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बिहार के कैमूर जिले के अधौरा ब्लॉक में 11 सितंबर को वन विभाग के ऑफिस में प्रदर्शन कर रहे आदिवासियों पर पुलिस ने गोली चलाई थी. चार सदस्यों की एक फैक्ट-फाइंडिंग टीम ने 23 से 27 सितंबर के बीच अधौरा में आदिवासी समुदाय के लोगों से बातचीत की और पूरे मामले को समझा. आदिवासियों ने वन विभाग के लोगों पर उनकी जमीन पर अतिक्रमण करने का आरोप लगाया है. टीम ने अपनी रिपोर्ट में आदिवासियों पर गोली चलाने के मामले की न्यायिक जांच की मांग की है.
इसके अलावा टीम ने फॉरेस्ट राइट्स एक्ट 2006 को जल्दी से जल्दी लागू किए जाने की मांग उठाई है.
फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट में बताया गया कि मार्च 2020 से वन विभाग के कर्मचारियों ने अधौरा ब्लॉक के आदिवासियों की खेती वाली जमीन पर अतिक्रमण करने की कोशिश शुरू की थी. आरोप है कि वन विभाग आदिवासियों को उनके गांवों से हटाना चाहते थे.
10 सितंबर को हजारों की संख्या में आदिवासी अधौरा में वन विभाग के ऑफिस के बाहर जमा हुए. अधौरा ब्लॉक के 108 गांवों से आदमी, महिलाऐं और बच्चों ने इस धरने में हिस्सा लिया. प्रदर्शन बिरसा मुंडा स्मारक स्थल से शांतिपूर्ण ढंग से शुरू हुआ था. रिपोर्ट में कहा गया कि इस धरने के बारे में अगस्त से पैम्फलेट बांटे गए थे और सरकार और वन विभाग को धरने के बारे में जानकारी दी गई थी.
रिपोर्ट में बताया गया कि पुलिस ने अधौरा में कैमूर मुक्ति मोर्चा संगठन के ऑफिस में भी तोड़फोड़ की और 7 एक्टिविस्ट को 'झूठे आरोपों' में गिरफ्तार कर लिया. इन सातों के खिलाफ 11 सितंबर को IPC की कई धाराओं में केस दर्ज किया गया.
CPM नेता बृंदा करात ने फैक्ट-फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट को जारी किया है. इसमें आदिवासियों पर फायरिंग की न्यायिक जांच, दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई और एक्टिविस्टों पर से 'झूठे' केस वापस लेने की मांग की गई है.
इसके अलावा टीम ने फॉरेस्ट राइट्स एक्ट 2006 को तुरंत सही ढंग से लागू किए जाने की सिफारिश की है. वहीं, 1927 के औपनिवेशिक कानून को खत्म किए जाने की मांग की है.
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