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'राजद्रोह' संक्रामक बीमारी की तरह फैल रहा है. जिसको देखो वही 'द्रोही' हुआ जा रहा है. केस पर केस हो रहे हैं, जेल भेजे जा रहे हैं, लेकिन लोग सुधरने को तैयार नहीं. अब सरकार कहां-कहां और किस-किस पर नजर रखे. देश को इस बीमारी से बचाना है तो बचपन से जागरूकता बढ़ानी होगी. स्कूल के लेवल पर काम करना होगा. सिविक साइंस की किताबों में एक चैप्टर रखना होगा-'राजद्रोह, मानहानि, धार्मिक भावनाओं को आहत करने के केस से बचने का टूलकिट'. टूलकिट (Toolkit) कुछ ऐसा हो सकता है.
यूनिवर्सिटी में पढ़ते हैं तो किताब देखिए, देश में क्या चल रहा है, ये देखना आपका काम नहीं.
किसान हैं तो अपने खेतों की देखभाल कीजिए, संसद में कौन सा काला या लाल कानून बन रहा है, ये देखना आपका काम नहीं.
पर्यावरणविद हैं तो पेड़ उगाइए, प्रदर्शन नहीं.
पत्रकार हैं तो कहिए-जो तुमको हो पसंद वही बात करेंगे. अगर कहीं सरकारी कार्यक्रम में बच्चों को ठिठुरते दिख जाएं तो इग्नोर कीजिए. अगर मिड डे मील में बच्चों को बेकार खाना दिया जा रहा हो तो इसे उनका दुर्भाग्य मानकर आगे बढ़िए. और किसी से ये पूछने तो कतई न जाइए कि आमदनी दोगुनी हुई या नहीं?
यूथ हैं, नौकरी नहीं मिल रही या छिन गई तो मौजूदा नहीं,पिछली सरकार की गलती देखिए, चीन की चाल जानिए, पाकिस्तान का प्रपंच पढ़िए.
ये मत देखिए कि सरकार क्या नहीं कर रही है, ये बताइए आप सरकार-मेरा मतलब है-देश के लिए क्या कर रहे हैं.
पब्लिक की चुनावी पसंद जो भी हो, किसी भी राज्य में चुनी हुई सरकार जा सकती है, इसमें कोई बुराई मत देखिए.
'टुकड़े-टुकड़े गैंग' से सावधान रहिए. उनकी बातों में कितना भी तर्क दिखे, भरोसा मत कीजिए.
विपक्ष कितना भी तर्कपूर्ण कहे, अनसुना कर दीजिए क्योंकि वो राजनीति कर रहा है.
कोई आपको बरगलाता है कि सरकार, पार्टी और राष्ट्र में कोई फर्क है तो उसे मत सुनिए. ये सब एक ही हैं. एक की आलोचना दूसरे की निंदा मानी जा सकती है.
अगर परधर्म की कोई लड़की भाती है और वो भी आपको पसंद करती है तो भी वो फोर लेटर शब्द सुनने से बचिए. सुन भी लिया तो अनसुना कर आगे बढ़ जाइए.
क्या खाना है, क्या नहीं? - अपने मन की मत सुनिए, पड़ोसी से पूछिए. जो आप खा रहे हैं, वो आपको पसंद आए न आए, उसे नापसंद नहीं होना चाहिए.
कानून सबके लिए बराबर होता है ऐसा सुन रखा है तो गलत सुना है. एक ही तरह के ट्वीट के लिए किसी को चुनाव का टिकट मिल सकता है और किसी का जेल के लिए टिकट कट सकता है.
2 अक्टूबर और 30 जनवरी को गांधी जी को फूल चढ़ा देना अलग बात है, लेकिन बाकी दिन गांधी की बताए राह पर मत चलिए. 'गॉड'से नए आइकन गढ़े किए जा रहे हैं, हीरो की कमी महसूस नहीं होगी.
कोई शिकायत हो, दर्द हो तो चुप रहिए क्योंकि आपका बोलना और दर्द दे सकता है.
धरना प्रदर्शन करना आपको रातोंरात देशद्रोही बना सकता है.
सड़क पर कील हैं, सोशल मीडिया पर चील हैं, जो आपपर दूर से नजर रख रहे हैं
कोई ट्वीट करना हो, कुछ रिट्वीट करना तो सौ बार सोच लें, कहीं ऐसा नहीं हो कि इधर आपने चिड़िया उड़ाई और सुख-चैन उड़ गया. एक महीने की सैलरी कट जाए तो जानिए की सस्ते में छूटे.
अगर ये सोच रहे हैं कि वॉट्सऐप पर मन की बात सीक्रेटली कह लेंगे तो इसकी गारंटी कोई नहीं ले सकता कि आपकी बात सीक्रेट रहेगी, खुद वॉट्सऐप भी नहीं.
अपने मन की बात कहिए मत और सवाल पूछिए मत.
सोच रहे हैं कि हंसी मजाक से भड़ास निकाल लेंगे तो भ्रम में मत रहिए. 'रंगीला' बर्ताव बर्दास्त नहीं किया जाएगा.
कॉमेडी में भी कुछ ऐसा वैसा...हां 'वैसा' ही...बोलना तो दूर, सोचने से भी बचिए. बिन बोले भी आप सलाखों के पीछे 'मुनव्वर' हो सकते हैं.
अपने घर में, अपने दोस्तों के बीच भी अपने सियासी झुकाव का खुलासा न कीजिए. रिश्ते खराब हो सकते हैं. भाई-भाई का दुश्मन हो सकता है.
नेता, अफसरों और सरकार की आलोचना भूलकर भी मत कीजिए.
चेतावनी: सिर्फ और सिर्फ इस टूलकिट को फॉलो कीजिए. यही 'राजद्रोह' से बचने का शर्तिया टूलकिट है. इसे हंसी मजाक के तौर पर लिखा गया है लेकिन काम आ सकता है. कहीं किसी विदेशी टूलकिट के चक्कर में कोर्ट-कचहरी के चक्कर न काटने पड़ें.
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