का ये बयान आते ही सियासत शुरू हो गई.
खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने विपक्ष से उमर के बयान पर जवाब मांगा. क्रिकेटर और अभी-अभी बीजेपी में आए गौतम गंभीर ने कहा - ‘उमर अगर कश्मीर के लिए अलग पीएम चाहते हैं तो मैं समुद्र पर चलना चाहता हूं'' उमर और गौतम के बीच इस मुद्दे पर एक गंभीर ट्विटर वार छिड़ी है. उमर अब्दुल्ला ने गंभीर को सलाह दी है कि जब कश्मीर के इतिहास के बारे में नहीं जानते तो क्रिकेट पर ही बात कीजिए.
हमेशा और आज भी कश्मीर के आम लोगों की समस्या अपनी पहचान के बजाय शिक्षा, रोजगार और शांति रही है. क्या चुनावों से पहले सबसे ज्यादा बात इन मुद्दों पर नहीं होनी चाहिए? ये बात भी पब्लिक डोमेन में है कि उमर के दादा शेख अब्दुल्ला भी कश्मीर के भारत के विलय के पैरोकार थे. ''अ मिशन इन कश्मीर'' किताब में एंड्रयू वाइटहेड लिखते हैं कि शेख बाद में आजादी चाहने लगे लेकिन शुरुआती दौर में वो पाकिस्तान नहीं भारत के साथ रहना चाहते थे. जाहिर है ऐन चुनावों से पहले उमर के इस बयान को बीजेपी ने लपक लिया है. इस बयान का कश्मीर के लिए कोई फलीभूत हो या न हो, कश्मीर में उमर की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस और बाकी देश में बीजेपी के लिए फायदेमंद हो सकता है.
भोपाल से चुनाव लड़ रहे कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह कहा - ‘भोपाल में आरएसएस के दफ्तर से सुरक्षा हटाना ठीक नहीं. मैं सीएम कमलनाथ से अनुरोध क रता हूं कि तत्काल दोबारा पर्याप्त सुरक्षा देने के आदेश दें’. इसके बाद कमलनाथ ने भी बयान दिया कि संघ से हमारी विचारधारा अलग हो सकती है लेकिन मैं उनके दफ्तर से सुरक्षा हटाने का समर्थन नहीं करता. मैंने वहां फिर से सुरक्षा देने के निर्देश दिए हैं.’
मजेदार बात ये है कि भोपाल जोन 1 यानी जहां ये दफ्तर है वहां के ASP ने इससे पहले सफाई दी कि दफ्तर से सुरक्षा हटाई गई है, ये कहना गलत होगा. सिर्फ स्पेशल फोर्स को वहां से हटाया गया. लोकल पुलिस अब भी तैनात है. ये चुनावी तैनाती की जरूरतों को पूरा करने के लिए किया गया. ASP ने ये भी बताया कि ये रूटीन तब्दीली थी, किसी से कोई निर्देश नहीं आया था, और बंदोबस्त में 6 जगह बदलाव किए गए. सवाल ये है कि सुरक्षा हटने पर आरएसएस की तरफ से शिकायत आने के बजाय दिग्विजय सिंह को चिंता क्यों हुई? कहीं सालों बाद चुनावी मैदान में कूदे दिग्विजय सिंह का वोट कटने का डर तो इसके पीछे नहीं?
इसे कहते हैं आगे कुआं-पीछे खाई. सोमवार को अरविंद केजरीवाल ने कहा- राहुल गांधी दिल्ली में आम आदमी पार्टी (AAP) से गठबंधन नहीं चाहते. मंगलवार को घोषणापत्र जारी करते हुए राहुल गांधी ने कहा - बातचीत चल रही है. इससे पहले शीला दीक्षित इसपर कुछ भी साफ करने से बचती आई हैं. कुल मिलाकर भारी सस्पेंस है.
दरअसल AAP की इमारत कांग्रेस के विरोध पर खड़ी हुई थी. अरविंद केजरीवाल कांग्रेस और इसके नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते नहीं थकते थे. अब ऐसे सियासी हालात बने हैं कि उसी कांग्रेस से गठबंधन करना एक अच्छी सियासी चाल हो सकती है. लेकिन कोई पक्के तौर पर कह नहीं सकता कि गठबंधन से आम आदमी पार्टी को ज्यादा नफा होगा या नुकसान.
दूसरी तरफ कांग्रेस के स्थानीय नेता AAP का दिया दर्द नहीं भूल पाए होंगे. खासकर AAP के कारण जिन शीला दीक्षित की कुर्सी गई, उनके लिए भी गठबंधन जरूरत है लेकिन सियासी विरोध भी हकीकत है..दोनों तरफ यही एक सा द्वंद है. फिर किसे कितनी सीटें मिलेंगी, इस पर भी मामला फंसा है... 4 AAP को और तीन कांग्रेस को..बात इसी फॉर्मूले पर हो रही है..वैसे घोषणापत्र लॉन्च के समय गठबंधन को लेकर राहुल गांधी का बॉडी लैंग्वेज यही कहता है कि गठबंधन की गुंजाइश अभी बनी हुई है. राहुल ने दिल्ली के नेताओं के साथ बैठक बुलाई है. शायद कोई खबर आए.
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