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हेट और फेक न्यूज से बचने के लिए किसानों के IT सेल की इनसाइड स्टोरी

किसान एकता मंच के यूट्यूब चैनल के 10 लाख से ज्यादा सबस्क्राइबर्स हैं और फेसबुक पेज के 2.39 लाख फॉलोअर्स

सुशोभन सरकार
भारत
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सोमवार, 14 दिसंबर को सिंघु बॉर्डर पर एक कामचलाऊ स्टेज से बलजीत सिंह संधू ने प्रदर्शनकारियों के सामने एक अनोखा ऐलान किया. किसान अपनी-अपनी तरह से भाषण दे रहे थे. इसी बीच संधू ने माइक्रोफोन पर कहा, ‘आपमें से जो लोग फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और स्नैपचैट चलाना जानते हैं, आगे आइए और हमसे बात कीजिए.’

दरअसल इस ऐलान के कुछ ही घंटे पहले तीन विवादास्पद किसान कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन करने वाली 37 किसान यूनियंस के प्रमुख नेताओं की बैठक हुई थी. इस बैठक में इस बात पर चर्चा हुई थी कि किस तरह टीवी चैनल, सोशल मीडिया और वॉट्सऐप पर कहानियां गढ़ी जा रही हैं. प्रदर्शन को बदनाम किया जा रहा है. किसानों को देशद्रोही और खालिस्तानी बताया जा रहा है.

संधू के अनुसार, हम खुशकिस्मत हैं कि ईश्वर की कृपा से हमें अपने ही लोगों के बीच अच्छे टेक्निकल लोग मिल गए जोकि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को अच्छी तरह से समझते हैं. संधू मज्झा किसान समिति के उपाध्यक्ष भी हैं और 26 नवंबर से सिंघु बॉर्डर पर मौजूद हैं. संधू कहते हैं कि इस तरह किसान एकता मंच का आईटी सेल बना. वो इस सेल की भी अगुवाई कर रहे हैं.

मेनस्ट्रीम मीडिया के जवाब में अपना आईटी सेल

दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर प्रदर्शन करने वाले किसानों का अपना ऑफिशियल सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म है, जिसका नाम है किसान एकता मंच. इसके जरिए वो लोग आम जन से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं और अपनी बात रख रहे हैं. अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) के प्रवक्ता आशुतोष हमें बताते हैं. आशुतोष कहते हैं,

“हमारा एक सिंपल एजेंडा है- अपना संदेश आसानी से लोगों तक पहुंचाना. साथ ही मेनस्ट्रीम मीडिया में फैलने वाली अफवाहों और गलत खबरों और सरकार की बड़ी प्रॉपोगेंडा मशीनरी का जवाब देना.”

बुधवार 16 दिसंबर को केईएम ने फेसबुक पेज शुरू किया गया और फिर उनका यूट्यूब चैनल आया. अब इंस्टाग्राम, ट्विटर और स्नैपचैट एकाउंट भी शुरू हो गए हैं.

केईएम की आईटी टीम में पांच लोग हैं. आशुतोष इसके मुखिया हैं. इस टीम में 16 साल का एक किशोर भी है जो अपने पूरे परिवार के साथ सिंघु बार्डर में बैठा है. संधू द क्विंट को बताते हैं, “यह बच्चा स्नैपचैट का धुरंधर है और हमारे प्रोटेस्ट की स्टोरीज अपलोड करता रहता है.”

सिर्फ एक हफ्ते में किसान एकता मंच के यूट्यूब चैनल के 10.9 लाख, फेसबुक के 2,39,000 और इंस्टाग्राम के 1,29,000 फॉलोअर्स हो चुके हैं.

सरकार ने अब तक इस पूरे प्रदर्शन को इस तरह पेश किया है, जैसे कि यह सिर्फ पंजाब के किसानों का आंदोलन है. केईएम की आईटी टीम इस भ्रम को दूर करने की कोशिश कर रही है. उसके पांच टीम मेंबर्स में दो पंजाब के हैं, दो हरियाणा के और एक राजस्थान का है.

आईटी सेल हेड बलजीत सिंह संधू सिंघु बॉर्डर पर किसानों को सोशल मीडिया को लेकर संबोधित करते हुए(फोटो: Kisan Ekta Morcha/YouTube)

सोशल मीडिया की रणनीति और कंटेंट

एआईकेएससीसी के प्रवक्ता आशुतोष का कहना है कि उनके खिलाफ क्या क्या भ्रम फैलाए जा रहे हैं, यह जानना अपनी रणनीति बनाने के लिए बहुत जरूरी है. आशुतोष कहते हैं,

“हम इस समय सरकार की खतरनाक आईटी मशीनरी का सामना कर रहे हैं जोकि दोतरफा है. एक तरफ सरकार ये कह रही है कि हम किसानों के साथ बात करना चाहते हैं, दूसरी तरफ वो हमें लगातार बदनाम कर रही है. यहां तक कि बीजेपी के सांसद हमारे बारे में खुले तौर पर घिनौनी बातें कर रहे हैं.”

