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बॉर्डर पर डटे हैं किसान, कांग्रेस बोली-झुनझुना न पकड़ाए सरकार

दिल्ली के बाहर और अंदर किसानों का जमावड़ा, केंद्र फिर करेगा मनाने की कोशिश

क्विंट हिंदी
भारत
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दिल्ली के बाहर और अंदर किसानों का जमावड़ा, केंद्र फिर करेगा मनाने की कोशिश
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दिल्ली के बाहर और अंदर किसानों का जमावड़ा, केंद्र फिर करेगा मनाने की कोशिश
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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मोदी सरकार के कृषि कानूनों को लेकर किसानों का प्रदर्शन लगातार जारी है. केंद्रीय कृषि मंत्री के साथ मंगलवार को हुई बैठक में कई मुद्दों पर सहमति नहीं बन पाई और किसान नेताओं ने कहा कि वो प्रदर्शन को और तेज करेंगे. अब सरकार के लिए किसानों के इस आंदोलन को खत्म करवाना काफी जरूरी हो चुका है. क्योंकि इस मामले को लेकर विपक्ष तो जमकर हमलावर है ही, विदेशों से भी आवाजें उठनी शुरू हो चुकी हैं.

किसानों के साथ अब तक तीन बार केंद्र सरकार की बात हुई है और अब गुरुवार 3 दिसंबर को चौथे चरण की बातचीत होगी. लेकिन किसानों का मूड देखते हुए नहीं लगता है कि वो सरकार की बात मानेंगे.

किसानों का कहना है कि केंद्र सरकार के तीनों कानून उनके खिलाफ हैं और उन्हें वापस लिया जाना चाहिए. जबकि सरकार किसानों को ये समझाने की कोशिश में जुटी है कि इससे किसानों की आमदनी बढ़ने वाली है.

विपक्ष के सरकार से सवाल

किसानों के मुद्दे को लेकर विपक्ष सरकार पर जमकर हमलावर है. कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि मोदी सरकार किसान की पीठ में छुरा घोंप रही है और देश में बीजेपी की सरकार नहीं बल्कि कंपनी राज है. उन्होंने सवाल पूछते हुए कहा कि,

“मोदी सरकार ने ये काले कानून चोर दरवाजे से ‘अध्यादेश’ लाकर क्यों बनाए? जब कांग्रेस व विपक्षी दलों ने संसद में इन तीन काले कानूनों का विरोध करते हुए इन्हें संसद की विशेष समिति को भेजने की मांग रखी, तो मोदी सरकार ने उसे क्यों नहीं माना? कांग्रेस और विपक्षी दलों के सांसदों को संसद से निलंबित क्यों कर दिया? राज्य सभा में बहुमत न होते हुए भी ‘वॉईस वोट’ से तीन काले कानून जबरन पास क्यों करवाए?”
रणदीप सिंह सुरजेवाला, कांग्रेस महासचिव

केंद्र से बातचीत पर कांग्रेस का कहना है कि, "कृषि मंत्री किसानों को ‘विशेष कमेटी’ गठन करने का झुनझुना पकड़ा रहे हैं और प्रधानमंत्री मोदी ‘मन की बात’ और वाराणसी में खेती विरोधी काले कानूनों को सही बता रहे हैं. अगर तीनों काले कानून सही हैं, तो फिर कृषि मंत्री किसानों से क्या बातचीत कर रहे हैं."

चौथे दौर की बातचीत में क्या होगा?

मंगलवार 1 दिसंबर को तीसरे दौर की बातचीत के दौरान किसान नेताओं ने अपनी समस्याओं को सरकार के सामने रखा. इस दौरान सरकार ने पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन से किसान नेताओं को समझाने की कोशिश करते हुए बताया कि कैसे ये कानून किसानों के हित में हैं. इस दौरान केंद्र ने चुने हुए लोगों की एक समिति बनाने का सुझाव दिया, जिसे किसानों ने ठुकरा दिया है. अब चौथे दौर की बातचीत में किसानों को बिंदुवार तरीके से अपनी आपत्तियों को रखने के लिए कहा गया है. इसके बाद केंद्र सरकार उन्हें बताएगी कि वो इन आपत्तियों को कैसे दूर करेंगे.

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मंगलवार को हुई बातचीत के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल बुधवार को गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात करने पहुंचे. जहां उन्होंने शाह को किसान नेताओं से हुई बातचीत की जानकारी दी. बता दें कि पहले कहा जा रहा था कि शाह भी किसान नेताओं के साथ बैठक में शामिल होंगे, लेकिन वो और राजनाथ सिंह बैठक में नहीं पहुंचे.

बॉर्डर का क्या है हाल?

किसान आंदोलन को लेकर दिल्ली के कई बॉर्डर लगभग पूरी तरह से बंद थे. जिससे लोगों को आने-जाने में परेशानी हो रही थी. लेकिन अब धीरे-धीरे बॉर्डर खोले जा रहे हैं. दिल्ली-नोएडा बॉर्डर से अब पुलिस ने बैरिकेडिंग हटाना शुरू कर दिया है. जिसके बाद ट्रैफिक में कुछ राहत मिली है. चिल्ला बॉर्डर पर किसानों और पुलिस के बीच हुई बातचीत के बाद ये रास्ता खोला गया. वहीं दिल्ली हरियाणा के सिंघु बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर, झड़ौदा और बदरपुर के पास किसानों का प्रदर्शन जारी है. पुलिस ने बताया है कि ये बॉर्डर पूरी तरह से बंद रहेंगे. सिर्फ बडुसराय बॉर्डर को टू-व्हीलर के लिए खोला गया है.

किसानों का कहना है कि जब तक केंद्र सरकार उनकी बात नहीं सुनती है, वो दिल्ली की सीमाओं को ऐसे ही घेरते रहेंगे. यानी अब इस पूरे आंदोलन को लेकर गेंद केंद्र सरकार के पाले में है.

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