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29 नवंबर को संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन विपक्षी सांसदों के हंगामों के बीच कृषि कानून निरसन विधेयक (Farm Laws Repeal Bill-2021) को लोकसभा और राज्यसभा में पेश किया गया और उसके कुछ ही देर बाद पारित कर दिया गया.
कृषि कानूनों के विरोध में किसानों द्वारा भारी प्रतिरोध करने के बाद, पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने घोषणा की थी कि संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार विवादित कृषि कानूनों को रद्द कर देगी.
संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा जारी किए गए बयान में कहा गया कि तीनों विवादास्पद कृषि कानूनों को रद्द करने वाले बिल को संसद में बिना चर्चा के पास कर दिया गया.
अधिकतर एपीएमसी (Agricultural Produce & Livestock Market Committee) एक्ट में किसानों के पहले से ये अधिकार था कि वो अपना उत्पाद कहीं भी और किसी भी व्यापारी के हांथों बेच सकते हैं. पहली बार इस तरह की आजादी को केन्द्र की मोदी सरकार द्वारा किसानों से छीना गया.
SKM ने इस दावे का विरोध किया कि किसानों के साथ कानूनों पर चर्चा की गई और कहा कि लोकतंत्र में इंडस्ट्री-स्पॉन्सर कृषि संघों के साथ अवसरवादी विचार-विमर्श आगे का रास्ता नहीं है, गंभीर चर्चा के साथ लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को अपनाया जाना चाहिए.
संयुक्त किसान मोर्चा ने आगे कहा कि जिस तरह से भारत सरकार कृषि कानून रद्द करने का विधेयक लाई उससे सरकार का अहंकारी और अड़ियल रवैया स्पष्ट रूप से समझ आता है और यह केवल भोले-भाले लोगों को गुमराह करने के लिए है.
इस बीच भारतीय किसान यूनियन (BKU) के कादियान प्रेसीडेंट हरमीत सिंह कादियान ने कहा कि 1 दिसंबर को संयुक्त किसान मोर्चा की एक मीटिंग होगी. एमएसपी कमेटी को लेकर आंदोलन पर अगला फैसला इसी बैठक में लिया जाएगा, यह मीटिंग 4 दिसंबर तक चलेगी. यह एक इमरजेंसी स्पेशल मीटिंग है जो 11 राउंड की बातचीत के लिए गए किसान संगठनों के प्रतिनिधियों द्वारा आयोजित की जाएगी.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक हरमीत सिंह कादियान ने आगे कहा कि...
इसके अलावा भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा कि कृषि कानून एक बीमारी रही है और यह अच्छी है कि उन्हें रद्द कर दिया गया है. राष्ट्रपति को बिल पर मुहर लगाने दें, फिर हम 750 किसानों की मौत, एमएसपी और किसानों के खिलाफ दर्ज मामलों को रद्द करने जैसे अन्य मुद्दों पर चर्चा करेंगे.
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