दक्षिण दिल्ली के बीजेपी सांसद रमेश बिधूड़ी ने हाल में एक पब्लिक मीटिंग में प्रदर्शनकारी किसानों पर आग उगली थी. उन पर आरोप लगाया था कि उन्हें कनाडा के खालिस्तान समर्थकों से पैसे मिल रहे हैं.

केईएम की सोशल मीडिया रणनीति का एक और मकसद है. वो ये कि किसानों की मुख्य मांगें क्या हैं, इसकी सारी सूचनाओं का स्रोत एक ही हो, और रोज की घटनाओं की जानकारी भी लोगों को एक ही सूत्र से मिलें. संधू कहते हैं कि अलग-अलग मीडिया चैनल्स को किसान नेताओं को बार बार एक ही बात कहनी पड़ती थीं. फेसबुक और ट्विटर एकाउंट होने से सुव्यवस्थित तरीके से सूचनाओं का प्रसार हो रहा है. उन्होंने कहा,

“फिर यह मुश्किल आन खड़ी हुई कि इसके लिए टीम कैसे बनाई जाए. हम किसी बाहरी मार्केटिंग कंपनी पर भरोसा नहीं कर सकते, क्योंकि सरकार उन्हें अपने काबू में कर सकती है, उन पर दबाव बना सकती है या उन्हें खरीद सकती है.”

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द क्विंट को उन्होंने बताया कि इसलिए ऐसा प्लेटफॉर्म बनाने की जरूरत थी जिसे प्रदर्शनकारी खुद चलाएं. इस प्लेटफॉर्म में किसान नेताओं के लाइव वीडियो, प्रेस कॉन्फ्रेंस जैसा कंटेंट है. संधू कहते हैं,

“हमारी रणनीति साफ है. जैसे जैसे आंदोलन रफ्तार पकड़ता है, हमारा काम रोजाना की घटनाओं को कैप्चर करना है. हमें जब खबरें मिलती हैं, हम उन्हें पोस्ट कर देते हैं. जैसे जब लोग अनशन पर बैठ रहे हैं, हमारे वॉलंटियर्स उनके साथ बैठ जाते हैं और उनकी बातचीत को रिकॉर्ड करते रहते हैं.”
किसान एकता मोर्चा के यूट्यूब पेज पर लाइव जूम वेबिनार करते किसान नेता(फोटो: Kisan Ekta Morcha/YouTube)

साधारण सेटअप लेकिन दमदार कंटेंट

अगली चुनौती ये थी कि इसके लिए एक्विपमेंट कहां से आएंगे. संधू कहते हैं, “हम यहां प्रदर्शन के लिए आए थे इसलिए एक आईटी सेटअप का एक्विमेंट हमारे पास नहीं था. हमने अपने कुछ लड़कों को पंजाब भेजा. वो वहां से अपने लैपटॉप और डोंगल लेकर आए.”

हालांकि ये सेटअप बहुत साधारण लगता है लेकिन टीम का कहना है कि वो प्लेटफॉर्म पर आने वाली पोस्ट्स और वीडियो से बहुत खुश हैं. टीम स्पीकर्स के चेहरों पर लाइट वगैरह डालकर अपने स्मार्टफोन्स से सब कुछ शूट करती है.

संधू ने द क्विंट को बताया,

“हमारे पास जो भी आता है, नेता या प्रदर्शनकारी, हम उन्हें कुर्सी पर बैठाते हैं जिसके पीछे हमारा बैनर होता है और अपने फोन से उसे लाइव कर देते हैं. हमारे पास एक ट्राइपॉड है जिस पर हम अपना कैमरा रख देते हैं और अपने फोन्स की लाइट से फ्रेम पर रोशनी डालते हैं.”

टीम उस वीडियो के बारे में गर्व से बताती है जिसमें किसान नेता जगजीत सिंह ढालेवाल कृषि कानूनों पर पीएम नरेंद्र मोदी के तर्कों का एक-एक करके जवाब देते हैं

संधू खुशी-खुशी बताते हैं, “मोदी बनाम ढालेवाल का वीडियो, जिसमें एक तरफ मोदी बोल रहे हैं और फिर अंकल जवाब दे रहे हैं, ट्रॉली पर शूट किया गया था. अगर आप ध्यान से देखें तो ट्रॉली की दोनों तरफ दो लोग अपना फोन पकड़े हुए हैं. इससे उनके चेहरे पर रोशनी पड़ रही है. इस वीडियो पर हमें सबसे ज्यादा व्यूज मिले और फेसबुक पर फॉलोअर्स भी.”

