Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019EWS आरक्षण: "आरक्षण की समय-सीमा होनी चाहिए"-फैसला सुनाते हुए 5 जजों ने क्या कहा?

EWS आरक्षण: "आरक्षण की समय-सीमा होनी चाहिए"-फैसला सुनाते हुए 5 जजों ने क्या कहा?

EWS Reservation को Supreme Court ने 3-2 के फैसले से वैध करार दिया है.

धनंजय कुमार
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>EWS आरक्षण: "आरक्षण की समय-सीमा होनी चाहिए"-फैसला सुनाते हुए 5 जजों ने क्या कहा?</p></div>
i

EWS आरक्षण: "आरक्षण की समय-सीमा होनी चाहिए"-फैसला सुनाते हुए 5 जजों ने क्या कहा?

PTI

advertisement

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार, 7 नवंबर को अपने एक ऐतिहासिक फैसले में EWS आरक्षण को कायम रखते हुए इसकी संवैधानिकता पर उठ रहे सवाल को खारिज कर दिया. सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने 3-2 से EWS आरक्षण के पक्ष में फैसला दिया. हालांकि, जो 2 जज इससे सहमत नहीं हैं उनमें चीफ जस्टिस यूयू ललित भी शामिल हैं.

EWS आरक्षण के पक्ष में दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस पादरीवाल ने फैसला सुनाया जबकि जस्टिस एस रवींद्र भट्ट और CJI यूयू ललित इसके विरोध में रहे. आइए देखत हैं कि फैसला सुनाते वक्त सभी 5 जजों ने क्या कहा?

जस्टिस दिनेश माहेश्वरी

जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने सबसे पहले कोर्ट में बताया कि इसमें 3 प्रमुख मुद्दे शामिल हैं.

  • 1. क्या आरक्षण पिछड़े वर्गों के प्रतिनिधित्व का एक साधन है और क्या आर्थिक आधार पर आरक्षण संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है?

  • 2. EWS से 15(4) को बाहर रखना क्या समानता के अधिकार का उल्लंघन है?

  • 3. 50% आरक्षण के अतिरिक्त 10 फीसदी EWS आरक्षण क्या मूल ढांचे के खिलाफ है?

जस्टिस माहेश्वरी ने कहा कि आरक्षण राज्य की तरफ से सकारात्मक कार्रवाई का एक साधन है ताकि समावेशी दृष्टिकोण सुनिश्चित किया जा सके...आर्थिक मानदंडों पर आरक्षण संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन नहीं करता है. उन्होंने कहा कि

इसमें 15(4), 16(4) वर्गों को शामिल न करना समानता का उल्लंघन नहीं है और बुनियादी ढांचे को नुकसान नहीं पहुंचाता है. उन्होंने ये भी कहा कि 50% की अधिकतम सीमा का उल्लंघन संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन नहीं है और 103वें संविधान संशोधन को बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता.
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, सुप्रीम कोर्ट

जस्टिस बेला त्रिवेदी ने क्या कहा?

जस्टिस बेला त्रिवेदी ने भी जस्टिस माहेश्वरी की बातों से सहमति जताते हुए कहा कि 103वें संविधान संशोधन बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं है. इस संशोधन को निरस्त नहीं किया जा सकता. EWS वर्ग के लाभ को संसद की तरफ से एक सकारात्मक कार्रवाई माना जाना चाहिए. इसे अनुचित नहीं कहा जा सकता.

राज्य EWS श्रेणियों की उन्नति के लिए संशोधन लेकर आया है. EWS को अलग वर्ग मानना ​​एक उचित वर्गीकरण होगा. संशोधन EWS का एक अलग वर्ग बनाता है. SEBC को अलग रखना भेदभावपूर्ण या संविधान का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता. उन्होंने 103वें संविधान संशोधन की वैधता को बरकरार रखा. आजादी के 75 साल बाद हमें समाज के व्यापक हितों में आरक्षण की व्यवस्था पर फिर से विचार करने की जरूरत है.

संसद और विधानसभाओं में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व समय सीमा के बाद समाप्त होना था. संसद में एंग्लो इंडियन के लिए आरक्षण खत्म हो गया है. इसी तरह इसमें एक समय-सीमा होनी चाहिए.
जस्टिस बेला त्रिवेदी, सुप्रीम कोर्ट
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

जस्टिस पादरीवाल ने क्या कहा?

जस्टिस पादरीवाल ने भी जस्टिस महेश्वरी और बेला त्रिवेदी के साथ सहमति व्यक्त की. उन्होंने कहा कि "आरक्षण अंत नहीं है, यह साधन है, इसे निहित स्वार्थ नहीं बनने देना चाहिए. आरक्षण अनिश्चित काल के लिए जारी नहीं रहना चाहिए. नहीं तो ये निहित स्वार्थ बन जाएगा. अंत में मैं EWS संशोधन को बरकरार रखने के पक्ष में हूं."

जस्टिस एस रवींद्र भट्ट ने क्या कहा?

जस्टिस एस रवींद्र भट्ट ने असहमति जताते हुए कहा कि हमारा संविधान किसी को लाभ से बाहर रखने की अनुमति नहीं देता है और यह संशोधन सामाजिक न्याय और मूल ढांचे के ताने-बाने को कमजोर करता है. जस्टिस भट ने आगे कहा कि ये संशोधन हमें भ्रमित करता है कि सामाजिक और पिछड़े वर्ग का लाभ पाने वाले लोग बेहतर स्थिति में हैं.

SEBC के गरीबों को बाहर रखना गलत है. जिसे लाभ के रूप में वर्णित किया गया है उसे मुफ्त पास के रूप में नहीं समझा जा सकता. संशोधन संवैधानिक रूप से भेदभाव को दर्शाता है.

उन्होंने कहा कि ST/SC/OBC के गरीबों को आर्थिक पिछड़ेपन की श्रेणी से बाहर रखना भेदभाव है और ये समानता पर चोट करता है. गरीबों का बड़ा हिस्सा 15(4) और 16(4) (अर्थात गरीब) में वर्णित वर्गों से संबंधित है.

जस्टिस भट्ट ने कहा कि इस संशोधन को 50% आरक्षण की सीमा का उल्लंघन भी माना जाएगा. तमिलनाडु पिछड़ा वर्ग संशोधन को उल्लंघनकारी माना गया था. इस फैसले से उस केस में भी सवाल खड़े होंगे. 50% के उल्लंघन की अनुमति देने से कंपार्टमेंटलाइज़ेशन होगा.
मैं दो सामाजिक कार्यकर्ताओं के शब्दों को उजागर करना चाहता हूं- स्वामी विवेकानंद का शिकागो में 1893 में दिया गया संदेश सभी के लिए सार्वभौमिक भाईचारा. 'यदि कोई अपने धर्म के अनन्य अस्तित्व और दूसरों के विनाश का सपना देखता है, तो मुझे उस पर दया आती है" आर्थिक मानदंडों पर आरक्षण लागू करने की अनुमति दी जा सकती है लेकिन अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग को इस आधार पर बाहर करना गलत है.
जस्टिस एस रवींद्र भट, सुप्रीम कोर्ट

उन्होंने कहा कि संविधान 103वें संशोधन अधिनियम की धारा 2 और 3 इस आधार पर असंवैधानिक है कि वे मूल सिद्धांतों का उल्लंघन है. अंत में सीजेआई यूयू ललित ने कहा कि मैं जस्टिस भट के इस विचार से पूरी तरह सहमत हूं और 3-2 से फैसला EWS आरक्षण के पक्ष में हुआ. EWS आरक्षण जारी रहेगा.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT