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केंद्र सरकार और किसानों के बीच शुक्रवार 8 जनवरी को अगले दौर की बैठक होने जा रही है. लेकिन इस बैठक से ठीक पहले किसानों ने अपनी ताकत सरकार को दिखाने की कोशिश की है. किसानों के इस ट्रैक्टर मार्च को बैठक से ठीक पहले किसानों का शक्ति प्रदर्शन कहा जा रहा है. जिसमें हजारों किसान दिल्ली की सीमाओं पर अपने ट्रैक्टर लेकर पहुंचे. अब कहा जा रहा है कि कल होने वाली बैठक में किसानों की इस हुंकार का असर नजर आ सकता है.
अब भले ही किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर ट्रैक्टर घुमाकर इसकी आवाज लुटियंस दिल्ली तक पहुंचाने की कोशिश की हो, लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं लग रहा है कि केंद्र सरकार के कानों में जूं तक रेंगी हो. ये हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि बीजेपी के कई नेता और खुद केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के हाव-भाव बता रहे हैं.
बुधवार 7 जनवरी को हजारों किसानों को दिल्ली की सीमाओं पर केंद्र के खिलाफ नारेबाजी करते हुए लोगों ने देखा, वहीं पिछले करीब डेढ़ महीने से महिला और अन्य किसान दिल्ली की सीमाओं पर टेंट के नीचे बैठकर प्रदर्शन कर रहे हैं. लेकिन ये आंदोलन जितना बढ़ रहा है, उसे लोगों की नजरों में उतना ही दूसरा एंगल देने की कोशिश भी हो रही है. बीजेपी लगातार ट्वीट कर रही है कि ये विपक्षी नेताओं का आंदोलन है. तरह-तरह की रिपोर्ट शेयर कर बताया जा रहा है कि आंदोलन राजनीतिक स्वार्थ के चलते हो रहा है.
दरअसल ऊपर हमने बीजेपी की बात की और बताया कि कैसे आंदोलन को राजनीतिक बताया जा रहा है. लेकिन बीजेपी के इसी ट्वीट को खुद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की तरफ से रीट्वीट किया गया है. ये रीट्वीट तब हुआ है, जब दिल्ली की सीमाओं पर किसान ट्रैक्टर मार्च निकाल रहे थे.
बीजेपी के आधिकारिक हैंडल से किए गए इस ट्वीट में एक ग्राउंड रिपोर्ट का जिक्र करते हुए लिखा है, "दिल्ली के सिंघु और हमीदपुर गांव के किसानों का कहना है कि कृषि सुधार कानूनों से किसानों को लाभ ही लाभ हैं. किसानों का स्पष्ट मत है कि ये आंदोलन किसानों के हित के लिए नहीं, बल्कि राजनीतिक स्वार्थ के चलते हो रहा है."
अगर आप सोच रहे हैं कि कृषि मंत्री ने सिर्फ रीट्वीट ही तो किया है, तो आपको बता दें कि अगर मंत्री जी के ट्विटर हैंडल पर थोड़ी दूर तक नजर डालें तो ऐसे कई ट्वीट मिल जाएंगें, जहां पर कृषि कानून समर्थक किसानों के हवाले से कहा गया है कि कानून खत्म करने की कोई जरूरत नहीं है. कुछ ट्वीट में ये भी कहा गया है कि सरकार को किसी भी दबाव में आने की कोई जरूरत नहीं है.
हालांकि ये बैठक इस बात के लिए निर्णायक हो सकती है कि सरकार अपना रुख साफ कर दे और बता दे कि वो किसी भी हाल में कानूनों को तो वापस नहीं लेने जा रही है. या फिर ये हो सकता है कि किसान इस बार सरकार से दो टूक जवाब मांग ले कि आखिर कानूनों को लेकर उसकी इच्छा क्या है? अगर सरकार बार-बार टालने की बजाय इस बार साफ कर देती है तो फिर इस आंदोलन का क्या रंग-रूप होगा, कैसे इसे चलाया जाएगा और कब तक चलाया जाएगा, इन सारी बातों का जवाब भी मिल जाएगा.
अब किसानों ने अपने इस ट्रैक्टर मार्च को 26 जनवरी को होने वाली ट्रैक्टर परेड का एक छोटा सा ट्रेलर बताया है. यानी आंदोलन आगे तेज होगा. लेकिन अगर बातचीत बेनतीजा हुई तो सरकार भी किसानों के खिलाफ अपना "आंदोलन" तेज कर सकती है. समर्थक किसान संगठनों को जुटा लिया गया है, ट्विटर पर कृषि मंत्री #FarmersWithModi हैशटैग के साथ हर ट्वीट कर रहे हैं और तमाम समर्थक तो सोशल मीडिया पर मोर्चा पहले से ही संभाले हुए हैं. तो किसानों के साथ-साथ ये "आंदोलन" भी रफ्तार पकड़ेगा.
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