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नाम बड़े और दर्शन छोटे? 17 साल में सिर्फ 0.42% लोगों को सजा दिला पाया पावरफुल ED

Enforcement Directorate: सवाल यह है कि क्या ईडी का इतना ज्यादा शक्तिशाली होना उचित है?

विष्णु गजानन पांडे
भारत
Updated:
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कितना पावरफुल ED?

फोटो- altered by quint  

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महाराष्ट्र (Maharashtra) में मुंबई की विशेष अदालत द्वारा शिवसेना (Shiv Sena) नेता और राज्यसभा सांसद संजय राउत (Sanjay Raut) की हिरासत की अवधि 8 अगस्त तक बढ़ाने के फैसले के बाद संजय राउत की पत्नी वर्षा राउत को प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) ने पूछताछ के लिए बुलाया है. पात्रा चॉल जमीन मनी लॉड्रिंग (Money Laundering) मामले में यह पूछताछ की जा रही है. इसी मामले में संजय राऊत को सोमवार को गिरफ्तार किया गया था.

वर्षा राऊत वैसे तो शिक्षिका हैं, लेकिन वे फिल्म निर्माता भी हैं और बिजनेस भी करती हैं. संजय राऊत ने चुनाव के समय दिए अपने शपथपत्र में बताया था कि उनकी पत्नी तीन कंपनियों में पार्टनर हैं. इनमें से एक कंपनी रायटर एंटरटेनमेंट एलएलपी ने ही वॉयकॉम 18 मोशन पिक्चर्स और कार्निवल मोशन पिक्चर्स के साथ मिलकर बालासाहब ठाकरे के जीवन पर ‘ठाकरे’ फिल्म का निर्माण किया था. यह फिल्म बालासाहब ठाकरे के 93 वें जन्मदिन पर 23 जनवरी 2019 को प्रदर्शित हुई थी.

ईडी इस समय देश की सबसे ताकतवर संस्था है. हाल में सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय ने इसकी ताकत और बढ़ा दी है.

गत 27 जुलाई को धन-शोधन निवारण अधिनियम (प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट - PMLA) के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस कानून में 2018 में किए गए संशोधन सही हैं.

कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय के सभी अधिकारों को भी सही बताया था. सर्वोच्च न्यायालय में कांग्रेस नेता कार्ति चिदंबरम, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अनिल देशमुख व अन्य कई व्यक्तियों की तरफ से पीएमएलए के अनेक प्रावधानों को चुनौती देने वाली 100 से ज्यादा याचिकाएं दायर की गयी थी.

इन याचिकाओं में ईडी की शक्तियों,गिरफ्तारी के अधिकार,गवाहों को समन और संपत्ति को जब्त करने के तरीकों तथा जमानत की प्रक्रिया को चैलेंज किया गया था. याचिकाकर्ताओं ने कहा कि पीएमएलए के कई प्रावधान असंवैधानिक हैं क्योंकि इन प्रावधानों में संज्ञेय अपराधों की जांच और ट्रायल के संबंध में दी गयी प्रक्रिया का पालन किया जा रहा है.

इसके अलावा यह भी कहा गया था कि इस कानून के तहत गिरफ्तारी,जमानत,संपत्ति की जब्ती का अधिकार दण्ड प्रक्रिया संहिता-सीआरपीसी (Criminal Procedure Code- CrPC) के दायरे से बाहर है जबकि जांच एजेंसी को जांच के समय सीआरपीसी का पालन करने के बाध्य होना चाहिए.

दोषसिद्धि की दर सिर्फ 0.42 प्रतिशत

सवाल यह है कि क्या ईडी का इतना ज्यादा शक्तिशाली होना उचित है? और वह भी उस स्थिति में जब उसकी अपराध सिद्धि की दर बहुत कम है. अभी 27 जुलाई 2022 को ही केंद्र सरकार ने लोकसभा में बताया था कि 17 साल पहले पीएमएलए कानून लागू हुआ था तब से अब तक 5422 प्रकरण दर्ज किए गए जिनमें सिर्फ 23 लोगों को सजा हुई है.

ये स्पष्ट नहीं है कि 23 लोगों को 23 मामले में सजा हुई है या किसी मामले में एक से अधिक आरोपियों को दंड मिला है.

