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पिछले करीब ढ़ाई महीने से हजारों किसान दिल्ली की सीमाओं पर डटे हैं. मांग एक ही है कि केंद्र सरकार तीनों कृषि कानूनों को वापस ले. 26 नवंबर से लेकर अब तक इस आंदोलन में काफी कुछ हुआ है, वक्त ऐसा भी आया जब लगा कि अब किसानों का ये आंदोलन ज्यादा देर तक नहीं टिकने वाला है. लेकिन आंदोलन हर बार नई ताकत और मजबूती के साथ खड़ा हुआ. हालांकि फिलहाल सरकार और किसानों के बीच बातचीत के दौर पर ब्रेक लगा हुआ है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि ये आंदोलन आखिर किस तरफ जाता हुआ दिख रहा है?
26 जनवरी को दिल्ली में हुई ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा के बाद लगा कि, आंदोलन कमजोर पड़ रहा है. लेकिन यूपी और हरियाणा जैसे राज्यों में हुई महापंचायतों ने आंदोलन में नई जान फूंक दी. महापंचायतों में उमड़ी किसानों की भीड़ और किसान नेताओं की हुंकार ने एक्शन मोड में आ चुके प्रशासन को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया. अब आंदोलन एक बार फिर पूरी ताकत के साथ खड़ा है और सत्ताधारी नेताओं के हर वार का तीखा जवाब दे रहा है.
आंदोलन की दिशा को जानने के लिए हमने वरिष्ठ किसान नेता और संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्य डॉ दर्शन पाल सिंह से बात की. उन्होंने बताया कि किसानों का ये आंदोलन लगातार चलता रहेगा. साथ ही सरकार के साथ बातचीत को लेकर भी दर्शन पाल ने हमसे बात की. उन्होंने कहा,
हमने दर्शन पाल सिंह से टिकैत के उस बयान को लेकर सवाल पूछा, जिसमें उन्होंने कहा है कि फिलहाल 2 अक्टूबर तक वो आंदोलन करेंगे और उसके बाद आगे की तैयारी की जाएगी. इस पर दर्शन पाल सिंह ने कहा, “टिकैत ने ये बयान स्टेज में दिया था, लेकिन हमारा संघर्ष लंबा चलेगा. हमारा आंदोलन लगातार चलता रहेगा, जैसे पिछले ढ़ाई महीने से चल रहा है. आगे की तैयारी बैठकों में की जाएगी. कल संयुक्त किसान मोर्चा की एक बैठक होगी, जिसमें आगे की रणनीति पर चर्चा होगी.”
आंदोलन के भविष्य को लेकर हमने ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोऑर्डिनेशन कमेटी (AIKSCC) के सदस्य अविक साहा से भी बातचीत की. जिन्होंने बताया कि,
साहा ने बताया कि, ये आंदोलन लगातार चलता रहेगा. किसान आंदोलन जब तक दिल्ली में है, ये पूरे भारत में फैलता जाएगा. अगर फैलता जाएगा और एक दो चुनाव पर इसका असर पड़ेगा तो पीएम सिर झुका लेंगे. पीएम अपने दोस्तों को ऐसे सड़कों पर नहीं छोड़ सकते हैं और किसान अपनी मांगे पूरी होने तक सड़क नहीं छोड़ेगा. साहा ने ये भी बताया कि अगर बातचीत होती है तो सरकार को कानून वापसी पर ही बात करनी होगी.
बता दें कि इससे पहले किसान नेता राकेश टिकैत साफ कर चुके हैं कि वो किसी भी दबाव में आकर सरकार से बात नहीं करेंगे. आंदोलन के भविष्य को लेकर टिकैत ने कहा था कि सरकार को फिलहाल 2 अक्टूबर तक का वक्त दिया गया है, अगर तब तक कानून वापस नहीं लिए गए तो उसके बाद आंदोलन को लेकर आगे की प्लानिंग की जाएगी.
अब सरकार की अगर बात करें तो इस आंदोलन को लेकर सरकार का रवैया हमेशा एक जैसा ही रहा है. केंद्रीय कृषि मंत्री जहां 11 दौर की बातचीत किसानों के साथ कर चुके हैं, वहीं वो संसद में पहुंचकर कहते हैं कि, कृषि कानून पूरी तरह से किसानों के हित में हैं और लोग ये न समझें कि संशोधन किए जा रहे हैं तो कानूनों में कोई खोट है. इसके अलावा उन्होंने फिर से इस आंदोलन को सिर्फ एक या दो राज्यों का आंदोलन बताकर इसका कद कम करने की कोशिश की.
अब कुल मिलाकर ये बात साफ है कि केंद्र सरकार और किसान दोनों ही बातचीत के लिए तैयार हैं. खुद पीएम मोदी ने इसका जिक्र कर दिया है. लेकिन दोनों तरफ से पहल का इंतजार किया जा रहा है. जहां किसानों को लगता है कि सरकार की तरफ से कोई प्रस्ताव मिलेगा, वहीं सरकार भी फिलहाल साइलेंट मोड पर नजर आ रही है. अगर बातचीत होती भी है तो, किसान कानून खत्म करने की मांग पर अड़े हैं. उधर सरकार किसी भी सूरत में इन्हें रद्द करने का विचार भी नहीं कर रही है.
यानी अभी आंदोलन खत्म होने का दूर-दूर तक कोई भी संकेत नजर नहीं आ रहा है. किसान लगातार अपने इस आंदोलन को और बड़ा करने की कोशिश में जुटे हैं. राकेश टिकैत अब इस जुगत में हैं कि साउथ के किसानों को भी साथ लाया जाए. वहीं सरकार में बैठे लोग भी कभी आंदोलनजीवी, कभी खालिस्तानी, कभी देशद्रोही तो कभी अमीर-गरीब किसान का जुमला देकर आंदोलन के खिलाफ मोर्चा खोल ही रहे हैं.
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