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कृषि कानूनों को लेकर किसानों का प्रदर्शन जारी है और सरकार के प्रस्ताव को किसान खारिज कर चुके हैं. ऐसे में अब सरकार ने खुद सामने आकर किसानों के साथ हुई बातचीत और अपने प्रस्ताव की जानकारी दी है. केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि उन्होंने किसानों को हर मुद्दे पर बातचीत का न्योता दिया और उनकी समस्याओं को सुलझाने की कोशिश की गई. इसके साथ ही उन्होंने कानून में जिन बिंदुओं पर किसानों को आपत्ति है, उन पर सरकार का स्टैंड भी बताया.
केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि, पिछले संसद के सत्र में भारत सरकार तीन कानून लेकर आई थी. कृषि के क्षेत्र में दो कानूनों में कृषि उपज के व्यापार से संबंधित है. इन दोनों कानूनों पर दोनों सदनों में 4-4 घंटे तक सभी दलों के सदस्यों ने अपने विचार व्यक्त किए. लोकसभा में पारित हुआ, राज्यसभा में जब जवाब देने की स्थिति खड़ी हुई तो प्रतिपक्ष के कुछ लोगों ने ऐसी घटना को अंजाम दिया जो देश के लिए एक काले धब्बे की तरह है. उन्होंने कहा-
कृषि मंत्री ने भी एक बार फिर यूरिया को लेकर अपनी सरकार की तारीफ की और कहा- 2014 से पहले यूरिया की सीजन पर भयानक किल्लत होती थी. जब इसकी जरूरत राज्य को होती थी तो सीएम डेरा डालकर दिल्ली में बैठते थे. इसकी जमकर कालाबाजारी होती थी. कई जगहों पर पुलिस लगाकर यूरिया बांटने का काम किया जाता था. पिछले 6 साल में किसानों को यूरिया की कोई कमी नहीं हुई. इसीलिए ऐसे तमाम विषय हैं, जिन्हें 6 साल में किया गया.
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि कृषि कानूनों का उद्देश्य है कि किसान मंडी की जंजीरों से मुक्त हो. किसान मंडी के बाहर किसी को भी कहीं भी अपना माल बेचने के लिए स्वतंत्र हो. इसके बाहर जो ट्रेड होगा, उस पर कोई टैक्स नहीं लगेगा. इस पर किसी को क्या आपत्ति हो सकती है?
नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि, इस कानून का देशभर में स्वागत हुआ. लोग नए उत्साह के साथ काम करने के लिए आए. नए कानून के अंतर्गत एसडीएम ने इस कानून के तहत तुरंत भुगतान कराया. किसान को बढ़ी हुई कीमत मिली. लेकिन बीच में इन विषयों को लेकर कुछ किसान और कुछ यूनियन आंदोलन की राह पर आ गए.
उन्होंने कहा कि, पंजाब के किसान यूनियन के लोगों के साथ 14 अक्टूबर, 13 नवंबर को बातचीत हुई. इसके साथ ही हम लोग लगातार चर्चा के लिए तैयार थे. लेकिन इसी बीच 26 और 27 के आंदोलन की घोषणा हो गई. फिर हमने 3 दिसंबर को बातचीत का निमंत्रण भेजा, क्योंकि ठंड का मौसम और कोविड का वक्त था. इसीलिए 1 दिसंबर को मीटिंग की, फिर 3 दिसंबर को बैठक की, फिर तय हुआ कि 5 दिसंबर को बातचीत होगी. इसके बाद 9 दिसंबर को भी बातचीत भी रखी गई थी. लेकिन उनकी तरफ से कोई सुझाव नहीं आया. फिर हमने सोचा कि जब किसान आखिर में यही चाहते हैं कि कानून को रद्द कर दो, हमारी हमेशा प्राथमिकता रही कि मुद्दों पर चर्चा हो. फिर हम लोगों ने उन्हें मुद्दे चिन्हित करके बताए. हम लोगों ने प्रस्ताव बनाकर भेजा.
केंद्रीय कृषि मंत्री ने आगे कहा कि, किसानों की मांग थी कि कानून रद्द हों, लेकिन हमने कहा कि जिन बिंदुओं पर आपत्ति है उन पर समाधान निकाला जाएगा. कुछ लोगों ने कहा कि ये कानून वैध नहीं है, कृषि राज्य का विषय है और केंद्र इस पर कानून नहीं बना सकती है. इस पर उन्हें समझाया गया कि ट्रेड पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र को है. इससे एमएसपी और एपीएमसी पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
कृषि मंत्री ने कहा कि, उन लोगों ने प्रस्ताव मिलने के बाद कोई फैसला नहीं लिया. इसे लेकर मेरे मन में कष्ट है. किसान ठंड में इतनी तादाद में यहां बैठे हैं. इसीलिए हम लोगों की लगातार कोशिश है और मैं आग्रह करना चाहता हूं कि आप सभी ने जो प्रश्न उठाए थे उन्हें लेकर प्रस्ताव भेजा गया है. उन पर विचार करें और भारत सरकार चर्चा के लिए हमेशा तैयार है. किसानों को कहना चाहता हूं कि पूरा देश इस देश का साक्षी है कि 2006 में स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट आई थी, इसके बाद लंबे समय तक एमएसपी को डेढ़ गुना करने का इंतजार हुआ. मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ये मुमकिन हुआ.
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