अगर 23 मामलों में 23 लोगों को सजा हुई है, तो इसका मतलब है कि दोषसिद्धि की दर सिर्फ 0.42 प्रतिशत है. केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने यह भी बताया कि पिछले 10 सालों में वित्तीय वर्ष 2021 में सर्वाधिक 1,180 मामले दर्ज किए गए.

उनका कहना है कि 31 मार्च 2022 तक ईडी ने पीएमएलए कानून के तहत 5422 प्रकरण दर्ज किए और जांच के दौरान लगभग 1,04,702 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की. इनमें से 992 मामले में चार्जशीट दाखिल की गयी और 869.31 करोड़ रुपये जब्त किए गए.

कितने अधिकार हैं ईडी के पास

संयुक्त राष्ट्र में 1988 में नशीले पदार्थों के व्यापार पर रोकथाम के लिए एक सम्मेलन आयोजित किया था. इसके करीब 10 साल बाद भारत ने पहली 1999 में मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने के लिए एक कानून का मसौदा तैयार किया था. संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के साथ-साथ संगठित अपराध से उत्पन्न धन पर नकेल कसने के उद्देश्य से अन्य अंतर्राष्ट्रीय पहलों के संदर्भ भी 2002 में पेश धन शोधन निवारण अधिनियम की प्रस्तावना दिखाई देते हैं.

पीएमएलए के कुछ प्रावधानों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में बहस करने वाले वरिष्ठ वकील अमित देसाई का कहना है कि कानून बनाने का उद्देश्य नशीले पदार्थों पर पाबंदी और उनकी बिक्री से होने वाली कमाई पर रोक लगाने का था ताकि उनकी आपराधिक गतिविधियों को मिलने वाली सहायता पूरी तरह बंद हो सके.

मतलब संगठित अपराध सिंडिकेट के अवैध धन पर रोक लगाने के लिए दुनिया भर के देशों में मनी लॉन्ड्रिंग कानूनों को पेश किया गया था क्योंकि कोई भी देश इस तरह का पैसा नहीं चाहता. 2002 में जब केंद्र में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार थी तब प्रस्तुत किए गए धन शोधन निवारण अधिनियम,2002 में 6 कानूनों के तहत 40 अपराधों से कमाए धन को मुख्य रूप से ‘अपराध की आय’ माना था.

ये 40 अपराध ‘अनुसूचित अपराध’ (ये अधिनियम में संलग्न एक अनुसूची में उल्लेखित किए गए हैं) या "विधेय अपराध" (अपराध जो एक बड़े अपराध का हिस्सा हैं) नशीली दवाओं की तस्करी, अवैध हथियारों, वेश्यावृत्ति, अवैध वन्यजीव व्यापार, भ्रष्टाचार और राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ने से संबंधित हैं.

केंद्र में कांग्रेस की सरकार के समय 2009 और 2012 में इस कानून में संशोधन कर इसका दायरा विस्तारित किया गया और 30 कानूनों के अंतर्गत 140 अनुसूचित अपराधों को भी मनी लान्ड्रिंग के लाया गया. इनमें आमतौर पर 50,000 रुपये के जुर्माने के साथ दंडनीय कॉपीराइट उल्लंघन या पायरेटेड सॉफ़्टवेयर के उपयोग जैसे मामूली अपराध को भी जोड़ दिया गया है. इन आरोपों के तहत किसी व्यक्ति को महीनों तक जेल में बंद रखा जा सकता है.

कांग्रेस सरकार ने पीएमएलए की पहुंच विस्तारित की

कांग्रेस सरकार ने कानून में संशोधन कर पीएमएलए की पहुंच का विस्तार किया वहीं बीजेपी सरकार ने इस कानून को और खतरनाक बना दिया. सामान्य कानूनों में आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत सुरक्षा उपाय उपलब्ध हैं लेकिन लागू होने के बाद से ही मनी लॉन्ड्रिंग कानून, ईडी अधिकारियों को असाधारण शक्तियां देता है.

सामान्य अपराध के मामले में जब पुलिस किसी को पूछताछ के लिए बुलाती है तो पुलिस को उस व्यक्ति को बताना होता है कि पुलिस उसे संदिग्ध मानती है या गवाह किन्तु ईडी को ऐसा कोई स्पष्टीकरण देने की जरूरत नहीं है. कानूनन एक पुलिस अधिकारी को दिया गया बयान सबूत के रूप में मंजूर नहीं किया जाता है.

