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भारत दौरे पर आया यूरोपियन यूनियन का 27 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल मंगलवार 29 अक्टूबर को कश्मीर दौरे पर जाएगा, जहां वो आर्टिकल 370 को खत्म किए जाने के बाद की स्थिति का जायजा लेंगे.
लेकिन इस प्रतिनिधिमंडल की सबसे खास बात है कि इसमें शामिल ज्यादातर सदस्य अपने-अपने देश की राइट विंग पार्टियों के सदस्य हैं.
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआईएम) के महासचिव सीताराम येचुरी ने एक ट्वीट कर इस ओर ध्यान दिलाया. अपने ट्वीट में येचुरी ने लिखा,
27 सदस्यीय इस प्रतिनिधिमंडल में ब्रिटेन, इटली, जर्मनी, फ्रांस, स्लोवाकिया, पोलैंड, स्पेन, बेल्जियम और चेक रिपब्लिक के सदस्य हैं.
लेकिन सिर्फ ब्रिटेन और इटली के एक-एक सदस्यों को छोड़कर बाकी सभी 25 सदस्य या तो धुर दक्षिणपंथी हैं या फिर दक्षिण-पंथ समर्थक (सेंटर-राइट) हैं.
इस प्रतिनिधिमंडल में फ्रांस के 6 सांसद दक्षिणपंथी मरीन ला पेन की नेशनल पार्टी से हैं, जबकि पोलैंड के 6 सांसद भी सत्तारूढ़ दक्षिणपंथी धड़े से ही हैं. प्रतिनिधिमंडल के सिर्फ 2 सदस्य गैर दक्षिणपंथी पार्टियों से हैं.
इन देशों की दक्षिणपंथी पार्टियों के सदस्य शामिल हैं-
इनके अलावा सिर्फ 2 सदस्य ऐसे हैं, जिनका ताल्लुक दक्षिणपंथी दलों से नहीं है. इनमें से एक इटली की डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसद हैं, जबकि दूसरे ब्रिटेन की लिबरल डेमोक्रेट पार्टी के सांसद हैं.
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी सरकार के इस कदम को गलत बताया. राहुल ने ट्वीट कर लिखा,
सरकार के इस फैसले पर जम्मू और कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने भी हैरानी जताई और सरकार के इरादों पर सवाल खड़े कर दिए. महबूबा ने कई ट्वीट किए और उम्मीद जताई कि ईयू के प्रतिनिधिमंडल को स्थानीय लगोों से और स्थानीय मीडिया से बात करने का मौका दिया जाएगा.
महबूबा ने साथ ही ये भी सवाल उठाया कि अगर ईयू के प्रतिनिधमंडल को कश्मीर जाने का मौका दिया जा रहा है तो यही मौका अमेरिकी सीनेट के सदस्यों को क्यों नहीं दिया जाता.
महबूबा ने सरकार के इस कदम को विदेश नीति में गड़बड़ी बताया और लिखा कि सरकार फासीवादी और प्रवासी विरोधी यूरोपियन सांसदों से संवाद कर रही है.
ईयू के इस प्रतिनिधिमंडल को कश्मीर ले जाने के केंद्र सरकार के फैसले पर बीजेपी के ही वरिष्ठ नेता और पूर्व कानून मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी ने सवाल उठा दिया है. सुब्रमण्यम स्वामी ने ट्वीट कर विदेश मंत्रालय के इस फैसले को राष्ट्रीय नीति के खिलाफ बताते हुए अनैतिक घोषित किया.
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