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सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग ने कहा है कि वो राजनीतिक दलों की पॉलिटिकल फंडिंग के लिए चुनावी बॉन्ड जारी करने के खिलाफ नहीं है, लेकिन डोनर्स के नाम गुप्त रखने के खिलाफ हैं. आयोग ने इस स्कीम में पारदर्शिता पर जोर देने की बात कही है.
इलेक्टोरल बॉन्ड मामले में सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग का पक्ष रखते हुए एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, 'हम इलेक्टोरल बॉन्ड का विरोध नहीं कर रहे हैं, क्योंकि ये कानूनी डोनेशन होगा. लेकिन हम चंदा देने वाले की पहचान गुप्त रखे जाने का विरोध कर रहे हैं. हम पहचान गुप्त रखने के खिलाफ हैं, क्योंकि हम पारदर्शिता चाहते हैं.’
सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड के खिलाफ चुनाव आयोग ने जिस आधार पर हलफनामा दायर किया है, वही आधार कॉमन कॉज और ADR जैसे एनजीओ का भी है. इन NGOs ने भी इलेक्टोरल बॉन्ड के खिलाफ याचिका दायर की है.
ये एक प्रकार के प्रोमिसरी नोट हैं, यानी ये धारक को उतना पैसा देने का वादा करते हैं. ये बॉन्ड सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक पार्टियां ही भुना सकती हैं. ये बॉन्ड आप एक हजार, दस हजार, एक लाख, दस लाख और एक करोड़ की राशि में ही खरीद सकते हैं. ये इलेक्टोरल बॉन्ड आप स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनिंदा शाखाओं से ही ले सकते हैं. ये बॉन्ड आप अकेले, समूह में, कंपनी या फर्म या हिंदू अनडिवाडेड फैमिली के नाम पर खरीद सकते हैं.
ये बॉन्ड आप किसी भी राजनीतिक पार्टी को दे सकते हैं और खरीदने के 15 दिनों के अंदर उस राजनीतिक पार्टी को उस बॉन्ड को भुनाना जरूरी होगा, वरना वो पैसा प्रधानमंत्री राहत कोष में चला जाएगा. चुनाव आयोग द्वारा रजिस्टर्ड पार्टियां जिन्होंने पिछले चुनाव में कम से कम एक फीसदी वोट हासिल किया है, वो ही इन इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा लेने की हकदार होंगी. चुनाव आयोग ऐसी पार्टियों को एक वेरिफाइड अकाउंट खुलवाएगी और इसी के जरिए इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे जा सकेंगे.
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