लेकिन पीएमएलए में ऐसी कोई सुरक्षा नहीं दी गई है. दरअसल यही इकलौता कानून है जो किसी आरोपी द्वारा दिए गए बयान को उसके खिलाफ इस्तेमाल की अनुमति देता है.मतलब ईडी के सामने सच न बोलने पर आरोपी को सजा हो सकती है.

इसी तरह ईडी पर मजिस्ट्रेट की निगरानी नहीं है. नियमानुसार पुलिस को प्रत्येक एफआईआर मजिस्ट्रेट को भेजना चाहिए और एफआईआर की एक प्रति आरोपी को दी जानी चाहिए. लेकिन प्रवर्तन मामले में ईडी को सूचना रिपोर्ट (प्रवर्तन केस सूचना रिपोर्ट Enforcement Case Information Report-ECIR) -ईसीआईआर की एक प्रति आरोपी को प्रदान करने की आवश्यकता नहीं है.

ईडी को आरोपी की गिरफ्तारी के 60 दिन के भीतर आरोपपत्र दाखिल करना अनिवार्य है.मतलब जब तक ईडी अभियोजन पक्ष की शिकायत या आरोप पत्र दायर नहीं करता है तब तक आरोपी को यह पता नहीं चलेगा कि उसके विरुद्ध क्या आरोप लगाए गए हैं.

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कानून भूतलक्षी प्रभाव (Retrospective Effect) से लागू करना संभव

इस कानून में 2019 में किए गए एक अन्य संशोधन की वजह से ईडी को यह कानून भूतलक्षी प्रभाव (Retrospective Effect) से लागू करना संभव हो गया है. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध एक निरंतर अपराध हैं और यह (उस) समय की परवाह किए बिना लागू होता है कि विधेय अपराध अनुसूची में किस समय शामिल किया गया है.

कानून के विशेषज्ञों का कहना है कि इसका प्रभावी रूप से मतलब है कि ईडी कई दशकों पीछे जा सकता है - मतलब पीएमएलए के अस्तित्व में आने से बहुत समय पहले के आर्थिक व्यवहार भी जांच के दायरे में आ सकते हैं. उनका कहना है कि अगर 2007 में जो काम मनी लॉन्ड्रिंग शेड्यूल के तहत अपराध नहीं था तो उसके लिए 2020 में मुकदमा कैसे चलाया जा सकता है?

कौन कौन आया है इस कानून की चपेट में-

‘आप’ के सत्येन्द्र जैन

आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के मंत्री सत्येंद्र जैन के मामले में ईडी की कार्यवाही में इस कानून के लगभग सभी उदाहरण दिखाई देते हैं. उन्हें मई 2022 में आय से अधिक संपत्ति के मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेंस्टिगेशन- सीबीआई) द्वारा दायर प्रकरण में ईडी ने गिरफ्तार किया.

उनके वकीलों का कहना था कि जैन ने भूमि लेनदेन के माध्यम से जो भी कथित मनी लॉन्ड्रिंग की थी वह व्यवहार कथित मूल अपराध की अवधि के पहले किए गए थे.पूछताछ के समय उनके वकील के हाजिर रहने पर भी ईडी ने आपत्ति उठाई और प्रवर्तन मामले की सूचना रिपोर्ट को साझा करने से भी मना कर दिया जिसके आधार पर कार्रवाई शुरू की गई थी.

ईडी कानूनी रूप से प्रवर्तन मामले में सूचना रिपोर्ट शिकायत दर्ज करने के बाद गिरफ्तारी के 60 दिन के भीतर साझा करने के लिए बाध्य है. जमानत के लिए यह जानना तो जरूरी है कि उस व्यक्ति के खिलाफ आरोप क्या हैं. कपिल सिब्बल का कहना है कि प्रवर्तन मामले की सूचना रिपोर्ट के महत्व के बारे में कहा कि जब मुझे पता ही नहीं है कि मेरे खिलाफ क्या आरोप है तो मैं किस आधार पर जमानत मांग सकता हूं? उल्लेखनीय है कि आतंकवाद विरोधी कानून, गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम की तुलना में पीएमएलए जैसे कानूनों के तहत जमानत प्रावधान बहुत अधिक कड़े हैं.

महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री एनसीपी के नवाब मलिक

इसी तरह ईडी ने महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री नवाब मलिक को 23 फरवरी 2022 में पीएमएलए के तहत गिरफ्तार किया. करीब बीस साल पहले खरीदी गई संपत्ति को मामले में ये गिरफ्तारी की गई. इनमें से एक संपत्ति 2003 में यानी पीएमएलए के लागू होने के 2 साल पहले खरीदी गई थी. नवाब मलिक को भगोड़े गैंगस्टर दाऊद इब्राहिम और उसके मददगारों की गतिविधियां से जुड़े धन शोधन के मामले में गिरफ्तार किया गया.

ईडी द्वारा दर्ज मामला राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (नेशनल इन्वेसिटिगेशन एजेंसी-NIA) के जरिए दाऊद इब्राहिम और अन्य के खिलाफ दर्ज प्राथमिक सूचना रिपोर्ट पर आधारित है. एनआईए ने गैरकानूनी एक्टिविटी रोकथाम कानून (यूएपीए) की धाराओं के तहत आपराधिक शिकायत दर्ज की थी.

अग्रसेन गहलोत, चन्नी का भतीजा

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के भाई अग्रसेन गहलोत के मामले में ऐसा ही कुछ हुआ है.उनके खिलाफ एक दशक से पहले के आर्थिक व्यवहार को लेकर एक आपराधिक शिकायत दायर की गई कि उन्होंने उर्वरक निर्यात प्रकरण में करचोरी की जिसे लेकर ईडी ने उनके यहां छापेमारी की.

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंग चन्नी के भतीजे भूपेन्दरसिंग हनी को 2018 में कथित रेत उत्खनन मामले में पंजाब पुलिस में दर्ज एक शिकायत के आधार पर कार्यवाही की हालांकि मूल एफआईआर में भूपेन्दर सिंग का नाम नहीं है.

अर्पिता मुखर्जी व तृणमूल कांग्रेस के पूर्व मंत्री पार्था चटर्जी, हेमंत सोरेन

पिछले कुछ समय से ईडी की कार्रवाई में लगातार बढ़ोतरी हुई है. पश्चिम बंगाल में अभिनेत्री अर्पिता मुखर्जी और तृणमूल कांग्रेस के पूर्व मंत्री पार्था चटर्जी सहित 13 लोगों पर चर्चित स्कूल सेवा आयोग भ्रष्टाचार मामले में ईडी ने तलाशी अभियान चलाया जिसमें अर्पिता के घर से करोड़ों रुपये की नकदी, 5 किलो सोना और स्वर्ण आभूषण बरामद किए है.

झारखंड मुक्तिमोर्चा के नेता और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के निकटवर्ती विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्रा की गिरफ्तारी के बाद उसके नजदीकी बच्चू यादव को भी गिरफ्तार किया है. हेमंत सोरेन के प्रेस सलाहकार अभिषेक प्रसाद श्रीवास्तव से भी माइनिंग लीज समेत अवैध खनन मामले में पूछताछ की गई है.

नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला

ईडी ने मई 2022 में जम्मू-कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन (जेकेसीए) में कथित आर्थिक अनियमितता के बारे में नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला से धन शोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) लंबी पूछताछ की. वे 2001 से 2012 तक जेकेसीए के अध्यक्ष थे. सीबीआई और ईडी 2004 से 2009 के बीच कथित वित्तीय हेराफेरी के मामले की जांच कर रही है.

इस मामले में ईडी, अब्दुल्ला की 11.86 करोड़ रुपये की अचल संपत्ति सहित 21 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति कुर्क कर चुकी है. ईडी का दावा है कि जांच में उसे पता चला है कि अहसान अहमद मिर्जा नाम के एक व्यक्ति ने जेकेसीए के अन्य पदाधिकारियों से सांठगांठ कर जेकेसीए में 51.90 करोड़ रुपये का घपला किया और घपले की रकम का इस्तेमाल अपना निजी कारोबार बढ़ाने के लिए किया.

नेशनल हेराल्ड प्रकरण में सोनिया और राहुल गांधी से पूछताछ

बहुचर्चित नेशनल हेराल्ड प्रकरण में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से ईडी ने पूछताछ की है और वह राहुल गांधी से भी पूछताछ करने की तैयारी कर रहा है. ईडी का कहना है कि उसे कुछ नए सबूत मिले हैं इसलिए वह नए सिरे से पूछताछ करने में जुटी है. सोनिया-राहुल से पूछताछ के खिलाफ कांग्रेस ने देशव्यापी आंदोलन किया था.

