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देश में लोकसभा चुनावों के दौरान सिर्फ मई महीने में ही 822 करोड़ रुपये से ज्यादा के इलेक्टोरल बांड बेचे गए. इनमें सबसे ज्यादा 370 करोड़ रुपये के बॉन्ड बंगाल में बिके. पुणे के आरटीआई कार्यकर्ता विहार दुर्वे को मिली आरटीआई जानकारी के मुताबिक यह 6 से 24 मई के बीच इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री का आंकड़ा है.
दुर्वे की ओर से दिए गए आरटीआई एप्लीकेशन की एवज में मिली जानकारी में हर शहर में बिके इलेक्टोरल बॉन्ड का ब्रेक-अप दिया गया है. सबसे ज्यादा यानी 370 करोड़ रुपये से ज्यादा के बॉन्ड की बिक्री कोलकाता में एसबीआई के मेन ब्रांच में हुई.
दुर्वे को मिले आरटीआई एप्लीकेशन जवाब के आधार पर ही क्विंट ने पहले भी बताया था कि इस साल जनवरी, मार्च और अप्रैल में 4794 करोड़ से अधिक ( 47,94,68,05,000 रुपये ) के इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री हुई.
मार्च, अप्रैल, मई, जुलाई और अक्टूबर और नवंबर 2018 में कुल 1,000 करोड़ रुपये से अधिक(10,56,73,42,000 रुपये) के इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे गए.
इस हिसाब से देखें तो 2019 (जनवरी, मार्च, अप्रैल और मई 2019) और 2018 ( मार्च, अप्रैल, मई, जुलाई, अक्टूबर, नवंबर 2018) में 5851 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे जा चुके हैं. अब तक सबसे ज्यादा राजनीतिक चंदा 2019 में इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये ही दिया गया है. लेकिन यह कोई नहीं जानता कि ये चंदा देने वाले कौन हैं और इसका सबसे ज्यादा फायदा किस पार्टी को हुआ है.
द क्विंट ने हाल में कई आर्टिकल पब्लिश किए हैं, जिनमें दिखाया गया है कि इलेक्टोरल बॉन्ड किस तरह डेमोक्रेसी के लिए खतरा हैं. इस स्कीम में कोई पारदर्शिता नहीं है. इस लिए इलेक्टोरल बॉन्ड पर सवाल उठ रहे हैं. पारदर्शिता न होने की वजह से ईसी और पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने इलेक्टोरल बॉन्ड की आलोचना कर चुके हैं.
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