अप्रैल 2019 में सियासी दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड से 2,256 करोड़ का चंदा मिला। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने एक आरटीआई के जवाब में ये जानकारी दी है. बता दें कि ये बॉन्ड महीने की पहली तारीख से लेकर 10 तारीख तक मिलते हैं. किस शहर में कितने इलेक्टोरल बॉन्ड बिके हैं, इसे देखकर ये भी अंदाजा लगता है कि पार्टियों को कौन सबसे ज्यादा चंदा रहा है?
किस शहर में कितने बॉन्ड बिके?
इस साल अब तक 3,972 करोड़ के बॉन्ड बिके हैं, जबकि पिछले साल ये आंकड़ा एक हजार करोड़ का ही था. एसबीआई ने विहार ध्रुव को आरटीआई के तहत जानकारी में ये भी बताया है कि चार महानगरों में अप्रैल में किस शहर में कितने के इलेक्टोरल बॉन्ड बिके
- मुंबई - करीब 695 करोड़
- कोलकाता करीब 418 करोड़
- दिल्ली करीब 409 करोड़
- हैदराबाद करीब 339 करोड़
कौन दे रहा ज्यादा चंदा?
एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (ADR) के जगदीप कोचर कहते हैं कि आरटीआई के जवाब से साफ है कि सबसे ज्यादा बॉन्ड देश के बिजनेस कैपिटल मुंबई में बिक रहे हैं. इससे ये साबित होता है कि इलेक्टोरल बॉन्ड इसीलिए बनाए गए हैं ताकि कॉरपोरेट चंदा लिया जा सके. अब कारपोरेट्स के लिए बॉन्ड से चंदा देना आसान हो गया है कि क्योंकि इसमें पता ही नहीं चलता है कि कौन किसको और कितना चंदा दे रहा है.
एक दूसरी RTI से ये भी पता चला है कि मार्च 2018 से जनवरी 2019 के बीच सबसे ज्यादा कीमत वाले बॉन्ड सबसे ज्यादा बिके.
मध्यप्रदेश के सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ ने RTI के जरिए SBI से पता लगाया कि इस दौरान कुल 1407 करोड़ के बॉन्ड बिके। सिर्फ दस लाख और एक करोड़ वाले बॉन्ड के जरिए ही 1403 करोड़ का चंदा दिया गया.
जाहिर है आम आदमी 10 लाख और एक करोड़ के बॉन्ड नहीं खरीदेगा. बता दें कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने पार्टियों से कहा है कि वो लोकसभा चुनाव के बाद चुनाव आयोग को सील बंद लिफाफे में इस बात की जानकारी दें कि उन्हें किन लोगों ने चंदा दिया है.
इलेक्टोरल बॉन्ड : चुनाव सुधार या बंटाधार?
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी के मुताबिक इलेक्टोरल बॉन्ड सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में है. बॉन्ड्स के जरिए कारपोरेट और सरकार की साठगांठ को छुपाना आसान हो गया है.
इसकी असली वजह ये है सकती है कि कॉरपोरेट्स नहीं चाहते कि उन्हें सरकार से लाइसेंस, लोन और कॉन्ट्रैक्ट रूप में जो रिटर्न फेवर मिलता है, उसकी जानकारी आम जनता को न मिले. चुनावी चंदे को और पारदर्शी बनाने के बजाय इलेक्टोरल बॉन्ड के कारण जनता से जानकारी छुपा ली जाएगी जिससे पूरी प्रक्रिया और गुप्त हो जाएगी.एसवाई कुरैशी, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त
केंद्र सरकार इस बॉन्ड के जरिए चुनाव सुधार लाने का दावा कर रही है. लेकिन शुरू से ही इसकी आलोचना हो रही है. सुप्रीम कोर्ट में चली सुनवाई के दौरान केंद्र ने कहा कि इस बॉन्ड का मकसद चुनावी चंदे में काले धन को रोकना है. हालांकि चुनाव आयोग कह चुका है कि इससे उल्टा होगा. आयोग का मानना है बॉन्ड के कारण शेल कंपनियां बनाकर सियासी पार्टियों को चंदा दिया जाएगा.
सरकार को पता होगा किसने दिया चंदा?
क्विंट अपनी एक रिपोर्ट में बता चुका है कि इलेक्टोरल बॉन्ड्स पर एक सीक्रेट अल्फान्यूमेरिक नंबर है. इसके सहारे सरकार बॉन्ड खरीदने वाले को ट्रैक कर सकती है. वो ये पता लगा सकती है कि किसने सत्तारूढ़ पार्टी को चंदा दिया और किसने विपक्षी पार्टियों को. अब ये जानकारी भी सामने आ चुकी है कि इलेक्टोरल बॉन्ड से सबसे ज्यादा चंदा बीजेपी को मिल रहा है. पिछले साल मार्च में 222 करोड़़ के बॉन्ड बिके. इसमें से सिर्फ बीजेपी को 210 करोड़ के बॉन्ड मिले. यानी बॉन्ड से कुल चंदे का 95 फीसदी सिर्फ बीजेपी को गया.
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