विपक्ष की आवाज कुचलने के लिए की जा रही है कार्रवाई-कांग्रेस

कांग्रेस सहित समूचे विपक्ष का कहना है कि ईडी और सीबीआई की कार्रवाई विपक्ष की आवाज कुचलने और महंगाई तथा अन्य मामलों में सरकार की विफलता को दबाने के लिए की जा रही है. उनका कहना है कि आखिर ईडी की कार्रवाई गैर भाजपा शासित राज्यों में ही क्यों हो रही है?

उनका दूसरा सवाल यह है कि कांग्रेस और अन्य दूसरे दल से भाजपा में शामिल हुए नेताओं के खिलाफ जांच क्यों बंद हो जाती है या थम क्यों जाती है? इस संबंध में असम के मुख्यमंत्री हिमंत विस्वा सरमा का उदाहरण दिया जाता है. उनका नाम करोड़ों रुपये के शारदा चिटफंड(पोंजी) घोटाले में आया था.

सीबीआई को लिखे एक पत्र में घोटाले के मुख्य आरोपी और शारदा समूह के संस्थापक सुदीप्त सेन ने आरोप लगाया था कि उसने सरमा को रिश्वत दी थी. ईडी ने उसी पत्र के आधार पर तृणमूल कांग्रेस के कई नेताओं के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया लेकिन ईडी ने सरमा को कभी पूछताछ के लिए नहीं बुलाया.

सरमा पहले कांग्रेस में थे और मंत्री भी रह चुके थे. मई 2016 मे वे भारतीय जनता पार्टी में चले गए.सरमा के कांग्रेस छोड़ने और भाजपा में शामिल होने से कुछ महीने पहले ईडी ने उनकी पत्नी रिनिकी बिस्वा सरमा पूछताछ की थी लेकिन उसके बाद कभी भी नहीं बुलाया.

शिवसेना में बगावत की वजह है ईडी का डर

महाराष्ट्र में शिवसेना के बागी विधायकों में से कई विधायकों पर ईडी और सीबीआई की जांच का खतरा मंडरा रहा था. कुछ विधायकों ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से कहा भी था कि शिवसेना को फिर बीजेपी से हाथ मिला लेना चाहिए लेकिन उद्धव ने उनकी बात नहीं सुनी. बागी विधायकों के बारे में कहा जाता है कि हिंदुत्व के मुद्दे की आड़ में ये लोग भाजपा की शरण में चले गए ताकि उनके खिलाफ जांच न हो.

तब ईडी का भूत लगेगा ‘उनके’ पीछे

केंद्र में शासन करने वाली सरकार पर जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगता रहता है. जब कांग्रेस सत्ता में थी तो विपक्ष में बैठी बीजेपी उस पर सीबीआई के दुरुपयोग का आरोप लगाती थी. आज बीजेपी सत्ता में है तो कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दल यह आरोप लगा रहे हैं. ईडी को पालन पोषण कांग्रेस ने किया था लेकिन उसे और शक्तिशाली और ज्यादा अधिकार देने का काम बीजेपी ने किया.

कांग्रेस ने अपने विरोधियों के खिलाफ अधिकतर सीबीआई का इस्तेमाल किया लेकिन सीबीआई और ईडी, दोनों का ही बीजेपी जमकर प्रयोग कर रही है.

निश्चित तौर पर सीबीआई की तुलना में ईडी ज्यादा शक्तिशाली और खतरनाक है क्योंकि ईडी आरोपियों के खाते सीज करके उनको आर्थिक रूप से कंगाल करने में सक्षम है. समर्थक यह दावा कर सकते हैं कि ईडी की अधिकतर कार्रवाई भ्रष्ट राजनेताओं और आर्थिक घोटाला करने वाले तथा अपराधों के लिए धन मुहैय्या कराने वाले लोगों के खिलाफ की गई है. यह ध्यान रखने वाली बात है कि सत्ता बदलती रहती है और तब आज विपक्ष में बैठे लोग उस समय के विपक्ष के पीछे बदले के लिए ईडी का भूत लगा सकते हैं.

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Published: 09 Aug 2022,07:23 AM IST

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