मोदी बनाम ढालेवाल का वीडियो(फोटो: Kisan Ekta Morcha/YouTube)

फॉलोअर्स एकदम खरे हैं

एआईकेएससीसी के आशुतोष कहते हैं कि बीजेपी के आईटी सेल के बजट से उनके बजट का कोई मुकाबला नहीं किया जा सकता. हां, वे लोग कामचलाऊ तरीकों से फॉलोअर्स को जुटा रहे हैं और ‘प्रॉपोगेंडा मशीनरी’ से लोहा ले रहे हैं.

संधू कहते हैं, “हमारे प्लेटफॉर्म्स की फॉलोइंग्स एकदम खरी हैं. हमने किसी प्लेटफॉर्म के लिए कोई पैसा नहीं खर्चा.”

तो, उन्होंने लोगों को इसके बारे में कैसे बताया? टीम ने बताया कि उन्होंने एक प्रिंटर का बंदोबस्त किया. पास की दुकान से कागज का बंडल खरीदा और 200 प्रिंटआउट निकाले. लंगर में हमारी मदद करने वाले वॉलंटियर्स ने उन्हें वहां मौजूद लोगों में बांट दिया.

धरने में मौजूद वॉलंटियर्स ही व्हॉट्सएप मैसेज कंपोज करते हैं और उन ग्रुप्स में भेज देते हैं जिनका वे हिस्सा हैं. इसमें लोगों से भागीदारी करने को कहा जाता है. इस तरह यह सब कुछ शुरू हुआ. संधू ने बताया,

“हमने फ्लेक्स बैनर प्रिंट किए. अपनी टी-शर्ट बनवाईं और कुछ लोग उन्हें पहकर 4 से 5 किलोमीटर चलकर जाते हैं. इससे लोगों ने क्यूआर कोड को स्कैन किया और हमें फॉलो करना शुरू किया.” उन्होंने बताया,

“हमें अपने इंस्टाग्राम पेज पर ब्लू टिक मिल गया जोकि काफी बड़ी बात है. रविवार को जब फेसबुक पर हमें दो घंटे के लिए ब्लॉक किया गया, तब भी हमारे 70,000 फॉलोअर्स थे. फिर हम जब वापस लौटे तो फॉलोअर्स 90,000 हो गए थे. इसके बाद सोमवार शाम तो हमारे फॉलोअर्स की संख्या 1.8 लाख हो गई थी.”

रविवार, 20 दिसंबर को कथित रूप से सोशल मीडिया के “कम्यूनिटी स्टैंडर्ड्स ऑन स्पैम” के ‘खिलाफ’ जाने के कारण फेसबुक ने किसान एकता मंच (केईएम) के पेज को अस्थायी रूप से ब्लॉक कर दिया था. इस सिलसिले में जब द क्विंट ने फेसबुक से सवाल किया तो ये जवाब मिला कि उन्होंने “किसान एकता मंच के फेसबुक पेज” को बहाल कर दिया है और उन्हें “इस असुविधा के लिए खेद है”.

जैमर लगाने के आरोप

हालांकि दिल्ली के बाहर हाईवे से सोशल मीडिया का सारा कामकाज करना आसान नहीं है. कनेक्टिविटी की समस्याएं भी उठानी पड़ रही हैं. किसान नेता कहते हैं कि उन्हें बताया गया है कि हो सकता है कि यहां पुलिस ने आस-पास जैमर लगाए हों ताकि टेलीफोन नेटवर्क अच्छी तरह से न मिल पाए. संधू क्विंट से कहते हैं,

“हमें सही इंटरनेट कनेक्टिविटी नहीं मिल रही. हमें बताया गया है कि यहां जैमर लगाए गए हैं. हालांकि मैं नहीं जानता कि जैमर कैसे दिखते हैं और उन्हें कहां लगाया गया है.”

वो बताते हैं कि उन्हें किस तरह की दुविधा का सामना करना पड़ रहा है. “अगर हमें धरना स्थल पर सिग्नल मिलते हैं तो भी यहां इतना शोर है कि हम अच्छी तरह बात नहीं कर पाते. अगर हम अंदर की गलियों में जाते हैं, तो वहां रहने वाले कहते हैं कि हमारी वजह से उनका नेटवर्क भी खराब हो रहा है.” संधू कहते हैं,

“जैसे अगर आप हमारे फेसबुक पेज को देखेंगे तो हमने एक घंटे में 10-12 पोस्ट और 3-4 लाइव्स अपलोड की हैं, इसके बाद 3-4 घंटे तक कोई एक्टिविटी नहीं है. इसकी वजह नेट कनेक्टिविटी है.”

एआईकेएससीसी के आशुतोष, जोकि धरने की शुरुआत से मीडिया से बातचीत कर रहे हैं, कहते हैं कि हमारी आईटी रणनीति भले परफेक्ट न हो, न हमारी टीम में एक्सपर्ट्स हों लेकिन “ये स्मार्टफोन्स और कम्यूनिकेशन का दौर है और हमें इसका इस्तेमाल करके अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए. अपनी बात कहनी ही चाहिए.”

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 24 Dec 2020,08:31 PM IST

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